लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव जिसे “एक देश, एक चुनाव” भी कहा जाता है, को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार सक्रिय हो गई है। इसे वर्तमान कार्यकाल के भीतर लागू किया जाएगा। सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने यह जानकारी दी। सरकार को एनडीए के सभी राजनीतिक दलों से समर्थन की उम्मीद है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि सामान्य जनगणना प्रक्रिया भी जल्द ही शुरू होगी। देश में 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है।
2014 में सत्ता में मिलने के कुछ महीनों के भीतर ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव के मुद्दे को रखा था। इसके बाद मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। जिसने मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में इस मुद्दे पर गौर किया था। इसने संसद और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की। मोदी ने हाल ही में लाल किले की प्राचीर से अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में इस कदम के प्रति अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई थी और सभी राजनीतिक दलों से इस निर्णय में सहयोग करने की अपील की थी।
मोदी के पिछले दो कार्यकालों पर नजर डाली जाए तो भाजपा-आरएसएस के एजेंडे को मोदी सरकार सधे हुए तरीके से लागू कर रही है या आगे बढ़ रही है। अपने पहले दो कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, जम्मू कश्मीर में धारा 370 को खत्म करना और सीएए को लागू करना शामिल था। उसने तीनों फैसलों को लागू कर दिया।
सूत्रों का कहना है कि सत्तारूढ़ एनडीए सरकार आम और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए प्रतिबद्ध है। सूत्रों ने यह भी कहा कि बीजेपी ने सहयोगी राजनीतिक दलों से इस संबंध में बातचीत शुरू कर दी है। जिसमें चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और नीतीश कुमार की जेडीयू प्रमुख पार्टियां हैं।
कई विपक्षी दलों और विपक्षी शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने एक देश-एक चुनाव के विचार का विरोध किया है। हालांकि इसके समर्थन में संसाधनों को बचाने, साल भर चुनाव कराने में प्रशासनिक मशीनरी पर दबाव कम करने और सार्वजनिक धन बचाने के लिए चुनावी प्रक्रिया में सुधार और एक साथ आम चुनाव और विधानसभा चुनाव कराने से राजनीतिक दलों को भी तमाम झंझटों से छुटकारा मिलने की बात कही जाती रही है।
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के नेतृत्व वाली ‘एक देश-एक चुनाव’ पर उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बार-बार होने वाले चुनाव अनिश्चितता का माहौल बनाते हैं और नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से नीति निर्माण में निश्चितता बढ़ेगी। एक साथ चुनाव के फायदों पर प्रकाश डालते हुए समिति ने कहा कि ‘एक देश एक चुनाव’ मतदाताओं के लिए आसानी और सुविधा सुनिश्चित करता है, मतदाताओं को थकान से बचाता है और अधिक मतदान की सुविधा प्रदान करता है।
रामनाथ कोविंद समिति ने कहा था- “देश में लगातार चुनावों के कारण विकास में बाधा आ रही है। देश में कल्याणकारी योजनाएं अब चुनावों से जुड़ी हुई हैं। हर तीन से छह महीने में हमारे यहां चुनाव होते हैं, देश में हर काम अब चुनावों से जुड़ा हुआ है। इस पर व्यापक चर्चा हुई है।”
इस बीच, एएनआई के मुताबिक लंबे समय से देशव्यापी जनगणना कराने के लिए प्रशासनिक कार्य चल रहा है; हालाँकि, जनगणना प्रक्रिया में जाति सूचकांक या कॉलम शामिल किया जाएगा या नहीं, इस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
कांग्रेस, आरजेडी और सपा जैसे विपक्षी दल जोर-शोर से जाति जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं। एनडीए गठबंधन के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान भी देशव्यापी जाति जनगणना के पक्ष में हैं।
पिछली जनगणना 2011 में हुई थी और इसके बाद इसे 2021 से होना चाहिए था। जनगणना हर दस साल में आयोजित की जाती है, लेकिन जनगणना 2021 में कोविड 19 महामारी के कारण देरी हुई और तब से यह रुकी हुई है। जनगणना सरकार को प्रमुख सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय डेटा प्रदान करती है और शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।