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    Home » एम.ए. बेबी बने सीपीएम महासचिव, प्रकाश व वृंदा करात पोलित ब्यूरो से बाहर
    भारत

    एम.ए. बेबी बने सीपीएम महासचिव, प्रकाश व वृंदा करात पोलित ब्यूरो से बाहर

    Janta YojanaBy Janta YojanaApril 6, 2025No Comments6 Mins Read
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    सीपीएम में बड़ा बदलाव लाया गया है। केरल के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता एम.ए. बेबी को सीपीएम का नया महासचिव चुना गया है। इसके साथ ही पोलित ब्यूरो में आठ नये सदस्यों को शामिल किया गया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार प्रकाश करात, वृंदा करात और माणिक सरकार सहित वरिष्ठ नेता पोलित ब्यूरो से बाहर हो गए हैं। ये बदलाव पार्टी में आमूल-चूल बदलाव की ओर इशारा करते हैं, क्योंकि दशकों से प्रकाश करात, वृंदा करात और माणिक सरकार जैसे नेता पार्टी की दिशा और दशा तय करते रहे हैं।

    6 अप्रैल यानी रविवार को मदुरै में आयोजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम के 24वें पार्टी कांग्रेस में यह बड़ा फ़ैसला लिया गया। पिछले साल सितंबर में सीताराम येचुरी के निधन के बाद से महासचिव का यह पद खाली था। इस नियुक्ति के साथ ही बेबी सीपीएम के इतिहास में केरल से आने वाले दूसरे महासचिव बन गए हैं, इससे पहले ईएमएस नंबूदरीपाद इस पद पर रह चुके हैं। अंतरिम रूप से पार्टी की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रकाश करात ने बेबी के नाम का प्रस्ताव रखा। इसे पोलित ब्यूरो के 11 सदस्यों का समर्थन मिला। हालाँकि, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों से कुछ नेताओं ने अशोक ढवले जैसे अन्य नामों का समर्थन किया था, लेकिन बहुमत बेबी के पक्ष में रहा।

    पोलित ब्यूरो में बदलाव क्या

    उम्र सीमा के मानदंड के कारण पोलित ब्यूरो से हटने वाले दिग्गज प्रकाश करात, वृंदा करात, माणिक सरकार और सुभाषिनी अली को आमंत्रित सदस्य बनाया गया है। आठ नये पोलित ब्यूरो सदस्यों में मरियम धावले (महाराष्ट्र), यू वासुकी (तमिलनाडु), अमरा राम (राजस्थान), विजू कृष्णन (दिल्ली), अरुण कुमार (दिल्ली), जीतेंद्र चौधरी (त्रिपुरा), श्रीदीप भट्टाचार्य (पश्चिम बंगाल) और के बालाकृष्णन (तमिलनाडु) शामिल हैं। यह कदम पार्टी के लिए एक पीढ़ीगत बदलाव का संकेत देता है, जो पिछले कुछ वर्षों से अपने घटते जनाधार और प्रभाव को पाने की कोशिश कर रही है। 

    यह कदम पार्टी की उस नीति का हिस्सा है, जिसमें 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को शीर्ष पदों से हटाने का प्रावधान है। हालांकि, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को इस नियम से छूट दी गई है, क्योंकि वे वर्तमान में राज्य में पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। प्रकाश (77) और वृंदा (77) के अलावा, माणिक सरकार जैसे अन्य वरिष्ठ नेता भी इस उम्र सीमा के कारण पोलित ब्यूरो से बाहर हो गए हैं। 

    पोलित ब्यूरो में शामिल किए गए आठ नए सदस्यों का चयन पार्टी की विविधता और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखकर किया गया है। तमिलनाडु से दो नेताओं को शामिल करना इस बात का संकेत है कि पार्टी दक्षिण भारत में अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहती है। इसके अलावा, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की कोशिश भी दिखाई देती है, क्योंकि मरियम ढवले जैसे नाम इस सूची में शामिल हैं।

    यह बदलाव सीपीएम के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे पारंपरिक गढ़ों में हार के बाद, नए नेतृत्व से यह उम्मीद की जा रही है कि वे संगठन को फिर से सक्रिय करेंगे। नए पोलित ब्यूरो के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बनाना है।

    यह घोषणा पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। एम.ए. बेबी के नाम से जाने जाने वाले मरियम अलेक्जेंडर बेबी का जन्म 5 अप्रैल, 1954 को केरल के कोल्लम जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा केरल में हुई और उन्होंने त्रिवेंद्रम के यूनिवर्सिटी कॉलेज से मलयालम साहित्य में स्नातक की डिग्री हासिल की। छात्र जीवन से ही वे राजनीति और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे हैं। 

    उनका राजनीतिक जीवन छात्र आंदोलनों से शुरू हुआ। उन्होंने केरल स्टूडेंट्स फेडरेशन यानी केएसएफ़ के माध्यम से अपनी शुरुआत की। यह फ़ेडरेशन बाद में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी एसएफआई के रूप में बदल गया। वे 1970 के दशक में एसएफआई के प्रमुख नेताओं में से एक थे और इसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।

    बेबी 1986 से 1998 तक राज्यसभा सांसद रहे। इस दौरान उन्होंने शिक्षा, संस्कृति और श्रमिक अधिकारों जैसे मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद की। 2006 से 2011 तक उन्होंने केरल के शिक्षा मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दीं। वी.एस. अच्युतानंदन की सरकार में वे केरल के शिक्षा और संस्कृति मंत्री के तौर पर उन्होंने कई सुधार लागू किए, जिनमें हायर सेकेंडरी एडमिशन के लिए सिंगल-विंडो सिस्टम शामिल है। 

    बेबी लंबे समय से सीपीएम के पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे हैं। बेबी एक कुशल लेखक और प्रभावशाली वक्ता हैं। उन्होंने मलयालम में कई किताबें लिखी हैं, जिनमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर निबंध और विश्लेषण शामिल हैं। उनकी छवि एक सुसंस्कृत और प्रगतिशील नेता की रही है। वे पार्टी की विचारधारा को जनता तक पहुंचाने और संगठन को मजबूत करने में सक्रिय रहे हैं।

    सीपीएम के लिए यह नियुक्ति कई मायनों में अहम है। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी का प्रभाव मुख्य रूप से केरल तक सीमित होकर रह गया है, जहाँ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा यानी एलडीएफ़ सत्ता में है। बेबी का चयन इस बात का संकेत हो सकता है कि पार्टी अपनी जड़ों को मज़बूत करने और खोई हुई जमीन को वापस पाने की कोशिश में है।

    बेबी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बनाना होगा। हाल के वर्षों में सीपीएम का प्रभाव उत्तर भारत और अन्य हिंदी भाषी क्षेत्रों में कमजोर पड़ा है। बेबी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि पार्टी को अपनी जनाधार को फिर से मज़बूत करना होगा। उनकी नियुक्ति से यह उम्मीद की जा रही है कि वे केरल के मज़बूत आधार का उपयोग करते हुए अन्य राज्यों में भी पार्टी की स्थिति को बेहतर कर सकते हैं। हालांकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि उनकी छवि नरम नेता की है, जो कट्टर कम्युनिस्ट विचारधारा को आगे बढ़ाने में कमजोर पड़ सकती है।

    पार्टी के भीतर क्षेत्रीय संतुलन को लेकर भी चर्चा रही है। उत्तर भारत के नेताओं का मानना था कि महासचिव का पद किसी ऐसे नेता को मिलना चाहिए जो राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखता हो। लेकिन बेबी के पक्ष में यह तर्क दिया गया कि केरल पार्टी का गढ़ है और वहाँ से नेतृत्व संगठन को मज़बूती दे सकता है। यह नियुक्ति इस बात का भी संकेत है कि केरल इकाई का प्रभाव पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बढ़ रहा है।

    एम.ए. बेबी की नियुक्ति सीपीएम के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है। उनकी सांस्कृतिक समझ, शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव और व्यावहारिक दृष्टिकोण उन्हें एक अलग पहचान देता है। हालाँकि, यह देखना बाक़ी है कि वे पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर कितना प्रभावी बना पाते हैं और क्या वे विभिन्न राज्य इकाइयों के बीच संतुलन स्थापित कर पाएंगे। प्रकाश और वृंदा करात का पोलित ब्यूरो से हटना और आठ नए सदस्यों का शामिल होना सीपीएम के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक है। यह बदलाव पार्टी को युवा ऊर्जा और नए विचारों से जोड़ने की कोशिश है, लेकिन इसके साथ ही क्षेत्रीय असंतुलन और आंतरिक मतभेदों को संभालने की चुनौती भी सामने है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह नया नेतृत्व सीपीएम को उसके खोए हुए गौरव को वापस दिला पाता है या नहीं।

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