भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी से टेलीफोन पर बातचीत की। यह पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार की गई भारत और तालिबान के बीच उच्च-स्तरीय बातचीत है। यह न केवल कूटनीतिक दृष्टिकोण से ऐतिहासिक है, बल्कि यह भारत की अफगानिस्तान नीति और क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक अहम मोड़ का संकेत देती है।
इस बातचीत के क्या मायने हैं और इसका क्या असर पड़ेगा, यह जानने से पहले यह जान लें कि एस जयशंकर ने क्या कहा है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘आज शाम को अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मौलवी अमीर खान मुत्तकी के साथ अच्छी बातचीत हुई। पहलगाम आतंकी हमले की उनकी निंदा की तहेदिल से सराहना करता हूँ। भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने के हाल के प्रयासों, झूठी और आधारहीन ख़बरों को उनकी दृढ़ अस्वीकृति का स्वागत किया। अफगान लोगों के साथ हमारी पारंपरिक मित्रता और उनके विकास की जरूरतों के लिए निरंतर समर्थन पर जोर दिया। सहयोग को आगे बढ़ाने के तरीक़ों और साधनों पर चर्चा की।’
भारत ने अभी तक तालिबान शासन को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है। अगस्त 2021 में तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में एक समावेशी सरकार के गठन और अफ़ग़ान धरती का आतंकवादी गतिविधियों के लिए उपयोग न होने की वकालत की है। हालाँकि, भारत ने मानवीय सहायता और व्यापार जैसे क्षेत्रों में अफगानिस्तान के साथ जुड़ाव बनाए रखा है। इस बातचीत से पहले विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने चार महीने पहले दुबई में मुत्तकी से मुलाक़ात की थी।
जयशंकर और मुत्तकी के बीच यह बातचीत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले और इसके बाद पाकिस्तानी मीडिया के एक वर्ग द्वारा फैलाए गए दुष्प्रचार के संदर्भ में हुई। पाकिस्तानी मीडिया ने दावा किया था कि भारत ने पहलगाम में ‘झूठा ऑपरेशन’ करने के लिए तालिबान को ‘किराए पर लिया’ था। इस बातचीत में मुत्तकी ने इस तरह के दावों को सिरे से खारिज किया।
किस किस मुद्दे पर बातचीत हुई?
दोनों मंत्रियों ने व्यापार, कूटनीतिक जुड़ाव और आपसी सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की। मुत्तकी ने अफगान व्यापारियों और मरीजों के लिए भारतीय वीजा प्रक्रिया को आसान करने और भारत में बंदी अफगान कैदियों की रिहाई का अनुरोध किया।
जयशंकर ने पहलगाम हमले की निंदा करने के लिए मुत्तकी की सराहना की और भारत-अफगानिस्तान के बीच विश्वास को कमजोर करने वाली झूठी और आधारहीन खबरों को खारिज करने पर जोर दिया।
यह बातचीत भारत की अफगानिस्तान नीति में एक साहसिक और व्यावहारिक कदम है। भारत का तालिबान के साथ सीधा संवाद स्थापित करना कई रणनीतिक उद्देश्यों को दिखाता है।
पाकिस्तान के प्रभाव को कम करना: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत इस बातचीत के जरिए अफगानिस्तान में पाकिस्तान के प्रभाव और वहाँ सक्रिय आतंकी समूहों को कमजोर करना चाहता है।
क्षेत्रीय स्थिरता: अफगानिस्तान में स्थिरता भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अस्थिरता का असर पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ता है। तालिबान के साथ सीमित लेकिन प्रत्यक्ष जुड़ाव भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा पर अधिक नियंत्रण दे सकता है।
आर्थिक और मानवीय हित: भारत ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और मानवीय सहायता में भारी निवेश किया है। इस बातचीत से व्यापार और सहायता के रास्ते और खुल सकते हैं।
हालाँकि, यह कदम जोखिमों से भी भरा है। तालिबान को औपचारिक मान्यता न देने के बावजूद इस तरह की बातचीत को कुछ लोग तालिबान के प्रति भारत के रुख में नरमी के रूप में देख सकते हैं। इसके अलावा, तालिबान की विश्वसनीयता और उनकी प्रतिबद्धताओं को लागू करने की क्षमता पर सवाल उठते रहते हैं।
यह बातचीत क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक नया आयाम जोड़ती है। तालिबान पर अपने प्रभाव के लिए जाने जाना वाला पाकिस्तान इस मुलाक़ात को संदेह की नज़र से देख सकता है। वहीं, पहले से ही तालिबान के साथ जुड़ाव रखने वाले चीन और रूस जैसे देश भारत के इस क़दम को क्षेत्रीय संतुलन के लिए सकारात्मक मान सकते हैं।
एस जयशंकर और अमीर खान मुत्तकी के बीच यह बातचीत भारत की अफ़ग़ानिस्तान नीति में एक ऐतिहासिक क़दम है। यह न केवल भारत-अफ़ग़ानिस्तान संबंधों को मज़बूत करने की दिशा में एक क़दम है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद के ख़िलाफ़ सहयोग को बढ़ावा देने का भी प्रयास है। हालाँकि, इस क़दम के दीर्घकालिक परिणाम तालिबान की कार्रवाइयों और भारत की सतर्क कूटनीति पर निर्भर करेंगे। यह घटना भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और जटिल क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने की उसकी क्षमता को दिखाती है।