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    Home » ओडिशाः ट्रेन में नन के साथ बजरंग दल के लोगों ने बदसलूकी की, पुलिस ने हिरासत में रखा
    भारत

    ओडिशाः ट्रेन में नन के साथ बजरंग दल के लोगों ने बदसलूकी की, पुलिस ने हिरासत में रखा

    Janta YojanaBy Janta YojanaJune 3, 2025No Comments6 Mins Read
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    ओडिशा में एक ट्रेन में यात्रा कर रही नन रचना नायक को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा झूठे आरोपों के आधार पर परेशान किया गया, जिसके बाद उन्हें 18 घंटे तक पुलिस हिरासत का सामना करना पड़ा। यह घटना उस समय सामने आई जब नन रचना नायक अपने छह युवा साथियों—दो पुरुष और चार महिलाओं—के साथ दिल्ली से राउरकेला जा रही थीं। सभी जन्म से ईसाई थे और ट्रेनिंग कोर्स में एडमिशन के लिए ओडिशा जा रहे थे। मीडिया को इस घटना की जानकारी सोमवार को मिली।
    ईसाई अल्पसंख्यकों के साथ इस घटना के बाद कैथोलिक चर्च के अधिकारियों ने समुदाय की लड़कियों के साथ यात्रा करने वाले सदस्यों को सलाह दी है कि वे अपने माता-पिता और गांव के प्रधानों की लिखित सहमति के साथ-साथ बपतिस्मा प्रमाणपत्र भी साथ लेकर चलें। जिससे यह साबित हो कि वे ईसाई हैं। यह घटना ओडिशा में भाजपा के सत्ता में आने के एक साल बाद हुई है। मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो छोटे बेटों के हत्यारों में से एक को अभी हाल में ही रिहा किया गया है। 1999 में बजरंग दल के नेता के नेतृत्व वाली भीड़ ने स्टेंस और उनके बच्चों को जिंदा जला दिया था।
    टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल में होली फैमिली कॉन्वेंट की नन रचना नायक और उनके साथियों को भुवनेश्वर से लगभग 20 किलोमीटर दूर खुर्दा जंक्शन पर 30 लोगों के एक समूह ने घेर लिया, धमकाया और जबरन ट्रेन से उतार दिया। इसके बाद उन लोगों को सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने हिरासत में लिया और तीन महिला मानवाधिकार वकीलों के हस्तक्षेप के बाद रविवार शाम को ही जाने दिया। महिला वकीलों में से एक सुजाता जेना ने द टेलीग्राफ को बताया, “वे शनिवार शाम को बरहामपुर से राज्य रानी एक्सप्रेस में सवार हुए थे। उनमें से एक युवक नन का छोटा भाई था।”
    सुजाता जेना ने बताया कि “वे लोग झारसुगुड़ा जा रहे थे, जहाँ से उनकी योजना छत्तीसगढ़ जाने की थी, जहाँ लड़कियों को विभिन्न कौशल और अंग्रेजी बोलने की ट्रेनिंग दी जानी थी।” जेना ने कहा कि चारों युवतियों का चयन करियर काउंसलिंग की कड़ी प्रक्रिया के माध्यम से किया गया था, और वे सभी कैथोलिक थीं। उन्होंने कहा, “ट्रेन में उन्हें परेशान करते हुए नन पर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया गया।” बता दें कि धर्म परिवर्तन, जब तक कि लालच, धोखाधड़ी या जबरन नहीं किया जाता है, अवैध नहीं है।
    उन्होंने कहा, “जांच के दौरान पता चला कि हिरासत में लिए गए सभी लोग 18 साल से अधिक उम्र के थे, सिवाय एक लड़की के, जो 17 साल की थी। सभी पढ़े लिखे हैं। तब उन सभी को पूरी सुरक्षा के साथ और बिना किसी आरोप के रिहा कर दिया गया है। पुलिस ने उनके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया।” जेना ने कहा कि महिलाओं के माता-पिता पुलिस स्टेशन पहुंचे और उन्हें वापस अपने गांव ले गए, इस घटना के बाद वे उन्हें छत्तीसगढ़ जाने देने के लिए तैयार नहीं थे। 
    जीआरपी खुर्दा के प्रभारी निरीक्षक शंकर राव ने कहा: “नन और चारों लड़कियाँ एक-दूसरे को जानती हैं। वे सभी ईसाई हैं। नन बरहामपुर की रहने वाली है। वह न तो धर्म परिवर्तन में शामिल थी और न ही तस्करी में। नन ने (उत्पीड़कों के खिलाफ) कोई एफआईआर दर्ज नहीं कराई है।” सूत्रों ने बताया कि नन केरल में स्थापित एक स्थानीय मण्डली होली फैमिली ऑर्डर से संबंधित है।

    ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों को जिन्दा जलाने की घटना

    22-23 जनवरी 1999 की रात ओडिशा के क्योंझर जिले के मनोहरपुर गांव में एक भयावह घटना घटी। ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो नाबालिग बेटों, 10 वर्षीय फिलिप और 6 वर्षीय टिमोथी, को बजरंग दल के कार्यकर्ता दारा सिंह के नेतृत्व में एक भीड़ ने जिंदा जला दिया। स्टेंस और उनके बेटे एक जंगल शिविर में भाग लेने के बाद अपनी स्टेशन वैगन में सो रहे थे, जब लगभग 50 लोगों की भीड़ ने वाहन पर हमला कर उसे आग के हवाले कर दिया। स्टेंस, जो 1965 से मयूरभंज में कुष्ठ रोगियों की सेवा कर रहे थे, पर कुछ हिंदू संगठनों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया गया था, हालांकि वाधवा आयोग ने इन आरोपों को निराधार पाया। इस घटना ने देश और दुनिया में व्यापक आक्रोश पैदा किया, और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे “घृणित हमला” करार देते हुए दोषियों को जल्द पकड़ने की मांग की थी।
    इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी दारा सिंह को जनवरी 2000 में गिरफ्तार किया गया और 2003 में भुवनेश्वर की एक सीबीआई अदालत ने उन्हें मृत्युदंड सुनाया, जबकि उनके सहयोगी महेंद्र हेम्बरम सहित अन्य को उम्रकैद की सजा दी गई। हालांकि, 2005 में ओडिशा हाई कोर्ट ने दारा सिंह की सजा को उम्रकैद में बदल दिया, और 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा, यह कहते हुए कि हत्या का मकसद स्टेंस को उनकी कथित धार्मिक गतिविधियों के लिए “सबक सिखाना” था। वाधवा आयोग ने बजरंग दल की संगठनात्मक संलिप्तता को खारिज किया, लेकिन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने दारा सिंह के बजरंग दल से संबंधों पर सवाल उठाए, क्योंकि हमलावरों ने “जय बजरंग दल” के नारे लगाए थे। इस घटना ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों की भूमिका पर गंभीर बहस छेड़ दी।

    हिंदू संगठनों द्वारा सम्मान और विवाद

    हैरानी की बात है कि इस जघन्य अपराध के बाद दारा सिंह और उनके समर्थकों को कुछ हिंदू संगठनों द्वारा नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया। दारा सिंह के समर्थन में “दारा सिंह परिजन सुरक्षा समिति” और “दारा सेना” जैसे संगठन बनाए गए, जो उन्हें हिंदू धर्म के रक्षक के रूप में प्रचारित करते थे। 2025 में महेंद्र हेम्बरम की “अच्छे व्यवहार” के आधार पर रिहाई के बाद विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने इसे “अच्छा दिन” बताते हुए स्वागत किया। इस तरह के कदमों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने के आरोपों को और बल दिया। स्टेंस की विधवा ग्लैडिस ने हत्यारों को माफ कर दिया। इस घटना ने भारत में धार्मिक सहिष्णुता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गहरे सवाल खड़े किए, जो आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। गुजरात में बिल्कीस बानो गैंगरेप केस भी इसी वजह से जाना जाता है। बिल्कीस बानो गैंगरेप केस के आरोपियों की सजा माफ कर दी गई। उनका सम्मान किया गया। 
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