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    कहां है वह मंदिर जहां राजा विक्रमादित्य ने 11 बार किया था आत्मबलिदान- जानिए उज्जैन की चमत्कारी कथा

    Janta YojanaBy Janta YojanaOctober 11, 2025No Comments4 Mins Read
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    Harsiddhi Temple Ujjain (Image Credit-Social Media)

    Harsiddhi Temple Ujjain

    Harsiddhi Temple Ujjain: भारत की धरती अनगिनत अजीबों से भरी हुई है। जिनमें यहां मौजूद चमत्कारिक प्राचीन मंदिरों की बड़ी भूमिका है। इन्हीं मंदिरों में शामिल है मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि माता मंदिर। जहां हर सांस में भक्ति की सुगंध घुली है। जहां दीपावली पर सैकड़ों दीपकों से जाग उठती है अलौकिक छटा, जहां मंदिर के हर गलियारे में पौराणिक इतिहास की गूंज सुनाई देती है। महाकाल की नगरी में स्थित हरसिद्धि माता मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि एक ऐसा स्थान भी है जहां इतिहास, रहस्य और श्रद्धा एक साथ मिलकर चमत्कार रचते हैं।

    यह वही मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने माता हरसिद्धि के चरणों में 11 बार अपना सिर अर्पित किया था। इस मंदिर की खूबी है कि आज भी यहां श्रद्धा का चरम भाव महसूस किया जा सकता है।

    हरसिद्धि मंदिर जहां सती की कोहनी गिरी थी

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी सती के जले हुए शरीर को लेकर व्याकुल होकर ब्रह्मांड में घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड किया ताकि शिव का तांडव शांत हो सके। जिस स्थान पर सती की कोहनी गिरी, वह उज्जैन था और वहीं देवी हरसिद्धि का यह शक्तिपीठ बना।

    आज भी यहां विराजमान देवी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और आकर्षक है। मंदिर में माता हरसिद्धि के साथ देवी अन्नपूर्णा और महालक्ष्मी की मूर्तियां स्थापित हैं। नवरात्रि के दिनों में जब सैकड़ों दीप जलते हैं और जयकारों की गूंज के साथ यह मंदिर परिसर स्वर्ग सा नजारा पेश करता है।

    राजा विक्रमादित्य से जुड़ी है भक्ति की अनोखी कथा

    उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य न केवल पराक्रमी शासक थे, बल्कि देवी हरसिद्धि के ऐसे भक्त थे जिनकी आस्था आज भी उदाहरण मानी जाती है। जनश्रुति के अनुसार, हर साल नवरात्रि के दौरान वे माता के चरणों में अपना सिर अर्पित कर देते थे।

    कहा जाता है कि देवी हर बार अपनी कृपा से उन्हें नया सिर प्रदान करती थीं। यह अद्भुत चमत्कार न केवल उनके और देवी के बीच के आध्यात्मिक संबंध को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि सच्ची श्रद्धा, निस्वार्थ, निर्मल और अडिग विश्वास से असंभव से संभव बनाया जा सकता है।

    लेकिन बारहवीं बार जब उन्होंने अपना सिर चढ़ाया, तो वह वापस नहीं आया। कहते हैं, यही वह क्षण था जब सम्राट का सांसारिक जीवन समाप्त हुआ और वे माता की शरण में लीन हो गए। इस कथा को सुनते हुए आज भी श्रद्धालु भावविभोर हो जाते हैं।

    दीप स्तंभों पर दीपावली पर सैकड़ों दीपकों से जाग उठती है अलौकिक छटा

    हरसिद्धि मंदिर के दो ऊंचे दीप स्तंभ इस स्थान की पहचान हैं। करीब 51 फीट ऊंचे ये दीप स्तंभ लाल पत्थर से बने हैं और माना जाता है कि इन्हें स्वयं राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था।

    इन दीप स्तंभों की सुंदरता उस समय चरम पर होती है जब नवरात्रि या दीपावली पर सैकड़ों दीये एक साथ जलाए जाते हैं। जब रात का अंधकार मंदिर परिसर में उतरता है और ये दीप एक साथ प्रज्वलित होते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग से रोशनी उतर आई हो। दो हजार साल पुराने ये स्तंभ न सिर्फ स्थापत्य कला का उदाहरण हैं, बल्कि एक युग की भक्ति का प्रतीक भी हैं।

    महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से कुछ ही दूरी पर स्थित है हरसिद्धि का पवित्र संगम

    हरसिद्धि मंदिर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से कुछ ही दूरी पर है। कहा जाता है कि उज्जैन में दर्शन का क्रम तभी पूर्ण होता है जब भक्त पहले महाकाल के दर्शन करें और फिर माता हरसिद्धि की पूजा करें। यहां हर रोज़ भक्तों की भीड़ लगी रहती है। विशेष रूप से नवरात्रि के समय, मंदिर में दुर्गा सप्तशती पाठ, चंडी यज्ञ और विशेष तांत्रिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। यहां की आरती में शामिल होना किसी आध्यात्मिक अनुभव से कम नहीं होता।

    कैसे पहुंचे हरसिद्धि मंदिर

    उज्जैन धार्मिक पर्यटन के लिहाज से बेहद सुविधाजनक स्थान है।

    रेल से – उज्जैन जंक्शन सीधे दिल्ली, मुंबई, भोपाल, इंदौर समेत कई बड़े शहरों से जुड़ा है।

    सड़क मार्ग से- इंदौर से 55 किमी और भोपाल से लगभग 190 किमी दूर स्थित उज्जैन तक सुगम सड़कें हैं।

    हवाई मार्ग से- सबसे नजदीकी एयरपोर्ट इंदौर का देवी अहिल्या बाई होलकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो महज डेढ़ घंटे की दूरी पर है। रुकने के लिए उज्जैन में धर्मशालाओं से लेकर आधुनिक होटल और गेस्ट हाउस तक हर तरह की व्यवस्था मौजूद है।

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