महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से हलचल मच गई है, क्योंकि एनसीपी के दो धड़ों के बीच विलय की अटकलें तेज हो गई हैं। इस बार चर्चा का केंद्र है एनसीपी (एसपी) के प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार का हाल ही में एक साथ मंच साझा करना। मुंबई में महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक के एक कार्यक्रम में दोनों मिले। इस घटना ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है। इससे पहले दोनों नेता सतारा में रयत शिक्षण संस्था के एक कार्यक्रम में भी एक साथ नजर आए थे। तो क्या यह महज संयोग है, या एनसीपी के दो धड़ों के बीच सुलह और विलय की ओर एक कदम?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर दोनों धड़े अलग कैसे हुए थे। जुलाई 2023 में एनसीपी में उस समय बड़ा विभाजन हुआ, जब अजित पवार ने पार्टी के कई विधायकों के साथ मिलकर शरद पवार से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ गठबंधन कर लिया।
इस विभाजन ने न केवल एनसीपी को दो हिस्सों में बाँट दिया, बल्कि शरद पवार की राजनीतिक विरासत को भी चुनौती दी। अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने जहाँ महायुति गठबंधन के साथ सत्ता में हिस्सेदारी की, वहीं शरद पवार की एनसीपी (एसपी) महा विकास अघाड़ी के साथ विपक्ष में रही। पिछले साल के विधानसभा चुनावों में अजित पवार की एनसीपी ने 59 में से 41 सीटें जीतीं, जबकि शरद पवार की पार्टी केवल 86 में से 10 सीटों पर सिमट गई। इस प्रदर्शन ने अजित पवार के धड़े को मज़बूत स्थिति में ला दिया।
इसी बीच दोनों धड़ों के एक होने की अटकलें आने लगीं। एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि एनसीपी (एसपी) के 10 विधायकों में से कम से कम चार फिर से एकजुट होने के पक्ष में हैं।
शरद पवार ने हाल ही में द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में विलय की संभावना पर टिप्पणी की। इसमें उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के कुछ नेता अजित पवार के साथ फिर से जुड़ने के पक्ष में हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि उनकी बेटी और एनसीपी (एसपी) की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले इस मुद्दे पर अजित पवार के साथ चर्चा कर सकती हैं।
दोनों नेताओं का हाल के दिनों में बार-बार एक साथ दिखना भी इन अटकलों को हवा दे रहा है। मुंबई और सतारा के अलावा पुणे में एआई के उपयोग पर चर्चा के लिए भी दोनों एक मंच पर थे। इसके अतिरिक्त, अजित पवार के बेटे की सगाई के अवसर पर पूरा पवार परिवार एक साथ नज़र आया। इसने व्यक्तिगत और राजनीतिक सुलह की संभावनाओं को और आगे बढ़ाया।
एनसीपी (एसपी) के सूत्रों का दावा है कि शरद पवार का यह क़दम आगामी स्थानीय निकाय चुनावों से पहले पार्टी के भीतर असंतोष को दबाने की रणनीति का हिस्सा है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘चुनावों से पहले कार्यकर्ताओं और निर्वाचित प्रतिनिधियों का मनोबल बनाए रखना ज़रूरी है। यह उसी दिशा में एक क़दम है।’ दूसरी ओर, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि शरद पवार का यह क़दम बीजेपी को यह संदेश देने की कोशिश है कि उनके पास आठ सांसद हैं और वे विपक्ष में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं, खासकर तब जब केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की स्थिति कमजोर है।
हालाँकि, विलय की राह इतनी आसान नहीं है। एनसीपी (एसपी) के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अजित पवार के साथ एकजुट होने का मतलब है बीजेपी का समर्थन करना, जो हमारे लिए वैचारिक रूप से मुश्किल है।’ इसके अलावा, सुप्रिया सुले ने भी साफ़ किया है कि वह इस मुद्दे पर पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से चर्चा के बाद ही कोई फ़ैसला लेंगी।
इन अटकलों का सबसे बड़ा प्रभाव एमवीए गठबंधन पर पड़ सकता है, जिसमें एनसीपी (एसपी), कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) शामिल हैं। अगर एनसीपी के दोनों धड़े एक हो जाते हैं तो यह एमवीए की एकता और रणनीति पर सवाल उठा सकता है। शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने पहले ही टिप्पणी की है कि दोनों एनसीपी धड़े ‘पहले से ही एक साथ’ हैं, जिससे गठबंधन के भीतर अविश्वास का माहौल बन रहा है। दूसरी ओर, कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने सुझाव दिया कि शरद पवार अगली पीढ़ी को फ़ैसला लेने की छूट दे रहे हैं, लेकिन उन्होंने जातिवादी दलों के साथ गठबंधन को सही नहीं ठहराया।
अजित पवार की ओर से भी इस मुद्दे पर कोई साफ़ प्रतिक्रिया नहीं आई है, जो शरद पवार के धड़े में कुछ असंतोष पैदा कर रहा है।
शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। उन्होंने एक बार फिर अपने बयानों और क़दमों से सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। क्या यह विलय की ओर एक सुनियोजित क़दम है या केवल आगामी चुनावों के लिए कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की रणनीति? यह समय ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि दोनों पवारों का एक साथ मंच साझा करना और विलय की अटकलें महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ ला रही हैं। अगर यह विलय होता है तो यह न केवल एनसीपी के भविष्य को आकार देगा, बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की राजनीति को भी प्रभावित करेगा।