पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की तबियत चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर अचानक कैसे खराब हुई क्या उनपर अल्कोहल का प्रभाव था, या पार्टी नेतृत्व की ओर से दिये गये किसी निर्देश का भारी मानसिक दबाव उनको चंडीगढ़ में भर्ती न करा के दिल्ली के अपोलो अस्पताल लाया जाना और इन सबके बावजूद आप नेताओं की चुप्पी बहुत कुछ कहती है।
गंभीर कयास लगाए जा रहे हैं कि भगवंत मान को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है। खबर है कि आम आदमी पार्टी (आप) के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल भगवंत मान के प्रदर्शन से असंतुष्ट हैं और हरियाणा चुनावों के बाद उन्हें बदला जा सकता है। जाहिर है कि इससे मान के नेतृत्व के चारों ओर कई सवाल एक बार फिर से उठने लगे हैं।
पंजाब में मान और आप का उदय
जब 2022 में भगवंत मान को अरविंद केजरीवाल ने पंजाब का नेतृत्व सौंपा, तो यह उम्मीदों से भरा एक कदम था। 117 में से 92 सीटों पर जीत और 42.1% वोट शेयर के साथ, आम आदमी पार्टी की यह ऐतिहासिक जीत एक महत्वपूर्ण राजनीतिक सफलता थी। यह पार्टी का दिल्ली के बाहर पहला पूर्ण राज्य सरकार था, और मान, जो जनता के बीच अपने करिश्मे और लोकप्रियता के लिए जाने जाते थे, को मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त माना गया।
मान, एक कॉमेडियन से नेता बने, हमेशा अपने जनता से जुड़े व्यक्तित्व के लिए जाने जाते रहे हैं। जब 16 मार्च, 2022 को खटकड़ कलां गांव में उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो यह उनकी और पार्टी दोनों के लिए एक विजय क्षण था।
बड़ी उम्मीदें और वादेः भगवंत मान से उम्मीद की गई थी कि वे पंजाब में केजरीवाल मॉडल लाएंगे, जिसमें मुफ्त बिजली, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार सृजन और राज्य के बदनाम ड्रग संकट को सुलझाने के वादे शामिल थे। चुनाव प्रचार के दौरान मान के भाषणों में “हर खेत को पानी, हर हाथ को काम” जैसे नारे गूंजते थे। उन्होंने भ्रष्टाचार-मुक्त पंजाब और नशा-मुक्ति की दिशा में भी अपनी प्रतिबद्धता जताई।
उनकी दृष्टि पंजाब के कृषि को पुनर्जीवित करने, बेहतर सिंचाई प्रणाली और संघर्षरत किसानों को समर्थन देने पर भी केंद्रित थी। साथ ही, उनका वादा राज्य के स्वास्थ्य और शिक्षा बुनियादी ढांचे को सुधारने का था।
वादे बनाम वास्तविकता
शुरुआत में सरकार ने कुछ प्रगति की, लेकिन दो साल बाद मान की सरकार अपेक्षित सुधारों को लागू करने में संघर्ष करती नजर आ रही है। पंजाब की जटिल सामाजिक-राजनीतिक स्थिति, जिसमें सीमा सुरक्षा, नशा तस्करी और कृषि संकट जैसे मुद्दे शामिल हैं, को संभालना मुश्किल साबित हुआ है। इसके परिणामस्वरूप मतदाता निराश हैं और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में चिंता बढ़ रही है।
खालिस्तान का उभार और अमृतपाल प्रकरणः मान के नेतृत्व के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक पंजाब में बढ़ते अलगाववादी तत्वों और कानून-व्यवस्था की गिरावट रही है। पाकिस्तान के साथ साझा सीमाएं पंजाब को आतंकवाद, नशा तस्करी और अलगाववादी आंदोलनों के प्रति संवेदनशील बनाती हैं।
खालिस्तान समर्थक समूह ‘वारिस पंजाब दे’ के नेता अमृतपाल सिंह का उभार मान के नेतृत्व के तहत सरकार की कमजोरियों को उजागर कर गया। कई चेतावनियों के बावजूद, अमृतपाल सिंह और उनके समर्थक अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त रहे, जो अंततः अजनाला पुलिस स्टेशन पर हिंसक हमले में बदल गया। मान सरकार ने इस पर धीमी प्रतिक्रिया दी, और सिंह का लंबे समय तक गिरफ्त से बाहर रहना पुलिस की कार्यक्षमता पर सवाल खड़े कर गया।
इसी प्रकार, पंजाब पुलिस खुफिया विंग मुख्यालय पर RPG हमले और गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने मान की नेतृत्व क्षमता को और कमजोर कर दिया। खासकर मूसेवाला की सुरक्षा वापस लेने के फैसले को उनके हत्या के कुछ दिन पहले बड़ा गलत कदम माना गया, जिससे मान की सुरक्षा प्रबंधन क्षमता पर सवाल उठने लगे।
नशा संकट- एक अधूरा वादाः पंजाब में नशा संकट को सुलझाने का भगवंत मान का वादा उनकी सरकार के सबसे महत्वपूर्ण और अब तक अधूरे वादों में से एक है। सरकार ने 40,000 से अधिक नशा तस्करी से जुड़े लोगों को गिरफ्तार तो किया और 2022 में 1,000 किलो से अधिक हेरोइन भी जब्त की, फिर भी राज्य में नशे की लत व्यापक रूप से फैली हुई है।
मान ने कहा था, “हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक हर आखिरी ड्रग्स सप्लायर जेल में नहीं होता,” लेकिन पंजाब का युवावर्ग अब भी इस नशे की महामारी से ग्रस्त है। पुलिस और राजनीति में फैली गहरी भ्रष्टाचार ने नशा तस्करी रोकने के प्रयासों को बाधित किया है और प्रभावी पुनर्वास योजना लागू नहीं हो सकी है।
केजरीवाल की छाया
भगवंत मान के नेतृत्व पर सबसे बड़ी आलोचनाओं में से एक यह रही है कि वे अरविंद केजरीवाल पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पंजाब सरकार का असली नियंत्रण दिल्ली में AAP नेतृत्व के पास है।राघव चड्ढा को मान का सलाहकार बनाए जाने से इस विचार को और बल मिला कि मान की भूमिका केवल एक नाम मात्र की है और सरकार के फैसले दिल्ली से लिए जा रहे हैं। जब केजरीवाल ने पंजाब के मुख्य सचिव से मान की अनुपस्थिति में मुलाकात की, तो इस धारणा को और मजबूती मिली। पंजाब जैसे स्वाभिमानी राज्य के लिए, जो अपनी राजनीतिक स्वायत्तता और सिख गौरव पर गर्व करता है, यह विचार स्वीकार्य नहीं था।
आंतरिक असंतोष और भ्रष्टाचार के आरोपः AAP के भीतर भी भगवंत मान के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं। पार्टी के कई प्रमुख नेता, जैसे गुरप्रीत सिंह खुसल, संदीप सिंह, और रणजीत सिंह ने हाल के वर्षों में इस्तीफा दिया है। इन नेताओं ने पार्टी के दिशा-निर्देशों से असहमति जताई और मान के नेतृत्व को चुनौती दी। मई 2022 में, स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। इसके बाद फौजा सिंह सरारी और इंदरबीर सिंह निज्जर ने भी भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच अपने मंत्री पद से इस्तीफा दिया। इन घटनाओं ने सरकार की छवि को और कमजोर कर दिया और पार्टी के एंटी-करप्शन एजेंडे को आघात पहुंचाया।
विवादित बयान और सार्वजनिक गलतियां
मान के सार्वजनिक बयानों ने भी उनकी राजनीतिक स्थिति को कमजोर किया है। किसानों के विरोध के दौरान उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व वाले आंदोलन को “अनुचित और अवांछनीय” करार दिया और यह कहा कि “हर प्रदर्शन सही नहीं होता; कुछ राजनीतिक रूप से प्रेरित होते हैं,” जिससे पंजाब के किसानों के बीच नाराजगी बढ़ गई, जो AAP की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
मार्च 2023 में, पंजाब विधानसभा में, मान ने विपक्ष को रोकने के लिए स्पीकर को ‘ताला और चाबी’ सौंप दी, जिससे असेंबली में बवाल मच गया। इसके अलावा, मान को कई चुनावी अधिसूचनाओं को वापस लेने के कारण भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
चुनौतियों के बावजूद उपलब्धियां
इन चुनौतियों के बावजूद, मान सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ भी हासिल की हैं। 300 यूनिट प्रति माह तक की मुफ्त बिजली योजना ने राज्य के लाखों निवासियों को लाभान्वित किया है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।साथ ही, सरकार ने राज्य के शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचे में भी सुधार किया है।
क्या भगवंत मान की कुर्सी खतरे में है
भगवंत मान पंजाब के मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं, यह अभी अनिश्चित है। अगर हरियाणा चुनावों के बाद केजरीवाल मान को बदलने का निर्णय लेते हैं, तो AAP को पंजाब में एक नए चेहरे की जरूरत होगी, जो जनता का विश्वास वापस ला सके। आने वाले महीनों में यह तय होगा कि भगवंत मान अपने नेतृत्व में सुधार कर पाएंगे या AAP एक नए रास्ते पर चलेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और कॉमनवेल्थ थॉट लीडर्स फोरम के संस्थापक हैं।)