Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • ट्रैवल यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा ​और अन्य ​पाकिस्तान के लिए कथित जासूसी में गिरफ्तार
    • रूस ने यूक्रेन में एक यात्री बस पर रूस ने ड्रोन अटैक कर दिया, बस में हुए धमाके में कम से कम 9 लोगों के मारे जाने की खबर
    • मर चुकी मां के गर्भ में पल रहा भ्रूण, 3 महीने बाद लेगा जन्म! दुनिया में छिड़ गई बहस
    • कभी थरूर के लिए कहा था- 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड, आज बीजेपी का सबसे प्रिय शख्स
    • मोदी चले नेहरू की राह पर? शशि थरूर से पहले भी एक PM ने विदेश में मनवाया था भारत का लोहा!
    • Bihar Election 2025: बिहार में कांग्रेस का ‘रील कैप्टन’ कौन? राहुल या कोई और? अपने ही भ्रमजाल में फंसी कांग्रेस
    • PM शरीफ ने माना भारत के ऑपरेशन सिंदूर से नूरखान एयरबेस समेत कई ठिकाने हुए तबाह
    • औरंगजेब पर लाखों खर्च: क्या सच में एक साधारण मकबरे पर पर मेहरबान भारत सरकार, आइए जाने कब्र की सियासत
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » क्या त्योहार अब ‘सांप्रदायिक दंगों के बहाने’ बन गए हैं?
    भारत

    क्या त्योहार अब ‘सांप्रदायिक दंगों के बहाने’ बन गए हैं?

    By March 16, 2025No Comments8 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    ‘क़ानून का शासन’ किसी भी देश की रीढ़ है। यह देश के स्थायित्व की ‘गारंटी’ है। भले ही देश में अनगिनत विचारधाराएँ क्यों न हों लेकिन यदि शासन करने वाला राजनैतिक दल ‘क़ानून के शासन’ से विचलन बर्दाश्त नहीं करता, तब यह मान लेना चाहिए कि देश सुरक्षित है। जिस भी देश में धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता की भरमार है वहाँ राष्ट्रीय एकता और अखंडता सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘क़ानून के शासन’ से ही सुनिश्चित हो सकती है। यह कभी भी हजारों लाखों की संख्या में उपस्थित पुलिस, पैरामिलिट्री और सेना से सुनिश्चित नहीं हो सकती। असल में कानून का शासन संख्याबल, आर्थिक-सामाजिक स्थिति, विचारधारा, जाति, धर्म या लिंग से परे जाकर न्याय का आश्वासन देता है। यही वो आश्वासन है जो हर व्यक्ति और समुदाय में सुरक्षा का एहसास पैदा करता है। और अंत में यही सुरक्षा का एहसास, बिना शर्त राष्ट्र प्रेम को जन्म देता है कानून के शासन की उपस्थिति में देश की अखंडता को कभी नुक़सान नहीं पहुंचाया जा सकता है।

    महान ब्रिटिश न्यायाधीश थॉमस हेनरी बिंघम अपनी शानदार किताब ‘रूल ऑफ़ लॉ’ में लिखते हैं कि “एक ऐसी दुनिया में जो राष्ट्रीयता, नस्ल, रंग, धर्म और संपत्ति के अंतर से विभाजित है, वहाँ कानून का शासन सबसे महान एकीकरण कारकों में से एक है, शायद यह कारक सबसे महान, और संभवतः एक सार्वभौमिक धर्मनिरपेक्ष, धर्म के सबसे करीब है, जहां तक हम पहुंच सकते हैं।” बिंघम अपनी किताब ‘रूल ऑफ़ लॉ’ में यह भी लिखते हैं कि देश को ऐसे नेताओं की अधिक जरूरत है जो क़ानून के शासन को समझते हों क्योंकि बिंघम यह मानते हैं कि क़ानून का शासन सिर्फ़ एक न्यायप्रिय समाज को ही नही जन्म देता बल्कि यह एक ऐसा माहौल तैयार करता है जिस माहौल में देश विकास करते हैं और समृद्ध बनते हैं। 

    लेकिन तब क्या होगा जब किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री यह बात कहने लगे कि “होली साल में एक बार पड़ती है, जुमे की नमाज़ तो हर सप्ताह पड़नी है। अगर कोई व्यक्ति नमाज़ पढ़ना ही चाहता है तो अपने घर में पढ़ सकता है। ज़रूरी नहीं कि वह मस्जिद में ही जाए। जाना है तो रंग से परहेज न करे”, ऐसे हालात में वह समाज को कैसा संदेश दे रहा होता है मुझे तो यह लगता है कि जब वह ऐसा बोलता है तब वह क़ानून के शासन से विचलन की बात कर रहा होता है। एक विविधता भरे देश में उस माहौल का क्या होगा जब उसी प्रदेश का एक पुलिस अधिकारी यह कहता है कि- “होली एक ऐसा त्योहार है, जो साल में एक बार आता है, जबकि शुक्रवार की नमाज साल में 52 बार होती है। अगर किसी को होली के रंगों से असहजता महसूस होती है, तो उन्हें उस दिन घर के अंदर रहना चाहिए”, मुझे लगता है, निश्चित रूप से यह पुलिस अधिकारी तब क़ानून के शासन से विचलन की बात कर रहा होता है।

    कहीं ना कहीं यह इस बात की भी स्वीकारोक्ति है कि समाज में विभाजन के रास्ते, सत्ता में बने रहने को ऐसे नेता बुरा नहीं मानते। प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले ये मुख्यमंत्री एक ऐसे शासन को प्रोत्साहित करने में लगे हैं जिसमें पुलिस और प्रशासन खुलकर एक धर्म की बात करने में लगा हुआ है। मैं इस कॉलम में यह बताना जरूरी नहीं समझती कि बात किस राज्य की हो रही है लेकिन कॉलम पढ़ने वाले यह अवश्य समझ जाएँगे कि मैं धर्मान्धता की ओर बढ़ने वाले किस राज्य की बात कर रही हूँ। भारत ने भले ही आधिकारिक रूप से न्याय की देवी की मूर्ति की आँखों से पट्टी हटा दी हो लेकिन मैं आज भी यही मानती हूँ कि कानून का शासन और संबंधित न्याय टोपी, तिलक या पगड़ी की राजनैतिक शक्ति के आधार पर नहीं बल्कि अपराध के आधार पर होना चाहिए।

    इस बड़े से सांस्कृतिक बहुलता वाले प्रदेश का यह मुख्यमंत्री चाहता है कि लोग उसे बहुत ‘मजबूत’ प्रशासक के रूप में देखें। लेकिन असल में ऐसी विक्षिप्त कार्यशैली किसी मजबूत प्रशासक की हो ही नहीं सकती। उसके राज्य में दो समुदायों के बीच में इतनी घृणा परोस दी गई है कि दोनों समुदायों का हर एक त्योहार ‘कानून और व्यवस्था’ का प्रश्न बन जाता है। उसके प्रदेश में हिंदुओं को होली मनानी थी इसलिए लगभग 200 मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया गया जिससे धार्मिक रूप से बदहवास भीड़ किसी मस्जिद में रंग ना डाल दे और मस्जिद वाले भी इतना परेशान कि कहीं एक बूँद रंग ना पड़ जाए। इसके बावजूद राम को मस्जिदों में स्थापित करने की चाहत रखने वाले वाले कुछ बेरोजगार भटके हुए युवा मस्जिदों की दीवारों पर ‘जय श्री राम’ लिख आए। 

    इस प्रदेश की क़ानून व्यवस्था का आलम ऐसा है कि कई जिलों में हजारों पुलिस वालों को सिर्फ़ इसलिए तैनात किया गया जिससे हर रोज़ धर्मान्धता का इंजेक्शन लेने वाली भीड़ कोई दंगा ना कर बैठे। इस प्रदेश में क़ानून व्यवस्था के नाम पर हर त्योहार में ख़ाकी परेड बिल्कुल आम बात हो चुकी है।

    प्रदेश का मुख्यमंत्री संविधान से पहले धर्म की बात करता है, पुलिस कानून के पहले धर्म की बात करती है, अन्य नेता और विधायक जिन पर कानून बनाने की जिम्मेदारी है वो दूसरे समुदायों के लोगों को पाकिस्तान भेजने पर आमादा हैं। पूरे प्रदेश का नेतृत्व एक धार्मिक सर्कस बनकर रह गया है। लोगों को घरों पर रहकर नमाज़ पढ़ने की नसीहत देने वाले नेताओं में इतना भी साहस नहीं कि वो कह दें कि मस्जिदें भी खुली रहेंगी, मंदिर भी खुलेगा, जुलूस भी निकलेगा और नमाज़ भी पढ़ी जाएगी। जो भी कानून के साथ खिलवाड़ करेगा, कानून व्यवस्था बिगाड़ेगा, वह किसी भी धर्म से ताल्लुक रखता हो उसके साथ सख्ती से निपटा जाएगा। 

    ऐसा साहस ऐसी समझ इस प्रादेशिक नेता और ऐसे अन्य नेताओं में नहीं है। ऐसे नेताओं ने देश के माहौल को इतना खराब कर दिया है कि ऐसा साहस दिखाएं तो पहले अपनी प्रशिक्षित धर्मांध भीड़ को यह भी समझाना होगा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के धर्म और जाति और उसके धर्म और जाति की व्यक्तिगत समझ के आधार पर यह प्रदेश नहीं चलेगा, प्रदेश चलेगा तो सिर्फ़ और सिर्फ़ कानून की धाराओं और संविधान के अनुच्छेदों से चलेगा। कानून की धाराएँ कानून तोड़ने वालों का धर्म नहीं देखेंगी और संविधान के अनुच्छेद यह सुनिश्चित करेंगे कि धर्म को लेकर प्रदान की गई मौलिक अधिकारों की गारंटी से किसी भी समुदाय को वंचित नहीं किया जाएगा। 

    लेकिन दुर्भाग्य यह है कि होली से पहले इस प्रदेश का मुख्यमंत्री खुलेआम टीवी चैनल पर, पूरे देश को यह बता चुका था कि उसका धर्म क्या है, वह किस धर्म के पक्ष में खड़ा है, अगर समझौता करना है तो किस धर्म को करना पड़ेगा, अधिकारों का हनन होगा तो किस धर्म का होगा, पीछे हटना पड़ा तो किस धर्म के लोगों को हटना पड़ेगा, किस धर्म की इमारतें ढकी जायेंगी और पहलवानों के रूप में भर्ती किए गए पुलिस अधिकारी किस धर्म के साथ खड़े रहेंगे। यह संविधान से चलने वाला प्रदेश नहीं जान पड़ता है। उस मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बनने की इतनी अधिक जल्दी है कि वो पूरे देश के भीतर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के रास्ते से ‘मजबूत’ नेता की छवि बनाने में लगा हुआ है। उसके सत्ता में बने रहने की चाहत का ख़ामियाज़ा भारत की एकता और अखंडता को उठाना पड़ सकता है।  

    बीते दस सालों में भारत में त्योहार “सांप्रदायिक दंगों के बहाने” बनते जा रहे हैं। यदि मस्जिदें ढक दिए जाने से ‘सुकून’ मिलता है तो ढकी रहने दो मस्जिदें पर क्या गारंटी है कि कल तुम्हें उनकी जालीदार टोपी नहीं अखरेगी उनकी दाढ़ी नहीं अखरेगी क्या यह खेल असल में सत्ता का खेल है। 

    हम सभी समझते हैं कि किसी भी देश की सांप्रदायिक एकता उसकी ‘गोल्ड करेंसी’ होती है। इसका जितना अधिक भंडारण होगा देश उतना ही अधिक स्थायी और अखंड रहेगा। लेकिन सत्ता के लालच में सांप्रदायिक एकता की इस गोल्ड करेंसी को उड़ाया जा रहा है। हर बार सत्ता में अपने पैर मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक एकता का भंडार कम कर दिया जा रहा है और देश को कमजोर कर दिया जा रहा है। सिविल सोसाइटी को मजबूती से इसका सामना करना पड़ेगा जिससे यह राष्ट्र सुरक्षित रहे। अगर देश को ऐसे असभ्य और अनपढ़ नेताओं के भरोसे छोड़ दिया जो उर्दू को मुसलमानों और होली को हिंदुओं से जोड़कर देखते हैं तब तो देश बचाना मुश्किल हो जाएगा।

    नज़ीर बनारसी को पढ़ना चाहिए-  

    अगर आज भी बोली-ठोली न होगी 

    तो होली ठिकाने की होली न होगी

    बड़ी गालियाँ देगा फागुन का मौसम 

    अगर आज ठट्ठा ठिठोली न होगी।

    क्या कहीं से लगता है कि ये मशहूर शायर किसी एक खास धर्म का है किसी एक खास ज़बान का इस्तेमाल करने वाला है बिल्कुल नहीं! भाषा ऐसी कि मानो सांप्रदायिक एकता खूँटा गाड़ के बैठ गई हो, धार्मिक पहचान से ज़्यादा सांस्कृतिक पहचान हावी है, समरसता, एकता और मस्ती का हुजूम है। यह सब कुछ पढ़ना सुनना चाहिए आज की युवा, बेरोजगार और धर्मांध हो चुकी भीड़ को जिससे इस देश से इसकी विविधता से इसकी एकता से इसके भ्रातृत्व के साथ सैकड़ों-हजारों सालों तक कोई इस तरह खेल न सके जैसा खेल प्रदेश के मुखिया खेल रहे हैं   

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleस्टारबक्स को डिलीवरी ड्राइवर माइकल गार्सिया को देना होगा 434.78 करोड़ रुपए का मुआवजा
    Next Article Holi Ka Itihas: होली का इतिहास, किन राज्यों में कैसे मनाई जाती है होली यहाँ जाने

    Related Posts

    ट्रैवल यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा ​और अन्य ​पाकिस्तान के लिए कथित जासूसी में गिरफ्तार

    May 17, 2025

    कभी थरूर के लिए कहा था- 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड, आज बीजेपी का सबसे प्रिय शख्स

    May 17, 2025

    सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंजूरी के ‘एक्स-पोस्ट-फैक्टो’ रास्ते को अवैध घोषित किया

    May 17, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    किसान मित्र और जनसेवा मित्रों का बहाली के लिए 5 सालों से संघर्ष जारी

    May 14, 2025

    सरकार की वादा-खिलाफी से जूझते सतपुड़ा के विस्थापित आदिवासी

    May 14, 2025

    दीपचंद सौर: बुंदेलखंड, वृद्ध दंपत्ति और पांच कुओं की कहानी

    May 3, 2025

    पलायन का दुश्चक्र: बुंदेलखंड की खाली स्लेट की कहानी

    April 30, 2025

    शाहबाद के जंगल में पंप्ड हायड्रो प्रोजेक्ट तोड़ सकता है चीता परियोजना की रीढ़?

    April 15, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    रूस ने यूक्रेन में एक यात्री बस पर रूस ने ड्रोन अटैक कर दिया, बस में हुए धमाके में कम से कम 9 लोगों के मारे जाने की खबर

    May 17, 2025

    मर चुकी मां के गर्भ में पल रहा भ्रूण, 3 महीने बाद लेगा जन्म! दुनिया में छिड़ गई बहस

    May 17, 2025

    PM शरीफ ने माना भारत के ऑपरेशन सिंदूर से नूरखान एयरबेस समेत कई ठिकाने हुए तबाह

    May 17, 2025
    एजुकेशन

    बैंक ऑफ बड़ौदा में ऑफिस असिस्टेंट के 500 पदों पर निकली भर्ती, 3 मई से शुरू होंगे आवेदन

    May 3, 2025

    NEET UG 2025 एडमिट कार्ड जारी, जानें कैसे करें डाउनलोड

    April 30, 2025

    योगी सरकार की फ्री कोचिंग में पढ़कर 13 बच्चों ने पास की UPSC की परीक्षा

    April 22, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.