भोपाल में मंत्रियों और अफसरों के सरकारी बंगलों के पुनर्निर्माण के प्रस्ताव के खिलाफ लगातार प्रदर्शन जारी हैं. शुक्रवार की शाम भी शिवाजी नगर के 6 नंबर इलाके में सैकड़ों की संख्या में लोग इकठ्ठा हुए और सरकार से फैसले को वापस लेने की मांग की. हाथ में तख्तियाँ लेकर और सरकार को इस फैसले के खिलाफ संकल्प पत्र लिखते हुए शिवाजी नगर, तुलसी नगर सहित भोपाल के अलग-अलग हिस्से से यहाँ लोग इकठ्ठा हुए. प्रदर्शन में शामिल कुमुद सिंह हमसे बात करते हुए कहती हैं,
“सरकार का यह फैसला उनकी अदूरदर्शिता दिखाता है.”
दरअसल सरकार की प्रस्तावित परियोजना के तहत 2 हज़ार 378 करोड़ के बजट से मंत्रियों के लिए 30 बंगले और अधिकारियों के लिए 3 हज़ार से ज़्यादा बंगले बनने हैं. हालाँकि इस प्रस्ताव के निरस्त होने की एक खबर भी वायरल हुई थी मगर हमारी पड़ताल में यह खबर ग़लत पाई गई. इस विवाद के बीच सम्बंधित विभाग के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि 29 हज़ार पेड़ काटे नहीं बल्कि स्थानांतरित (transplantation) किए जाएँगे. मगर सवाल यह है कि क्या वाकई भोपाल नगर निगम या फिर वन अमला इतना सक्षम है कि इतनी बड़ी संख्या में पेड़ स्थानांतरित किए जा सकें?
तुलसी नगर इलाके में दोपहर में वृक्ष के नीचे आराम फ़रमाते कामगार
वृक्षों के स्थानांतरण का भारतीय परिदृश्य
उपर्युक्त सवाल पर बात करने से पहले यह समझ लेते हैं कि वृक्षों को काटने की अनुमति आखिर मिलती कैसे है? भोपाल नगर निगम की अपर आयुक्त निधि सिंह ग्राउंड रिपोर्ट को बताती हैं,
“यदि कहीं पेड़ काटे जाने हैं तो उसकी अनुमति देने का काम नगर निगम करता है. यदि काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या अधिक है, उदहारण के लिए 4 या 5 हज़ार तो आवेदनकर्ता को पहले पर्यावरण वानिकी मंडल की अनुमति आवश्यक होती है.”
हमने वन विभाग के अधिकारियों से भी यह जानने की कोशिश की कि वह किस आधार पर यह अनुमति देते हैं? इसके लिए हमने भोपाल के ज़िला वन अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की मगर उन्होंने व्यस्तताओं के चलते बात करने से इनकार कर दिया. उनका जवाब मिलने पर खबर अपडेट कर दी जाएगी.
मगर पेड़ों को काटा जाना और उन्हें स्थानांतरित किया जाना दो अलग-अलग बात हैं. 29 हज़ार पेड़ों को स्थानांतरित किए जाने की बात पर राष्ट्रिय मानव स्थापन एवं पर्यावरण केंद्र (NCHSE) के डीजी डॉ. प्रदीप नन्दी सवाल उठाते हुए कहते हैं,
“इतने बड़े पेड़ों को ट्रांसफर करना नामुमकिन है. पेड़ एक ‘लिविंग ऑर्गैनिज्म होते हैं उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने पर भी नुकसान होता ही है.”
साल 2021 में वन अनुसंधान संस्थान (FRI), देहरादून ने केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के समक्ष वृक्षों के स्थानान्तरण से सम्बंधित एक रिपोर्ट पेश की. इसमें 17 प्रदेशों के वृक्ष स्थानांतरण के आँकड़ों का अध्ययन किया गया. रिपोर्ट के अनुसार पाँच राज्यों ने वन अनुसंधान संस्थान को बताया कि उन्होंने वृक्षों का कभी भी स्थानान्तरण नहीं किया है. इन 5 राज्यों में मध्यप्रदेश भी शामिल है. इसके अलावा केरल, मेघालय, हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा शामिल है. साथ ही रिपोर्ट में बताया गया कि इन राज्यों के वन विभाग के पास ऐसे संसाधन भी नहीं है कि वह ऐसी विशेषज्ञतापूर्ण गतिविधि कर सकें.
डॉ. नन्दी भी प्रशासन में विशेषज्ञों की अनुपस्थिति को रेखांकित करते हैं. वह कहते हैं कि शहर के विकास के लिए योजना बनाने वाले विभागों के पास ऐसे विशेषज्ञ नहीं हैं जो पर्यावरणीय क्षति को कम करने में मदद कर सकें.
क्या स्थानान्तरण बेहतर विकल्प है?
प्रदर्शन में शामिल बिंदिया 29 हज़ार वृक्षों को स्थानांतरित करने की बात को बचकाना मानती हैं. वह कहती हैं,
“मुझे यह नहीं समझ आता कि ऊपर बैठकर ऐसे बचकाने फ़ैसले लेता कौन है? हमने इससे पहले भी स्थानान्तरण देखे हैं मगर भारी पैसों की बर्बादी के अलावा इससे कुछ भी हासिल नहीं होता.”
प्रदर्शन कर रहे लोगों के अनुसार वृक्षों का स्थानान्तरण एक बचकाना ख्याल है
वह कहती हैं कि प्रशासन खुद नहीं जानता कि जितने पेड़ उन्होंने स्थानांतरित किए थे उनमें से कितने पेड़ बचे. वन अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट भी बताती है कि 12 राज्यों में से केवल उत्तरप्रदेश ही ऐसा उदाहरण है जहाँ स्थानांतरित किए गए वृक्ष 5 सालों के बाद भी जीवित थे. वहीँ भोपाल का हाल यह है कि यहाँ प्रशासन को यह पता ही नहीं है कि कितने वृक्ष अब तक जिंदा हैं. 13 जून को स्थानीय दैनिक पीपुल्स समाचार की एक खबर के अनुसार बीते 10 वर्षों में निगम ने 1450 पेड़ स्थानांतरित किए हैं मगर इनमें से कितने जिंदा हैं इसका आँकड़ा नहीं है.
गौरतलब है कि बीते 10 सालों में 10 हज़ार से भी ज़्यादा पेड़ भोपाल में काटे गए हैं. ऐसे में इतनी कम संख्या में स्थानान्तरण यह दिखाता है कि हर प्रोजेक्ट में पेड़ों को काटना ही चुना गया है. वहीँ ग्राउंड रिपोर्ट की एक रिपोर्ट में हमने बताया है कि कैसे विकास कार्यों के लिए कटने वाले पेड़ों के बदले क्षतिपूरक वृक्षारोपण के बजाय सम्बंधित विभाग ने क्षतिपूर्ति राशि देकर वृक्ष काटना ही चुना है. ऐसे में इस बार वृक्षों को स्थानांतरित किया जाएगा इसकी सम्भावना कम है.
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