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    Home » गांधी के अपमान के बहाने आंबेडकर के अपमान को ठिकाने लगाने की कोशिश
    भारत

    गांधी के अपमान के बहाने आंबेडकर के अपमान को ठिकाने लगाने की कोशिश

    By December 30, 2024No Comments8 Mins Read
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    अटल बिहारी वाजपेई की 100वीं जयंती पर पटना में आयोजित भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रम में लोक गायिका देवी को गांधीजी के प्रिय भजन गाने पर माफी मांगनी पड़ी। एक लोकगीत के बाद गायिका देवी ने ‘रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम’ भजन गाना शुरू किया। लेकिन जैसे ही उन्होंने “ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान!” गाया, बापू सभागार में मौजूद तमाम भाजपा  कार्यकर्ताओं ने ‘अल्लाह’ शब्द का विरोध करना शुरू कर दिया। यह विरोध यहां तक पहुंच गया कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने गायिका देवी पर दबाव डाला कि वह इसके लिए माफी मांगें, सॉरी कहें।

    गायिका देवी ने मौजूद भाजपा कार्यकर्ताओं और संघी हिंदुत्ववादियों के समक्ष माफी मांगी। इसके बाद पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे ने जोर-जोर से ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए। प्रश्न यह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्रिय भजन गाने पर एक लोक गायिका से माफी मंगवाने के क्या मायने हैं प्रथम दृष्टया यह घटना गांधीजी और  गायिका देवी के अपमान से जुड़ी हुई है, इसलिए यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या अब इस देश में गांधी का भजन गाना जुर्म हो गया है 

    दरअसल, संघी प्रयोगशाला में मुसलमान, अल्लाह, खुदा, मस्जिद जैसे शब्दों के प्रति इतनी नफरत घोल दी गई है कि जैसे ही ये शब्द कान में पड़ते हैं, प्रतिरोध का गुबार खड़ा हो जाता है। भाजपा ने आईटी सेल द्वारा परोसे गए ज्ञान और नफरत के जरिए अपने समर्थकों को एक जोंबी ग्रुप में तब्दील कर दिया है। यही कारण है कि जैसे ही उन्होंने अल्लाह शब्द सुना, ‘भक्तों’ को लगा जैसे किसी ने उनके कानों में खौलता हुआ तेल उड़ेल दिया। इसीलिए वे बेचैन होकर गायिका देवी के खिलाफ चिल्लाने लगे। नतीजे में गायिका देवी को माफी मांगनी पड़ी। 

    Bhojpuri Singer Devi कल से चर्चा में बनी हुई हैं वजह है उनका गाया भजन जिसका बीजेपी के नेताओं ने जमकर विरोध किया गायिका देवी को मांफी तक मांगनी पड़ गई..वही इस मामले में अब JDU, BJP आपस में भिड़ गई #devi #bhojpuri #bjp #jdu pic.twitter.com/Mof8VyLWjo

    — Bihar Tak (@BiharTakChannel) December 27, 2024

    लेकिन क्या यह मामला सिर्फ गांधी और गायिका देवी के अपमान तक महसूद है या इसके पीछे कोई बड़ा खेल छिपा हुआ है इसकी पड़ताल करने के लिए आयोजन  और अपमान की टाइमिंग को समझने की जरूरत है। यह घटना 25 दिसंबर की है। जबकि इसका वीडियो एक दिन बाद 26 दिसंबर की शाम को वायरल होता है। इसके बाद अचानक तमाम टीवी चैनलों पर इसकी चर्चा शुरू हो जाती है। क्या प्राइम टाइम डिबेट के लिए यह खबर वायरल की गई थी 

    दरअसल, 26 दिसंबर को ही कांग्रेस पार्टी ने ‘बेलगाम कांग्रेस’ के 100 वर्ष पूरे होने पर कर्नाटक के उसी शहर, जो आज बेलगावी कहा जाता है, में अपनी वर्किंग कमेटी का अधिवेशन किया। बेलगाम कांग्रेस (1924) के लिए महात्मा गांधी पहली और आखरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। इस अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए गांधीजी ने हिन्दू – मुस्लिम एकता और खादी के साथ अस्पृश्यता निवारण को कांग्रेस के कार्यक्रम में शामिल किया। दरअसल, गांधी ने कांग्रेस को जमीन पर उतारने के लिए राजनीतिक आंदोलन के साथ सामाजिक कार्यक्रमों पर जोर दिया।

    यही कारण है कि कांग्रेस गांधी के नेतृत्व में तेजी से सामान्य लोगों के बीच लोकप्रिय हुई। गरीबों, वंचितों, किसानों के साथ-साथ दलितों और आदिवासियों को जोड़ने के लिए गांधी ने सुनियोजित कार्यक्रम शुरू किए। यही कारण है कि धीरे-धीरे कांग्रेस के साथ समूचा देश चल पड़ा। दलितों की मुक्ति के सवाल पर आगे चलकर उनका मुकाबला कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई करके भारत लौटे प्रभावशाली, बौद्धिक और अपने समाज के लिए समर्पित डॉ. आंबेडकर से हुआ। 

    डॉ. आंबेडकर कांग्रेस और गांधीजी के अस्पृश्यता निवारण कार्यक्रम से संतुष्ट नहीं थे। वह त्वरित गति से सामाजिक बदलाव चाहते थे। लेकिन गांधीजी ब्राह्मणवादी सवर्णों का हृदय परिवर्तन की आकांक्षा लेकर उनके भीतर अपराध बोध पैदा करके दलितों का उद्धार करना चाहते थे। कहा जा सकता है कि दोनों का लक्ष्य एक ही था, लेकिन रास्ता और गति में काफी अंतर था। बावजूद इसके, अपवादों को छोड़कर दोनों एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखते थे।

    गांधीजी ने डॉ अंबेडकर को संविधान सभा में शामिल करने और प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाने के लिए नेहरू और पटेल को निर्देशित किया। डॉ. अंबेडकर ने गांधीजी के विश्वास को बरकरार रखते हुए भारत को एक बेहतरीन संविधान दिया, जिसे ग्रेनविल ऑस्टिन ने सामाजिक न्याय का दस्तावेज कहा है। इसके साथ ही डॉ अंबेडकर ने अपने जीवन- संघर्ष और विचारों के जरिए दलित-वंचित -शोषित समाज को सुनहरे भविष्य का सपना भी दिया।

    बेलगावी अधिवेशन में कांग्रेस ने अपने भीतर बड़ा बदलाव किया है। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में और राहुल गांधी की वैचारिक स्पष्टता एवं संघर्ष के संकल्प के साथ कांग्रेस एक नए युग में प्रवेश कर रही है। पहली बार कांग्रेस महात्मा गांधी और डॉ आंबेडकर को एक साथ स्थापित करके संविधान बचाने की मुहिम को जमीन पर उतारने जा रही है। जाहिर तौर पर 26 दिसंबर के लिए प्राइम टाइम डिबेट का यह बड़ा मुद्दा था। लेकिन पटना में महात्मा गांधी के प्रिय भजन और लोक गायिका के अपमान के मुद्दे के जरिए भाजपा ने हैडलाइन मैनेजमेंट ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस अधिवेशन को पूरी तरह से ब्लैकआउट कर दिया। लेकिन इस घटनाक्रम के पीछे असल कारण कोई और है।

    शीतकालीन सत्र के दौरान अमित शाह ने संसद में बाबा साहब डॉ. अंबेडकर का अपमान किया था। संविधान और डॉ अंबेडकर को लेकर पिछले कुछ समय से मुखर विपक्ष को घेरते हुए अमित शाह ने बड़े हिकारत से कहा था कि ‘आजकल अंबेडकर… अंबेडकर करना फैशन हो गया है। अगर इतनी बार भगवान का नाम लिया होता तो सात जन्म के लिए स्वर्ग मिल जाता।’ इस मुद्दे पर कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने अमित शाह से माफी मांगने और इस्तीफा देने की मांग करते हुए संसद से सड़क तक विरोध किया। इसके मुकाबले में भाजपा और आरएसएस को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था।

    हालांकि नरेंद्र मोदी ने एक दिन में लगातार पांच ट्वीट करके अमित शाह को बचाने की पुरजोर कोशिश की। लेकिन उतनी ही आक्रामकता के साथ कांग्रेस पार्टी ने अमित शाह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। राहुल गांधी ने नीले रंग की टीशर्ट पहनकर ‘मैं भी अंबेडकर’ लिखे नारे वाले पोस्टर के साथ संसद में प्रदर्शन किया। राहुल गांधी पिछले दो साल से लगातार संविधान और सामाजिक न्याय की आवाज बुलंद कर रहे हैं। पचास फ़ीसदी आरक्षण की सीमा को बढ़ाने, जाति जनगणना और दलित, ओबीसी, आदिवासियों को सभी क्षेत्रों में समुचित प्रतिनिधित्व देने की बात वे लगातार कर रहे हैं।

    भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी डॉ अंबेडकर की जन्मस्थली महू गए। लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने संविधान बचाने की मुहिम चलाई। नतीजा यह हुआ कि चार सौ सीटें जीतने का सपना देखने वाली भाजपा बहुमत भी हासिल नहीं कर पाई। राहुल गांधी और विपक्ष ने इस बात को पहचान लिया कि संविधान और डॉ अंबेडकर के सम्मान को लेकर देश का दलित वंचित समाज बेहद सचेत और आक्रामक है। अम्बेडकरवादी तबका किसी भी कीमत पर बाबा साहब के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकता।

    आज की राजनीति और सामाजिक आंदोलन के सबसे बड़े नायक डॉ अम्बेडकर हैं। हिंदुत्व के हमले के मुकाबले अम्बेडकरवाद सीना तानकर खड़ा है। अम्बेडकरवाद आज विपक्ष का अचूक हथियार बन गया है। पार्लियामेंट में पहली बार ‘जय भीम’ का नारा गूंजा। इन परिस्थितियों में अमित शाह के पास बचने का कोई रास्ता नहीं था। मिजाज के मुताबिक अमित शाह ने अपने बयान पर कोई माफी नहीं मांगी। इसलिए उनका विरोध बढ़ता चला गया।

    इससे उबरने और डॉ अंबेडकर के अपमान के मुद्दे को भटकाने के लिए ही क्या पटना की घटना को अंजाम दिया गया यह घटना कहीं महात्मा गांधी के अपमान के जरिए डॉ आंबेडकर के अपमान को किनारे लगाने का खेल तो नहीं है अगर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल महात्मा गांधी के अपमान पर मुखर होते हैं और डॉ आंबेडकर के अपमान को भूल जाते हैं तो निश्चित तौर पर अमित शाह बहुत राहत महसूस करेंगे। संभवतया इसीलिए पटना में इस पूरे खेल की साजिश रची गई।

    प्रमाण के तौर पर लोक गायिका देवी के वक्तव्य का विश्लेषण किया जा सकता है। गायिका देवी ने खुद स्वीकार किया है कि भाजपा के पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे और उनके बेटे ने उन्हें भजन गाने की लिए कहा था। गायिका देवी भाजपा नेता अश्विनी चौबे और उनके बेटे के बेहद नजदीक हैं। संभव है कि अश्विनी चौबे के बेटे ने गायिका देवी से गांधी का भजन गाने का इशारा किया हो। भाजपा इस तरह के खेल खेलने में बहुत माहिर है। क्या विपक्ष इस खेल का समझ पाएगा

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