मनरेगा के एक सामान्य ऑडिट ने पीएम मोदी के गुजरात में एक बड़े भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ कर दिया है। इस मामले में एक मंत्री का एक बेट गिरफ़्तार किया गया है तो दूसरा फ़रार है। एक अधिकारी की भी गिरफ़्तारी हुई है। कई और बड़े लोग इस मामले में फँस सकते हैं।
दरअसल, यह मामला गुजरात के दाहोद जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा योजना का है। इसके तहत 71 करोड़ रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ है। इस मामले में राज्य के पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री बच्चूभाई खाबड़ के बेटे बलवंत खाबड़ को शनिवार को गिरफ्तार किया गया, जबकि उनके छोटे भाई किरण खाबड़ फरार हैं। पुलिस ने इस घोटाले में शामिल अन्य छह लोगों को भी हिरासत में लिया है और जाँच में घोटाले की राशि 200 करोड़ रुपये तक पहुँचने की संभावना जताई जा रही है। इस घटना ने गुजरात की ग्रामीण विकास व्यवस्था में गंभीर खामियों को उजागर किया है। इससे राजनीतिक हलकों में हंगामा मच गया है।
दाहोद पुलिस के अनुसार यह घोटाला 2021 से 2024 के बीच हुआ। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इसमें फर्जी दस्तावेजों और नकली प्रोजेक्ट के ज़रिए मनरेगा फंड में हेराफेरी की गई। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए आवंटित फंड को कुछ निजी एजेंसियों और व्यक्तियों ने हड़प लिया। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पुलिस ने बताया कि बलवंत खाबड़ की कंपनी मनरेगा परियोजनाओं के लिए अनुबंधित थी। आरोप है कि इसने बिना कोई काम किए भुगतान प्राप्त किया और फर्जी बिलों व दस्तावेजों के आधार पर लाखों रुपये का भुगतान इन एजेंसियों को किया गया।
अधिकारी भी गिरफ़्तार
इस मामले में पूर्व तालुका विकास अधिकारी दर्शन पटेल को भी गिरफ्तार किया गया है। इन पर फर्जी दस्तावेजों को मंजूरी देने का आरोप है। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस का कहना है कि आरोपी किरण खाबड़ अभी फरार हैं और उनकी तलाश के लिए विशेष टीमें बनाई गई हैं।
बलवंत खाबड़ और दर्शन पटेल को शनिवार को गिरफ्तार किया गया और कोर्ट ने दोनों को पांच दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया। पुलिस ने बताया कि जाँच अभी शुरुआती चरण में है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि घोटाले की राशि 200 करोड़ रुपये तक हो सकती है।
पुलिस ने यह भी खुलासा किया कि खाबड़ से जुड़ी फर्मों को बिना किसी जांच के भुगतान किए गए, जिससे इस घोटाले में प्रशासनिक लापरवाही की भी बात सामने आई है। दाहोद के पुलिस अधीक्षक ने कहा, ‘हम इस मामले में सभी आरोपियों को पकड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जाँच में और भी बड़े खुलासे होने की संभावना है।’
इस घोटाले ने गुजरात में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मामले में विशेष जांच दल यानी एसआईटी की मांग की है। गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता अमित चावड़ा ने आरोप लगाया कि खाबड़ से जुड़ी फ़र्मों को वर्षों तक बिना जाँच के भुगतान किए गए और यह सत्तारूढ़ दल की संलिप्तता को दिखाता है। उन्होंने कहा, ‘यह गरीबों के लिए बनाई गई योजना का पैसा है, और इसे लूटा गया। सरकार को इसकी निष्पक्ष जांच करानी चाहिए।’
मनरेगा योजना ग्रामीण भारत में रोजगार सृजन और गरीबी उन्मूलन के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। इस घोटाले ने न केवल इस योजना की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि उन ग्रामीण श्रमिकों के हक पर भी डाका डाला है, जिन्हें इस योजना के तहत रोजगार और मजदूरी मिलनी थी। दाहोद जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में गरीबी और बेरोजगारी पहले से ही बड़ी समस्याएं हैं, वहाँ इस तरह का घोटाला स्थानीय समुदाय के लिए गंभीर झटका है।
गुजरात सरकार ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई का दावा किया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, चाहे उनकी स्थिति कुछ भी हो। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि मनरेगा योजना के तहत भविष्य में ऐसी अनियमितताओं को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र लागू किया जाएगा।
पुलिस ने कहा कि किरण खाबड़ की तलाश के लिए छापेमारी की जा रही है, और अन्य संदिग्धों से भी पूछताछ जारी है।
यह घोटाला गुजरात में प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। कांग्रेस की एसआईटी जाँच की मांग को समर्थन मिल रहा है, और कई लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे ईडी और सीबीआई को इस मामले में शामिल किया जाए।
इस बीच, यह घटना बीजेपी के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन सकती है, खासकर तब जब गुजरात को विकास मॉडल के रूप में पेश किया जाता रहा है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मामले से कैसे निपटती है।