
Bihar Assembly Election 2025
Bihar Assembly Election 2025
Bihar Assembly Election 2025: बिहार के चुनावी अखाड़े में अब सियासी घमासान अपने चरम पर पहुंच चुका है। बिहार SIR को लेकर चला सियासी संग्राम थमते ही, चुनाव आयोग ने राज्य विधानसभा चुनाव की तारीखों का बिगुल बजा दिया है। 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होने वाले मतदान का ऐलान ऐसे समय हुआ है, जब बिहार का सबसे बड़ा पर्व ‘छठ महापर्व’ हाल ही में संपन्न होगा। दिवाली के बाद और छठ के ठीक बाद का यह चुनावी माहौल, राज्य की राजनीति में किस करवट बैठेगा, इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं।
बिहार की राजनीति और यहां के पर्व-त्योहारों का गहरा नाता है। दीपावली (20 अक्टूबर) और चार दिवसीय छठ महापर्व (अक्टूबर का आखिरी हफ्ता) के बाद जब लोग त्योहारों के रंग में डूबे होंगे, तभी उन्हें लोकतंत्र के इस महापर्व में शामिल होने का मौका मिलेगा। बिहार का यह मिजाज देश भर में मशहूर है, यहां लोग जितना आनंद त्योहारों का लेते हैं, उतनी ही शिद्दत से राजनीति और चुनाव में भी हिस्सा लेते हैं। लेकिन इस बार, मतदान की तारीखों का यह पैटर्न और बड़े पैमाने पर हुए SIR ने एक नई बहस छेड़ दी है।
छठ के बाद मतदान: NDA को मिलता रहा है फायदा?
मतदान की तारीखों को गौर से देखें तो यह पिछले चुनावी पैटर्न से अलग नहीं है। छठ पूजा के आस-पास होने वाले मतदानों का एक दिलचस्प सियासी गणित रहा है। बिहार से बाहर देश के अन्य हिस्सों में काम करने वाले प्रवासी मतदाताओं में अधिकांश एनडीए (NDA) समर्थक होते हैं। छठ पर्व पर जब ये लाखों लोग अपने घरों को लौटते हैं, तो उनकी यह घर वापसी महज़ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक बड़ा चुनावी फैक्टर बन जाती है।
यह माना जाता रहा है कि बाहर रह रहे ये मतदाता बिहार में भी विकास और बदलाव देखना चाहते हैं, और इसके लिए वे राष्ट्रीय दलों के साथ जुड़ना पसंद करते हैं। अक्टूबर 2005 में छठ के समय हुए विधानसभा चुनाव के बाद से, बिहार में लगातार वोट प्रतिशत बढ़ता गया है, और इसका सीधा फायदा सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन को मिलता रहा है। हालांकि, इस बार हुए एसआईआर में बड़े पैमाने पर मतदाता सूची में संशोधन किया गया है, जिसका असर प्रवासी वोटों पर कितना पड़ेगा, यह देखना बाकी है।
2005 से बदला सियासी रिवाज और बढ़ा मतदान
बिहार के चुनावी इतिहास में साल 2005 का विधानसभा चुनाव परिवर्तनकारी साबित हुआ। इससे पहले, साल 2000 और उससे पहले के चुनावों में फरवरी के ठंडे मौसम में वोटिंग होती थी, लेकिन 2005 में अक्टूबर-नवंबर में मतदान होने लगा। यह वह समय है जब प्रवासी बिहारी बड़े पैमाने पर घर वापसी करते हैं।
1. फरवरी 2005 में हुए चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला।
2. इसी साल अक्टूबर-नवंबर में दोबारा चुनाव हुए, तो सियासी मिजाज बदल गया। आरजेडी 75 से घटकर 54 सीटों पर सिमट गई, जबकि जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को भारी फायदा मिला (जेडीयू 88, बीजेपी 55)।
3. इस साल, वोटिंग प्रतिशत 45 फीसदी दर्ज किया गया था।
भारी मतदान की परंपरा और सियासी गणित
2005 के बाद, छठ के आस-पास मतदान की यह परंपरा ‘भारी मतदान’ की नींव रखती चली गई, जिसका सियासी गणित एनडीए के पक्ष में काम करता दिखा:
1. 2010: इस साल छठ पूजा 9-12 नवंबर के बीच हुई। वोट शेयर लगभग 7 फीसदी बढ़कर 52 फीसदी हो गया। नतीजतन, एनडीए की बंपर जीत हुई (जेडीयू 115, बीजेपी 102)।
2. 2015: छठ पूजा 15-18 नवंबर के बीच थी। वोट शेयर फिर 4 फीसदी बढ़ा।
3. 2020: छठ 18-21 नवंबर तक मनाया गया। वोट शेयर बढ़कर 57 फीसदी हो गया। एनडीए को 125 सीटें मिलीं, और महागठबंधन को 110 सीटों से संतोष करना पड़ा।
यानी, 2005 के बाद से हर विधानसभा चुनाव में वोट शेयर बढ़ा है, और ज्यादातर मामलों में छठ पर्व के समय का मतदान जेडीयू-बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा है।
SIR का साया: क्या बदलेगा इस बार का नतीजा?
अब 2025 में, एक बार फिर उसी पैटर्न पर छठ पूजा के बाद 6 और 11 नवंबर को मतदान होंगे। लेकिन इस बार मामला केवल छठ की सियासी छटा भर नहीं है, बल्कि एसआईआर (SIR – मतदाता सूची में संशोधन) ने एक बड़ा परिवर्तन ला दिया है।
एसआईआर की प्रक्रिया को लेकर विपक्षी दलों, खासकर तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी’ का बड़ा मुद्दा बनाया है। हालांकि, सत्तारूढ़ एनडीए इसे निष्पक्ष मतदान से जोड़कर अपने लिए लाभकारी मान रहा है। इस प्रक्रिया के तहत, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आधार मान्य हुआ और 21 लाख नए मतदाता सूची में जोड़े गए हैं। इस बार, छठ त्योहार और एसआईआर दोनों का बिहार चुनाव पर कैसा प्रभाव पड़ता है, यह देखना पूरे देश के लिए उत्सुकता का विषय रहेगा।