मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र में पारदर्शिता को लेकर विपक्षी दलों द्वारा सवाल उठाए जाने के बीच चुनाव आयोग ने गुरुवार को नयी पहल की है। इनमें मृत्यु पंजीकरण डेटा का उपयोग कर मतदाता सूची को इलेक्ट्रॉनिक रूप से अपडेट करना और बीएलओ के लिए मानक पहचान पत्र जारी करने जैसे उपाए शामिल हैं।
चुनाव आयोग की यह पहल क्या है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर मतदाता सूची और पहचान पत्र को लेकर क्या सवाल उठते रहे हैं। टीएमसी सहित विपक्षी दल मतदाता सूची में गड़बड़ियों के आरोप लगाते रहे हैं। इन गड़बड़ियों में मृत व्यक्तियों के नाम शामिल होना, फर्जी मतदाताओं का पंजीकरण और कुछ क्षेत्रों में मतदाताओं के नाम हटाए जाने जैसे मुद्दे शामिल हैं। इसके अलावा, मतदाता पहचान पत्र की प्रक्रिया और वितरण को लेकर भी सवाल उठे हैं। ये मुद्दे खासकर पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में चुनावी चर्चा का केंद्र रहे हैं।
इस बीच, चुनाव आयोग ने कुछ सुधार किए हैं। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को इलेक्ट्रॉनिक रूप से अपडेट करने के लिए मृत्यु पंजीकरण डेटा का उपयोग करने की योजना बनाई है। कहा गया है कि यह क़दम मतदाता सूची से मृत व्यक्तियों के नाम हटाने की प्रक्रिया को तेज़ और सटीक बनाने का प्रयास है। अभी तक, मृतक व्यक्तियों के नाम हटाने की प्रक्रिया मैनुअल थी, जिसमें देरी होती थी और ग़लतियों की संभावना रहती थी। डिजिटल डेटा का उपयोग न केवल इस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करेगा, बल्कि मतदाता सूची की विश्वसनीयता को भी बढ़ाएगा।
यह कदम टीएमसी और अन्य विपक्षी दलों की उस शिकायत का सीधा जवाब लगता है है, जिसमें मृत व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची में बने रहने की बात कही जाती है। यदि यह पहल प्रभावी ढंग से लागू होती है तो यह फर्जी वोटिंग की आशंकाओं को कम कर सकती है। हालाँकि, इसकी सफलता के लिए राज्यों के साथ समन्वय, डेटा गोपनीयता, और तकनीकी बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता अहम होगी। यदि डेटा साझा करने में देरी या असमानता होती है, तो यह पहल विपक्ष के लिए एक नया आलोचना का हथियार बन सकती है।
कहा जा रहा है कि मानक पहचान पत्र से उनकी प्रामाणिकता बढ़ेगी और मतदाताओं के बीच विश्वास मज़बूत होगा। यह क़दम उन क्षेत्रों में खास तौर पर उपयोगी होगा, जहां बीएलओ की पहचान को लेकर संदेह पैदा होता है।
यह पहल अप्रत्यक्ष रूप से मतदाता पहचान पत्र से जुड़ी शिकायतों से निपटती है। बीएलओ की विश्वसनीयता बढ़ने से मतदाता सूची के अपडेशन और मतदाता पहचान पत्र के वितरण में पारदर्शिता बढ़ सकती है। हालाँकि, विपक्ष की मुख्य चिंता का समाधान इस क़दम से पूरी तरह नहीं हो सकता। इसके लिए बीएलओ के कामकाज की निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करना ज़रूरी होगा।
मतदाता सूचना पर्ची में सुधार
चुनाव आयोग ने मतदाता सूचना पर्ची को और अधिक मतदाता-अनुकूल बनाने का फ़ैसला किया है। यह पर्ची मतदाताओं को उनके मतदान केंद्र, तारीख़ और अन्य अहम जानकारी देती है। इसे आसान और स्पष्ट बनाने से खासकर कम पढ़े-लिखे मतदाताओं को सुविधा होगी। साथ ही, डिजिटल और बहुभाषी विकल्पों को शामिल करने से यह पहल और प्रभावी हो सकती है। हालाँकि, इसकी सफलता मतदाताओं तक समय पर और सही जानकारी पहुँचाने की व्यवस्था पर निर्भर करेगी।
बता दें कि क़रीब दो महीने पहले ही चुनाव आयोग मतदाता पहचान कार्ड नंबर विवाद में फँस गया था। एक से अधिक लोगों की वोटर आईडी कार्ड यानी ईपीआईसी संख्या एक ही होने के आरोपों पर चुनाव आयोग की सफ़ाई के बाद और गंभीर सवाल उठे। पार्टी ने दावा किया है कि चुनाव आयोग मतदाता सूची में धोखाधड़ी को छुपाने की कोशिश कर रहा है। टीएमसी ने पहले चुनाव आयोग द्वारा दी गई सफ़ाई को चुनाव आयोग की ही गाइडलाइंस के आधार पर ‘फ्रॉड’ बता दिया था।
आयोग ने कहा था कि ‘मैनुअल त्रुटि’ से दो राज्यों के मतदाताओं की ईपीआईसी संख्या एक हो गई। इसके बाद ही टीएमसी ने चेतावनी दी थी कि यदि चुनाव आयोग 24 घंटे में गड़बड़ी को मानकर नहीं सुधारता है तो टीएमसी ऐसी ही गड़बड़ियों के और दस्तावेज जारी करेगी।
महाराष्ट्र के चुनाव में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम जोड़े जाने को लेकर भी सवाल उठे थे। राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच वोटर संख्या बढ़ने पर विवाद हुआ था। दिल्ली चुनाव से पहले भी मतदाताओं के नाम काटे जाने और जोड़े जाने को लेकर आम आदमी पार्टी ने मुद्दा बनाया था।
बहरहाल, चुनाव आयोग की ये ताज़ा पहल तकनीकी और प्रशासनिक नज़रिए से मतदाता सूची की गुणवत्ता और निर्वाचन प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बढ़ाने की दिशा में सकारात्मक कदम हैं। मृत्यु पंजीकरण डेटा का उपयोग मतदाता सूची में मृत व्यक्तियों के नाम हटाने की शिकायत से निपटने की कोशिश करता है। वहीं, बीएलओ के लिए पहचान पत्र प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वास को मजबूत करने में मदद कर सकता है।
हालाँकि, मतदाता सूची से कुछ समुदायों के नाम हटाए जाने या पहचान पत्र के वितरण में कथित पक्षपात जैसी विपक्ष की कुछ गहरी चिंताएं इन क़दमों से पूरी तरह हल नहीं हो सकतीं। इन मुद्दों के समाधान के लिए अधिक व्यापक सुधार, जैसे स्वतंत्र ऑडिट, सामुदायिक भागीदारी, और शिकायत दूर करने वाले तंत्र को मज़बूत करना ज़रूरी होगा। इसके साथ ही, इन पहलों को प्रभावी रूप से लागू करना और समय पर समाधान अहम होगा, नहीं तो ये विपक्ष के लिए नए आलोचना के हथियार बन सकते हैं।