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    Home » जस्टिस वर्मा विवाद बढ़ाः अचानक सीबीआई-ईडी से जुड़े केस की चर्चा क्यों?
    भारत

    जस्टिस वर्मा विवाद बढ़ाः अचानक सीबीआई-ईडी से जुड़े केस की चर्चा क्यों?

    By March 22, 2025No Comments5 Mins Read
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    जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम पहले सीबीआई की एक एफआईआर और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एक ईसीआईआर में आया था। उस समय वो 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत होने से पहले एक कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक थे। जस्टिस वर्मा, जो अभी तक दिल्ली हाईकोर्ट में सेवा दे रहे थे, उनके सरकारी आवास से कथित तौर पर कैश बरामद हुआ और उसके बाद सोशल मीडिया पर उनके पर आरोपों की बौछार कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उनका तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया। उनके खिलाऱ एक आंतरिक जांच भी शुरू हो गई। 

    सीएनएन-न्यूज़18 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सिम्भावली शुगर्स मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को जांच का आदेश देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था। 2018 में दर्ज की गई सीबीआई एफआईआर में वर्मा को 2012 में सिम्भावली शुगर्स के गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में बताया गया था। उन्हें “आरोपी नंबर 10” के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। सभी आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था।

    क्या है पूरा मामला

    फरवरी 2018 में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स द्वारा सिम्भावली शुगर मिल को दिए गए लोन के संबंध में सीबीआई एफआईआर दर्ज की गई थी। कंपनी ने कथित तौर पर किसानों को उनके कृषि उपकरणों और अन्य जरूरतों के लिए वितरित करने के लिए भारी लोन लिया था, लेकिन बाद में इसका दुरुपयोग किया और पैसे को अपने अन्य खातों में ट्रांसफर कर दिया। यह आरोप लगाया गया था कि धन का स्पष्ट रूप से दुरुपयोग हुआ था। एफआईआर में कहा गया कि कंपनी द्वारा प्राप्त धन का इस्तेमाल अलग मकसदों के लिए किया गया था।

    बैंक ने सिम्भावली शुगर्स लिमिटेड को 97.85 करोड़ रुपये की राशि के लिए संदिग्ध धोखाधड़ी घोषित किया था। बैंक ने इस बारे में 13.05.2015 को भारतीय रिजर्व बैंक को सूचित भी किया था।

    सीबीआई ने 12 लोगों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें यशवंत वर्मा का नाम कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में दसवें नंबर पर था। सीबीआई एफआईआर के पांच दिन बाद, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी 27.02.2018 को मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम, 2002 की धारा 3/4 के तहत पुलिस स्टेशन-प्रवर्तन निदेशालय, जिला-लखनऊ में शिकायत दर्ज की थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल कहा था कि इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश देना हाईकोर्ट की गलती थी, क्योंकि कोई जांच जरूरी नहीं थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि धोखाधड़ी के लिए कानून के अनुसार कार्रवाई करने से प्राधिकरणों को रोका नहीं गया है।

    बहरहाल, एफआईआर दर्ज होने के थोड़े समय बाद सीबीआई ने वर्मा का नाम एफआईआर से हटा दिया था, और एजेंसी ने कोर्ट को सूचित किया था कि उनका नाम हटाया जा रहा है।

    रिपोर्ट सौंपी गई

    इस घटनाक्रम के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को एक रिपोर्ट सौंपी है। अभी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। होली की रात, 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में लगभग 11:35 बजे आग लग गई थी। आग बुझाने के लिए दिल्ली अग्निशमन विभाग के कर्मचारी मौके पर पहुंचे थे। लेकिन उसके बाद सुनियोजित तरीके से अफवाह फैली की जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के कथित तौर पर कैश बरामद हुआ है। 

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ एक आंतरिक जांच शुरू की है। इसके साथ ही, उनकी इलाहाबाद हाई कोर्ट में तबादले की सिफारिश को भी माना गया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ट्रांसफर का प्रस्ताव कॉलेजियम ने दिया था।

    इस घटना ने न्यायिक हलकों में हलचल मचा दी है। जस्टिस वर्मा वर्तमान में दिल्ली हाई कोर्ट में सेवा दे रहे हैं और इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी कार्य कर चुके हैं। इस मामले में पारदर्शिता की मांग की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट अब इस जांच रिपोर्ट की समीक्षा कर आगे की कार्रवाई पर फैसला लेगा। यह मामला न केवल न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है, बल्कि इसकी गहन जांच की आवश्यकता को भी रेखांकित कर रहा है। 

    एक महत्वपूर्ण तथ्य

    इस घटनाक्रम से पहले दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को उस व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, जिन्होंने ईडी की जांच पर अंकुश लगाते हुए फैसला सुनाया था कि केंद्रीय जांच एजेसी  मनी लॉन्ड्रिंग के अलावा किसी अन्य अपराध की जांच नहीं कर सकती है। वो यह नहीं मान सकती है कि कोई अंतर्निहित अपराध किया गया है। जब तक कि आरोप साबित न हो जाएं।

    उन्होंने ऑक्सफैम इंडिया, केयर इंडिया जैसे एनजीओ से जुड़े कई मामलों को भी निपटाया। जनवरी 2024 में, उन्होंने दोनों एनजीओ की टैक्स छूट की स्थिति को रद्द करने वाले आयकर विभाग द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी। हालांकि इस साल फरवरी में उन्होंने समाचार पोर्टल न्यूज़ क्लिक द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें आयकर विभाग के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे 2 मार्च को या उससे पहले बकाया कर मांग के रूप में ₹19 करोड़ से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    उन्होंने  जनवरी 2023 में नेटफ्लिक्स के पक्ष में फैसला सुनाया था, जबकि 1997 के उपहार सिनेमा त्रासदी पर आधारित फिल्म “ट्रायल बाय फायर” की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

    रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी

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