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    Home » जाति जनगणना विश्लेषणः योगी आदित्यनाथ के लिए इतनी असहज स्थिति क्यों हुई?
    भारत

    जाति जनगणना विश्लेषणः योगी आदित्यनाथ के लिए इतनी असहज स्थिति क्यों हुई?

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 3, 2025No Comments6 Mins Read
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    “क्या आप जातीय जनगणना के पक्ष में हैं या इसे आप एक खतरे के रूप में देखते हैं?” जनवरी में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेले के दौरान, जब News18 के एक संपादक ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यह सवाल पूछा, तो हिंदुत्व के बैनर तले विभिन्न जातियों की हिंदू एकता की राजनीति करने वाले आदित्यनाथ ने संकेत दिया कि वे जातीय जनगणना को एक विभाजनकारी विचार मानते हैं, जिसे विपक्षी दल हिंदुओं को बांटने के मकसद से आगे बढ़ा रहे हैं। आज योगी अपने इस बयान पर क्या कहेंगे। क्या वो उस मोर की तरह अपने पैरों को देखकर शरमा जाएंगे।

    आदित्यनाथ ने यह भी कहा था- “जब से मोदीजी के नेतृत्व में कल्याणकारी योजनाएं ‘सबका साथ, सबका विकास’ के साथ आगे बढ़ रही हैं, विभाजनकारी लोग जाति, क्षेत्र और भाषा के नाम पर बांटने का प्रयास कर रहे हैं। भारत, विशेष रूप से सनातन धर्म के अनुयायियों को इससे सावधान रहना चाहिए।”

    इसी इंटरव्यू में आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि राजनीतिक हित के लिए जाति, क्षेत्र या भाषा के नाम पर समाज को बांटना “देशद्रोह से कम नहीं है।” योगी अब क्या कहेंगे। उनकी इतनी हिम्मत है कि वो प्रधानमंत्री या अपने केंद्रीय नेतृत्व को इस मुद्दे पर चुनौती दे सकें।

    इस इंटरव्यू का एक छोटा वीडियो क्लिप समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने 2 मई को लखनऊ में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चलाया, जहां उन्होंने इस बात को कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार की जातीय जनगणना की घोषणा ने योगी आदित्यनाथ को असहज स्थिति में डाल दिया है।

    वास्तव में, जहां भारतीय जनता पार्टी के नेता केंद्र सरकार के इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं, वहीं आदित्यनाथ अब तक इस पर काफी संयमित प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

    नरेंद्र मोदी को बधाई देने वाला एक ट्वीट छोड़कर, उन्होंने इस मुद्दे पर कोई अन्य टिप्पणी नहीं की है। दूसरी ओर, उनके डिप्टी और मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार केशव प्रसाद मौर्य, जातीय जनगणना को ओबीसी और दलितों को लुभाने के लिए एक ‘गेम चेंजर’ के रूप में बढ़ावा दे रहे हैं और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष पर इस मांग की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं।

    आदित्यनाथ ने कहा था कि जातीय जनगणना हिंदुओं को बांटने और जातियों के बीच झगड़ा करवाने की एक चाल है, ताकि विपक्षी पार्टियां इसका फायदा उठाकर मुसलमानों के लिए धर्म आधारित आरक्षण लागू कर सकें। एक रैली में उन्होंने कहा था कि जातीय जनगणना एक “षड्यंत्र है हिंदुओं को लूटने का, ताकि मुसलमानों को फायदा पहुंचाया जा सके।” उन्होंने यहां तक कह दिया था कि जो लोग हिंदुओं को जाति के आधार पर बांटना चाहते हैं, उनमें रावण और दुर्योधन का डीएनए है।

    केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना को मुख्य जनगणना में शामिल करने की घोषणा के बाद, आदित्यनाथ ने X पर पोस्ट करते हुए मोदी को बधाई दी और इसे “अभूतपूर्व और स्वागतयोग्य” फैसला बताया और लिखा- “140 करोड़ देशवासियों के व्यापक हित में” है।

    आदित्यनाथ ने कहा, “यह वंचित, पिछड़े और उपेक्षित वर्गों को उनका उचित सम्मान और सरकारी योजनाओं में न्यायसंगत भागीदारी दिलाने की दिशा में एक निर्णायक पहल है। आदरणीय प्रधानमंत्री को हार्दिक धन्यवाद, जिनके नेतृत्व में भाजपा सरकार ने सामाजिक न्याय और डेटा आधारित सुशासन को हकीकत में बदलने के लिए यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है।”

    इसके अलावा, आम तौर पर अपनी पार्टी के बड़े फैसलों पर जल्दी वीडियो बयान जारी करने वाले आदित्यनाथ इस मुद्दे पर लगभग चुप ही रहे हैं।

    इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश में भाजपा के ओबीसी चेहरे और अक्सर आदित्यनाथ से मतभेद रखने वाले मौर्य ने मीडिया बाइट्स, पोस्ट्स और वीडियो में जातीय जनगणना के फैसले को “ऐतिहासिक” बताते हुए उल्लास जताया। उन्होंने बहुजन राजनीति के प्रतीक कांशीराम की प्रसिद्ध पंक्ति उद्धृत करते हुए कहा, “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी… इसका सही इंतजाम पीएम मोदी ने किया है।”

    मौर्य ने कहा कि पूरे दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग समाज ने जातीय जनगणना का स्वागत किया है। कहा- “यह दशकों से प्रतीक्षित था। यह उन नेताओं के लिए भी सबक है, जो जातीय जनगणना का राग तो अलापते थे लेकिन सत्ता में आने के बाद इस मुद्दे पर कंबल ओढ़कर सो जाते थे। जाति भारतीय राजनीति की सच्चाई है और जातीय जनगणना उसका आधार है।”

    सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2 मई की प्रेस कॉन्फ्रेंस में आदित्यनाथ की जातीय जनगणना पर प्रतिक्रिया वाला क्लिप कई बार चलाया। यादव ने चुटकी लेते हुए पूछा- “क्या माननीय अभी भी अपने उसी बयान पर कायम हैं या वे उसे बदलना चाहेंगे?”

    यूपी में योगी और भाजपा की असहज स्थिति

    योगी आदित्यनाथ की राजनीति हिंदू एकता पर आधारित रही है, जो जातीय पहचान को गौण मानती है। वे जातीय जनगणना को हिंदू समाज को बांटने की एक साजिश मानते रहे हैं, खासकर विपक्ष द्वारा मुसलमानों को लाभ पहुंचाने के इरादे से। इसलिए जब केंद्र की मोदी सरकार ने जातीय जनगणना की घोषणा की, तो यह उनके पूर्ववर्ती बयानों से टकराव में आ गया। नतीजतन, वह केवल एक औपचारिक ट्वीट तक सीमित रहे, जो उनकी राजनीतिक असहजता को दर्शाता है।

    एक ओर प्रधानमंत्री मोदी ने जातीय जनगणना को आगे बढ़ाकर सामाजिक न्याय की राजनीति को एक नई दिशा देने की कोशिश की है, वहीं दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ जैसे नेता इसके प्रति उदासीन या आलोचनात्मक रहे हैं। इससे भाजपा के अंदर जाति-आधारित और धर्म-आधारित राजनीति के बीच एक द्वंद्व साफ नजर आता है।

    केशव मौर्य का उभार

    इस घटनाक्रम के जरिए केशव मौर्य को मौका मिल गया है। मौर्य, जो ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और योगी से मतभेद भी रखते हैं, इस मुद्दे पर पूरी सक्रियता के साथ सामने आए हैं। उनका रुख स्पष्ट रूप से यह संकेत देता है कि भाजपा के भीतर ओबीसी नेतृत्व अब खुलकर सामाजिक न्याय की मांगों को समर्थन दे रहा है। उनका कांशीराम को उद्धृत करना भाजपा की रणनीति में एक बहुजन एंगल को जोड़ने की कोशिश है। वैसे भी योगी और मोदी के मतभेद की खबरों के बीच केशव प्रसाद मौर्य अगले सीएम के नाम के रूप में सामने आए थे। मौर्य ने काफी दिनों तक दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। लेकिन आरएसएस योगी के बचाव में जुटा रहा।

    भाजपा, जो पारंपरिक रूप से जातीय पहचान की राजनीति से दूरी बनाकर रखती थी, अब उसे एक “डेटा-आधारित सुशासन” के नाम पर अपना रही है। यानी जाति जनगणना एक डेटा आधारित प्रक्रिया है। जिसके सामने आने पर भारतीय राजनीति बदल जाएगी। इससे यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक न्याय की राजनीति, जिसे अब तक कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे दलों का क्षेत्र माना जाता था, अब भाजपा के एजेंडे का भी हिस्सा बन रही है — भले ही उसका प्रस्तुतिकरण अलग हो। लेकिन भारतीय राजनीति की दशा और दिशा बदलने जा रही है.

    यह पूरा घटनाक्रम न केवल भाजपा के अंदर चल रहे वैचारिक संघर्ष को दिखाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि 2025 के बिहार चुनाव और उसके बाद के चुनावों में जातीय जनगणना एक केंद्रीय मुद्दा बनने वाला है। सामाजिक न्याय, प्रतिनिधित्व और हिंदू एकता की परिभाषाएं पुनः लिखी जा रही हैं, और राजनीतिक दल अब उन जातियों को संबोधित करने पर मजबूर हैं जिन्हें वे पहले केवल वोट बैंक मानते थे।

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