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    Home » ट्रंप के सामने रामाफोसा का नैतिक साहस क्यों चर्चा में है- ‘राष्ट्रपति हो तो ऐसा’
    भारत

    ट्रंप के सामने रामाफोसा का नैतिक साहस क्यों चर्चा में है- ‘राष्ट्रपति हो तो ऐसा’

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 22, 2025No Comments5 Mins Read
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    व्हाइट हाउस में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच 22 मई की मुलाकात ने पूरी दुनिया में सुर्खियाँ बन गईं। इस बैठक में रामाफोसा ने ट्रंप के कथित “व्हाइट जेनोसाइड” के दावों का जवाब देते हुए हल्के-फुल्के अंदाज में तंज कसा, “माफ कीजिए, मेरे पास आपको देने के लिए प्लेन नहीं है।” यह टिप्पणी कतर से अमेरिका को उपहार में मिले एक लग्जरी जेट के संदर्भ में थी, जिसे ट्रंप ने नया एयर फोर्स वन बनाने के लिए स्वीकार किया था।

    रामाफोसा का यह बयान न केवल एक डिप्लोमैटिक चुटकी थी, बल्कि यह उनके स्पष्टवादी रुख और दक्षिण अफ्रीका की स्वतंत्र विदेश नीति को भी बताता है। इसके साथ ही, रामाफोसा का फिलिस्तीन के प्रति समर्थन और इज़रायल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा दायर करना उनके साहसिक और सिद्धांतवादी दृष्टिकोण को उजागर करता है। यह विश्लेषण रामाफोसा के इस तंज, उनके फिलिस्तीन पर स्टैंड और इसके व्यापक भू-राजनीतिक निहितार्थों पर केंद्रित है।

    रामाफोसा की व्हाइट हाउस यात्रा का उद्देश्य दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को मजबूत करना था। हालांकि, ट्रंप ने बैठक के दौरान दक्षिण अफ्रीका में श्वेत किसानों के कथित “नरसंहार” का मुद्दा उठाया। वीडियो व लेखों के माध्यम से इसे साबित करने की कोशिश की। यह दावा लंबे समय से ट्रंप और उनके समर्थकों, जैसे एलन मस्क, द्वारा प्रचारित किया जाता रहा है, जिसे दक्षिण अफ्रीकी सरकार और स्वतंत्र स्रोतों ने बार-बार खारिज किया है।

    रामाफोसा ने इस आलोचना का जवाब शांत और तार्किक ढंग से दिया। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में हिंसा सभी समुदायों को प्रभावित करती है, जिसमें अश्वेत लोग बहुसंख्यक हैं, और यह नस्लीय आधार पर नहीं होती। इसके बाद, उन्होंने कतर से मिले जेट के विवाद का जिक्र किया। उनका यह जवाब न केवल ट्रंप के दावों को हल्के ढंग से खारिज करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि रामाफोसा ट्रंप की आक्रामक शैली के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं।

    सोशल मीडिया, खासकर एक्स पर, इस टिप्पणी को व्यापक समर्थन मिला। यूजर्स ने इसे ट्रंप के लिए एक “एपिक बर्न” और “करारा जवाब” करार दिया। यूजर JaikyYadav16 ने लिखा, “ट्रंप को करारा जवाब मिल गया,” जबकि @aditytiwarilive ने इसे “तीखा व्यंग्य” बताया। यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि रामाफोसा का यह बयान न केवल डिप्लोमैटिक था, बल्कि जनता के बीच उनकी छवि को और मजबूत करने वाला भी था।

    रामाफोसा का स्पष्टवादी रुख केवल ट्रंप के साथ इस मुलाकात तक सीमित नहीं है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, विशेष रूप से फिलिस्तीन-इज़रायल संघर्ष में, दक्षिण अफ्रीका की मजबूत और सैद्धांतिक स्थिति को बार-बार व्यक्त किया है। 2023 में, रामाफोसा ने फिलिस्तीन के समर्थन में कई बयान दिए, जिसमें उन्होंने इजरायल के कब्जे को “रंगभेदी” करार दिया और ग़ज़ा में नागरिकों को दवा, ईंधन, भोजन और पानी से वंचित करने को “नरसंहार के समान” बताया।

    दक्षिण अफ्रीका ने इज़रायल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में नरसंहार का मुकदमा दायर किया, जिसे रामाफोसा ने सक्रिय रूप से समर्थन दिया। यह कदम दक्षिण अफ्रीका की अपनी रंगभेद विरोधी इतिहास से प्रेरित है, क्योंकि देश ने स्वयं रंगभेद के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है। रामाफोसा ने कहा, “हम फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हैं, जो 75 वर्षों से रंगभेदी राज्य के कब्जे के तहत पीड़ित हैं।” इस स्टैंड ने दक्षिण अफ्रीका को वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच एक नैतिक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित किया।

    इसके जवाब में, ट्रंप ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कड़े कदम उठाए, जैसे कि सहायता राशि बंद करना और दक्षिण अफ्रीकी राजदूत को निष्कासित करना। यह दर्शाता है कि रामाफोसा का फिलिस्तीन समर्थन और ट्रंप की नीतियों का विरोध उनके लिए जोखिम भरा रहा है, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।

    रामाफोसा का ट्रंप पर तंज और फिलिस्तीन पर उनका स्टैंड उनके नेतृत्व की दो प्रमुख विशेषताओं को दर्शाता है: डिप्लोमैटिक चतुराई और नैतिक दृढ़ता। 

     

    डिप्लोमैटिक चतुराई: रामाफोसा का “प्लेन” वाला तंज एक स्मार्ट डिप्लोमैटिक कदम था। यह न केवल ट्रंप के दावों को हल्का करने में सफल रहा, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि बातचीत का माहौल तनावपूर्ण न हो। यह उनकी क्षमता को दर्शाता है कि वे गंभीर मुद्दों पर भी हास्य और बुद्धिमत्ता के साथ जवाब दे सकते हैं।  

    नैतिक दृढ़ता: फिलिस्तीन पर उनका स्टैंड दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद विरोधी विरासत और वैश्विक दक्षिण के हितों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह कदम न केवल फिलिस्तीनी लोगों के लिए समर्थन का प्रतीक है, बल्कि यह भी दिखाता है कि रामाफोसा शक्तिशाली देशों, जैसे अमेरिका और इजरायल, के दबाव में नहीं झुकते।  

    वैश्विक प्रभाव: रामाफोसा का यह रुख दक्षिण अफ्रीका को G-20 जैसे मंचों पर एक मजबूत आवाज देता है, जहाँ वे 2025 में अध्यक्षता करेंगे। उनकी यह स्थिति वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए एक प्रेरणा है, जो अक्सर पश्चिमी देशों की नीतियों के सामने कमजोर पड़ जाते हैं।

    एक्स पर यूजर्स ने रामाफोसा के तंज को खूब सराहा। यूजर garrywalia_ ने लिखा, “ट्रंप ने रामाफोसा को घेरने की कोशिश की, लेकिन रामाफोसा ने शांत रहकर जवाब दिया।” यूजर @kumarniranjanam ने ट्रंप के आक्रामक रुख की आलोचना करते हुए रामाफोसा की शांत प्रतिक्रिया की तारीफ की। फिलिस्तीन पर उनके स्टैंड को भी सोशल मीडिया पर समर्थन मिला, खासकर उन यूजर्स से जो दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद विरोधी विरासत को फिलिस्तीनी संघर्ष से जोड़ते हैं।

    सिरिल रामाफोसा के ताजा रुख ने वैश्विक मंच पर दक्षिण अफ्रीका की स्वतंत्र और मजबूत छवि को उभारने में मदद की है। उनका फिलिस्तीन समर्थन और इज़रायल के खिलाफ ICJ में मुकदमा दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद विरोधी विरासत को वैश्विक मंच पर ले जाता है। यह घटना दक्षिण अफ्रीका को वैश्विक दक्षिण के एक सशक्त नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करती है, जो शक्तिशाली देशों के सामने अपने सिद्धांतों पर अडिग है।

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