‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर तिरंगा यात्रा निकालने की बीजेपी की घोषणा ने सियासी तूफ़ान खड़ा कर दिया है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने बीजेपी पर बड़ा हमला किया है और कहा है कि इन लोगों ने एक साथ ‘सिंदूर’ और ‘तिरंगा’ का अपमान किया। इसने आरोप लगाया है कि बीजेपी की ‘तिरंगा यात्रा’ एक राजनीतिक स्टंट है।
उद्धव की शिवसेना के मुखपत्र सामना में लिखे संपादकीय में कहा गया है, ‘बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और उनकी पार्टी का तिरंगा यात्रा निकालकर जीत का जश्न मनाना उन माताओं-बहनों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है, जिनका सिंदूर उजड़ गया। बावजूद इसके अगर बीजेपी यात्रा निकालती है तो अमेरिका और ट्रंप के झंडे लें और बैनरों पर मोदी के साथ ट्रंप की फोटो छापें।’ इसने लिखा है, “बीजेपी कई उत्सव मनाती रहती है। अब उन्हें ‘डोनाल्ड ताऊ’ के नाम पर एक कार्निवल आयोजित कर उसमें शामिल होना चाहिए। किस बात की तिरंगा यात्रा निकाल रहे हो?”
भारतीय जनता पार्टी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की कथित सफलता के जश्न में 13 मई से 23 मई तक देशभर में तिरंगा यात्रा निकालने की घोषणा की है। सामना ने लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी और उसका वर्तमान नेतृत्व एक उलझा तमाशा है। इसने लिखा है, ‘भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने देशभर में तिरंगा यात्रा निकालने का एलान किया है। यह मुर्दों की खोपड़ी से मक्खन खाने का एक बेशर्म रूप है। जब पहलगाम हमले का बदला पूरा नहीं हुआ तो ऐसी यात्रा निकालना और राजनीति करना किसी भी राजनीतिक दल को शोभा नहीं देता।’
सामना ने लिखा है, ‘ऑपरेशन सिंदूर के पूरा होने से पहले प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने धमका कर भारत को युद्ध से हटने के लिए मजबूर किया। जबकि पाकिस्तान की हार निश्चित थी, प्रधानमंत्री मोदी ने व्यापार लालच के लिए ट्रंप की धमकी स्वीकार कर ली और युद्धविराम कर दिया। इसमें कहां पूरा हुआ ‘सिंदूर’ का बदला? इन लोगों ने एक साथ ‘सिंदूर’ और ‘तिरंगा’ का अपमान किया। तिरंगा यात्रा एक राजनीतिक स्टंट है।’
इसने आगे लिखा है, ‘भाजपा अध्यक्ष डॉ. जे.पी.नड्डा और उनकी पार्टी का तिरंगा यात्रा निकालकर जीत का जश्न मनाना उन माताओं-बहनों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है, जिनका सिंदूर उजड़ गया। बावजूद इसके अगर भाजपा यात्रा निकालती है तो अमेरिका और ट्रंप के झंडे लें और बैनरों पर मोदी के साथ ट्रंप की फोटो छापें।’
इसने कहा है, “यह इस बात का पुख्ता सबूत है कि बीजेपी की नीयत साफ नहीं है और वे रक्त पिपासु लोग हैं। यह तिरंगा यात्रा 13 मई से 23 मई तक चलेगी और इसमें बीजेपी के बड़े नेता शामिल होंगे। भारत के लोगों को बताया जाएगा कि मोदी और अन्य लोगों ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को कैसे सफल बनाया।”
सामना ने लिखा है कि पहलगाम हमले को लेकर सबसे पहले गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा लेना चाहिए और प्रधानमंत्री मोदी को बिना कैमरे के 12 घंटे तक केदारनाथ गुफा में जाकर आत्ममंथन करना चाहिए था कि क्या ‘ऑपरेशन सिंदूर’ वास्तव में सफल हुआ।
सामना ने तिरंगा यात्रा निकालने वाले लोगों से पाँच सवाल पूछे हैं-
- पहलगाम हमला भारतीय क्षेत्र में हुआ था। क्या देश के गृह मंत्री को इसकी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? गृह मंत्री अमित शाह ने 26 हत्याओं में ग़लती मानी तो उन्हें बर्खास्त क्यों नहीं किया जाए?
- पहलगाम हमले में शामिल पांच-छह आतंकियों का पता नहीं चल पाया है। वे गए कहां? भारत ने 11 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। क्या इसके बदले पहलगाम के इन अपराधियों को मार नहीं दिया जाना चाहिए? ये ज़िम्मेदारी सिर्फ़ अमित शाह की है। वो महाशय फिलहाल कहां हैं?
- कहा गया कि भारत पाकिस्तान को ऐसी जबरदस्त टक्कर देने जा रहा है कि पाकिस्तान फिर कभी जमीन से उठ नहीं पाएगा। आज किस आधार पर पाकिस्तान में जंग जीतने का जश्न मनाया जा रहा है?
- क्या यह युद्ध पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्जा पाने के लिए था? तो भारत को कितने इंच ‘पीओके’ मिला?
- अमेरिकी प्रेसिडेंट ट्रंप ने वॉशिंगटन से एलान किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध रुकवा दिया। यह एक संप्रभु राष्ट्र पर हमला है। क्या भारत के 56 इंच के सीने पर इस तरह का ‘पिन’ चुभो कर हवा निकालने का मामला प्रधानमंत्री मोदी को स्वीकार्य है?
सामना ने लिखा है कि भारत ने पाकिस्तान को सबक़ सिखाया ही नहीं, उलट डोनाल्ड ट्रंप की गुलामी अपना ली।
इसने आगे लिखा है, “जब भारतीय सेना पाकिस्तान पर हमला करने के लिए तैयार होती है, तो डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान की सहायता के लिए दौड़ते हैं और संप्रभु भारत राष्ट्र को युद्ध के मैदान से हटने के लिए मजबूर करते हैं। जंग की शुरुआत पाकिस्तान के आतंकवाद से हुई और थमी अमेरिकी व्यापार पर। टेबल के नीचे व्यापारियों ने सौदा किया। उसमें सिंदूर भी बेचा गया। तिरंगे का सौदा हो गया और अब भाजपा तिरंगा यात्रा निकालकर लोगों को मूर्ख बना रही है। तिरंगे को थामने का नैतिक अधिकार आप खो चुके हैं!”
तिरंगा यात्रा के आयोजन के साथ ही बीजेपी पर दबाव बढ़ता जा रहा है। इसे जनता को गुमराह करने की कोशिश करार दिया जा रहा है। इस बीच, विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा बीजेपी के लिए उल्टा पड़ सकती है, क्योंकि पहलगाम हमले की स्मृति अभी भी लोगों के जेहन में ताजा है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और तिरंगा यात्रा को लेकर बीजेपी की रणनीति ने एक बार फिर उसके इरादों पर सवाल उठाए हैं। यह यात्रा राष्ट्रवाद का प्रतीक बनेगी या बीजेपी के लिए सियासी नुक़सान का कारण?