मुंबई आतंकी हमले (26/11) के एक सह-अभियुक्त तहव्वुर राणा को यूएस से भारत प्रत्यर्पित किया जा रहा है। लेकिन इस मामले में कई अनसुलझे सवाल अभी भी बरकरार हैं। पूर्व केंद्रीय गृह सचिव जी.के. पिल्लई ने हाल ही में कहा कि राणा इस हमले में एक “छोटे खिलाड़ी” की भूमिका में था, जबकि मुख्य साजिशकर्ता डेविड कोलमैन हेडली को अमेरिका ने भारत को सौंपने से इनकार कर दिया था। यह सवाल उठता है कि हेडली को प्रत्यर्पित करने से अमेरिका ने क्यों इंकार किया, जबकि वो मुख्य साजिशकर्ता है। भारतीय मीडिया तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को ऐसे पेश कर रहा है जैसे भारत ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो।
तहव्वुर राणा के बारे में अभी तक क्या सूचना है
- उसे गुरुवार 10 अप्रैल को भारत लाया जा रहा है
- उसे तिहाड़ जेल में रखा जा सकता है
- दिल्ली में ट्रायल कोर्ट को 26/11 हमले के केस से जुड़े दस्तावेज मिले
- भारत सरकार ने इस केस में नरेंद्र मान को सरकारी वकील नियुक्त किया है
- एनआईए ने अपने अफसरों की एक टीम बनाई जो उससे पूछताछ करेगी
भारत क्यों बेकरार और तथ्यों पर गौर करिए
तहव्वुर राणा के बारे में भारतीय मीडिया बता रहा है कि सरकार ने उसे भारत लाने के लिए कितना जोर लगाया। लेकिन भारतीय एजेंसियां उससे जो पूछताछ करेंगी उससे एक नेरेटिव भी तैयार होगा। तो सवाल है कि भारतीय जांच एजेंसियां तहव्वुर राणा से क्या जानना चाहती है। भारतीय एजेंसियाँ राणा से पूछताछ में लश्कर-ए-तैयबा, पाकिस्तान के खुफिया नेटवर्क और कई प्रमुख खिलाड़ियों के बीच संबंधों के पूरे जाल के बारे में पता लगाना चाहती हैं। जांचकर्ताओं को उम्मीद है कि वह हाफिज सईद, जकी-उर-रहमान लखवी, साजिद मीर और हुजी के इलियास कश्मीरी जैसे लश्कर के शीर्ष नेताओं के बारे में जानकारी दे सकता है। ये सारे लश्कर आतंकी अभी फरार हैं। समझा जाता है कि इन्हें पाकिस्तान का संरक्षण प्राप्त है।
पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा को 26/11 हमले में एक सहायक के रूप में देखा जाता है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अनुसार, राणा ने हेडली को मुंबई में एक इमीग्रेशन दफ्तर स्थापित करने में मदद की, जो हेडली के लिए हमले की तैयारी का एक कवर बन गया। पूर्व केंद्रीय गृह सचिव पिल्लई के अनुसार, राणा का योगदान बहुत मामूली था। उसने हेडली को कानूनी सहायता और आधार प्रदान किया, जिसके जरिए हेडली ने हमलावरों के लिए टारगेट की खुद जांच की और यह जानकारी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को दी। राणा को 2009 में अमेरिकी अधिकारियों ने हेडली के साथ गिरफ्तार किया था, लेकिन उसकी सजा और प्रत्यर्पण की प्रक्रिया लंबी कानूनी लड़ाई में उलझी रही। हाल ही में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसकी प्रत्यर्पण को मंजूरी दी, जिसके बाद वह भारत लाया जा रहा है।
डेविड कोलमैन हेडली, जिसका असली नाम दाऊद गिलानी है, इस हमले का मास्टरमाइंड माना जाता है। अमेरिकी नागरिक होने के बावजूद उसकी जड़ें पाकिस्तान से जुड़ी हैं। पिल्लई ने दावा किया कि हेडली ने कई बार भारत की यात्रा की और मुंबई में हमले के लक्ष्यों की रेकी की। उसने आतंकवादियों को नाव से उतरने की जगह से लेकर ताज होटल और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों की जानकारी दी।
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हैरानी की बात यह है कि अमेरिका ने हेडली की गिरफ्तारी के बाद उसे भारत को सौंपने से मना कर दिया। पिल्लई ने इसे “अमेरिका का बुरा विश्वास” करार दिया और कहा कि हेडली को एक डबल एजेंट के रूप में इस्तेमाल किया गया। वो आईएसआई और अमेरिकी सरकार दोनों के लिए काम कर रहा था। हेडली ने 2010 में अमेरिका में दोष स्वीकार किया और 35 साल की सजा स्वीकार की, जिसके बदले उसे भारत प्रत्यर्पित नहीं करने का आश्वासन दिया गया।
अगर इस केस की पूरी चेन पर गौर किया जाए तो तहव्वुर राणा ने कुछ चीजों में हेडली की मदद की। लेकिन कैसे हमला होगा, किन किन बिल्डिंगों को टारगेट किया जाएगा, आतंकियों का ग्रुप कहां से प्रवेश करेगा, ये सारी जानकारी हेडली ने जुटाई और आईएसआई को दी। इन्हें के आधार पर मुंबई में 26/11 हमले की साजिश को अंजाम दिया गया। तो हमे इन तथ्यों से यह पता चलता है कि अमेरिका ने न जाने क्यों हेडली का प्रत्यर्पण भारत नहीं होने दिया। जबकि असली राज हेडली के पास ही हैं। भारत हेडली के प्रत्यर्पण का दबाव अमेरिका पर बनाने में नाकाम रहा। इसलिए भारत ने सारा फोकस तहव्वुर राणा पर कर दिया। अब रोजाना भारतीय मीडिया में नई नई कहानियां खुफिया सूत्रों या कोर्ट कार्यवाही के जरिए हमारे सामने आएंगी।
26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमले में 10 लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के आतंकवादियों ने 12 स्थानों पर हमला किया, जिसमें 166 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। इस हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गई थी, और हेडली की गवाही से यह साफ हुआ कि आईएसआई ने इसमें सक्रिय भूमिका निभाई थी। लेकिन अमेरिका द्वारा हेडली को भारत न सौंपने से कई सवाल उठते हैं।
पूर्व मुख्य गृह सचिव पिल्लई ने कहा, “अमेरिका को हेडली की गतिविधियों की जानकारी थी, फिर भी उसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया।” क्या अमेरिका ने जानबूझकर इस जानकारी को छिपाया क्या हेडली के जरिए कोई बड़ा खेल खेला जा रहा था इन सवालों के जवाब आज तक अधूरे हैं।
भारत ने दबी जुबान में हेडली और राणा के प्रत्यर्पण की मांग की थी। एनआईए ने राणा के खिलाफ सबूत जुटाए हैं, जिसमें हेडली के साथ उसकी 231 बार की टेलीफोन बातचीत का दावा शामिल है। राणा के भारत आने से कुछ सच्चाई सामने आ सकती है, लेकिन हेडली के बिना पूरी तस्वीर शायद कभी साफ न हो। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का यह रुख भारत-पाकिस्तान संबंधों और क्षेत्रीय सुरक्षा पर भी सवाल उठाता है। अब यह साफ है कि हेडली कभी भी भारत नहीं आएगा। इसलिए मुंबई हमले के असली तथ्य भी सामने नहीं आ पाएंगे।
राणा के भारत पहुंचने के बाद एनआईए उससे पूछताछ करेगी और मुकदमा चलाया जाएगा। लेकिन हेडली के बिना, जो इस हमले का मुख्य सूत्रधार था, क्या न्याय पूरा होगा मुंबई हमले की शिकार परिवारों और देशवासियों के लिए यह एक लंबा इंतजार रहा है। राणा का प्रत्यर्पण एक कदम आगे है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या अमेरिका कभी हेडली को भारत सौंपेगा, या मुंबई हमले का पूरा सच हमेशा रहस्य बना रहेगा