
Amir Khan Muttaqi India Visit (photo: social media)
Amir Khan Muttaqi India Visit
Amir Khan Muttaqi India Visit: अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के तकरीबन 4 साल बाद, अब भारत और तालिबान के बीच औपचारिक संवाद का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी आगामी 9 अक्टूबर को पहली बार भारत का दौरा करने आ रहे हैं। यह दौरा केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया की जियो-पॉलिटिकल तस्वीर में एक बड़े बदलाव का बड़ा संकेत भी देता है।
तालिबान और भारतीय अधिकारियों के बीच अब तक मुख्य रूप से दुबई और काबुल में बैठकें आयोजित की जा रही हैं। लेकिन यह पहली बार होगा जब तालिबान का शीर्ष नेतृत्व सीधे भारत आएगा। इस कदम के ज़रिये यह स्पष्ट रूप से संदेश जाता है कि अफगानिस्तान अब पाकिस्तान की छाया से बाहर निकलकर भारत के करीब आ रहा है।
साल 2021, 15 अगस्त को तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद भारत ने काबुल स्थित अपना दूतावास पूर्ण रूप से बंद कर लिया था और सभी अधिकारी दिल्ली वापस लौट आए थे। उस वक़्त ऐसा माना गया था कि अफगानिस्तान के लिए भारत का दरवाजा अब हमेशा के लिए बंद हो गया है। लेकिन अब करीब 4 साल बाद तालिबान का शीर्ष नेतृत्व भारत की तरफ़ कदम बढ़ा रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी मुत्ताकी के दिल्ली दौरे को मंजूरी दे दी है, और उनकी यात्रा 16 अक्टूबर से पहले पूरी होने की संभावना जताई जा रही है।
भारत और तालिबान का संबंधों में बड़ा परिवर्तन
इस साल की शुरुआत में, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तालिबान के विदेश मंत्री से फ़ोन पर बातचीत की थी। इसके अलावा जून 2025 में भारत ने हैदराबाद स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास का नियंत्रण तालिबान द्वारा नियुक्त मोहम्मद रहमान को सौंप दिया था। यह कदम भी भारत और तालिबान के बीच बढ़ते संपर्क का बड़ा संकेत है।
भारत ने अफगानिस्तान के हर स्थिति में सहायता पहुँचाई है। अभी हाल ही में आये भूकंप के वक़्त भी भारत ने तत्काल राहत सामग्री भेजी थी। इसके अलावा अफगान और भारतीय नागरिकों के बीच ऐतिहासिक संबंध और भारत की अफगान विकास प्रोजेक्ट्स में सक्रिय हिस्सेदारी भी तालिबान को भारत की तरफ़ आकर्षित कर रही है। भारत ने अब तक तकरीबन 50,000 टन गेहूं, 330 टन दवाइयां और अन्य खाद्य एवं आश्रय सामग्री अफगान जनता तक सहायता पहुंचाने का काम किया है।
पाकिस्तान से तालिबान का विश्वासघात
जियो-पॉलिटिकल विश्लेषक उमर वज़िरी के मुताबिक, तालिबान और पाकिस्तान के संबंधों में आयी कमी के कई कारण हैं। दशकों तक पाकिस्तान ने तालिबान को अपने प्रॉक्सी के रूप में प्रयोग किया और उन्हें आश्रय, हथियार और वित्तीय रूप से मदद दी। लेकिन इसके साथ ही पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को अपना पांचवां राज्य मानने का प्रयास किया। पाकिस्तान चाहता था कि तालिबान की विदेश नीति पूरी तरह से इस्लामाबाद के निर्देशानुसार हो, जिसे तालिबान ने सिरे से ठुकरा दिया।
साल 2024, दिसंबर महीने में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में हवाई हमले कर दर्जनों अफगानों को मौत के घाट उतारा और पाकिस्तान में रह रहे लाखों अफगानों को ज़बरदस्ती बाहर निकाल दिया। तालिबान ने इसे पाकिस्तान के इस रवैये को विश्वासघात के तौर पर लिया । इसके अलावा, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा डूरंड लाइन पर विवाद ने दोनों देशों के बीच तल्खी और बढ़ा दी। तालिबान ने डूरंड लाइन पर पाकिस्तान ने लगाई बाड़ को भी हटा दिया।
भारत की विश्वसनीयता और मदद
तालिबान के विदेश मंत्री का भारत दौरा इस बात का बड़ा संकेत है कि तालिबान अब भारत पर विश्वास कर रहा है। भारत ने अफगान विकास कार्यों में पिछले कई दशकों से योगदान दिया है। भारत ने 2000 के दशक में अफगान संसद भवन, सड़कें, स्कूल और बांध बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। साथ ही, चाबहार पोर्ट के ज़रिये से भारत ने अफगानिस्तान को पाकिस्तान के बंदरगाह कनेक्शन से स्वतंत्र समुद्री मार्ग उपलब्ध कराया।
तालिबान ने कई बार भारत को अपना सहयोगी बताया है और भारत की दीर्घकालिक सहायता, व्यापारिक विकल्प और सम्मानजनक संवाद के कारण तालिबान अब पाकिस्तान की पकड़ से आज़ाद हो रहा है। भारत ने तालिबान को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन बातचीत और सहयोग के ज़रिये से संतुलन बनाए रखा है।
जियो-पॉलिटिकल संकेत
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुत्ताकी का भारत दौरा पाकिस्तान के लिए बड़ी चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है और साथ ही यह दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में बड़े बदलाव का प्रतीक है। पाकिस्तान की नीतियों, हवाई हमलों, शरणार्थियों के बाहर निकाले जाने और सीमा विवाद ने तालिबान का भरोसा खो दिया। वहीं भारत की दीर्घकालिक सहायता और सम्मानजनक रवैया तालिबान को भारत की तरफ़ खींच रहा है।
तालिबान का यह भारत दौरा यह भी दर्शाता है कि अफगानिस्तान अब पाकिस्तान की नीति से बाहर निकलकर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ा रहा है। भारत और तालिबान के बीच बढ़ती नज़दीकियां दक्षिण एशियाई सुरक्षा और विकास पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है।