Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • मर चुकी मां के गर्भ में पल रहा भ्रूण, 3 महीने बाद लेगा जन्म! दुनिया में छिड़ गई बहस
    • कभी थरूर के लिए कहा था- 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड, आज बीजेपी का सबसे प्रिय शख्स
    • मोदी चले नेहरू की राह पर? शशि थरूर से पहले भी एक PM ने विदेश में मनवाया था भारत का लोहा!
    • Bihar Election 2025: बिहार में कांग्रेस का ‘रील कैप्टन’ कौन? राहुल या कोई और? अपने ही भ्रमजाल में फंसी कांग्रेस
    • PM शरीफ ने माना भारत के ऑपरेशन सिंदूर से नूरखान एयरबेस समेत कई ठिकाने हुए तबाह
    • औरंगजेब पर लाखों खर्च: क्या सच में एक साधारण मकबरे पर पर मेहरबान भारत सरकार, आइए जाने कब्र की सियासत
    • टूट गई आम आदमी पार्टी, 13 पार्षदों ने दिया इस्तीफा, फिर बनाई नई पार्टी
    • सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंजूरी के ‘एक्स-पोस्ट-फैक्टो’ रास्ते को अवैध घोषित किया
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » दीपचंद सौर: बुंदेलखंड, वृद्ध दंपत्ति और पांच कुओं की कहानी
    ग्राउंड रिपोर्ट

    दीपचंद सौर: बुंदेलखंड, वृद्ध दंपत्ति और पांच कुओं की कहानी

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 3, 2025No Comments6 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    टीकमगढ़ का जमुनिया खेड़ा गांव। यहां खेत किनारे पलाश के पेड़ के नीचे एक वृद्ध तिरपाल की छाया के नीचे आराम कर रहे हैं। हमारे आवाज़ देने पर बड़ी सफेद मूंछ, दाढ़ी और सर पर काले बाल लिए छरहरे पतले शरीर वाला 60 वर्ष से अधिक उम्र का एक व्यक्ति बाहर निकलता है। यह दीपचंद सौर हैं।

    दीपचंद सौर पेशे से किसान हैं। वह टीकमगढ़ जिले के जमुनिया खेड़ा गांव में अपनी पत्नि गौराबाई के साथ रहते हैं। उनके पास कुल 7 एकड़ ज़मीन है जिसमें से 5 एकड़ में वो खेती करते हैं। बचे हुए 2 एकड़ में वो खेती नहीं कर पाते क्योंकि यहां पानी का कोई साधन ही नहीं है।

    मगर बचे हुए 5 एकड़ में भी पानी का जुगाड़ उनके लिए बेहद संघर्षपूर्ण रहा है। बुंदेलखंड के इस वृद्ध ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर 5 कुएं खोदे हैं। इनमें से 3 कुएं पत्थर निकलने की वजह से सूखे निकले। बाद में दीपचंद ने कुछ पैसे इकट्ठे कर दो बोरबेल भी करवाए लेकिन दोनों में पानी नहीं निकला। अब उनके लिए पानी का स्त्रोत उनके द्वारा खोदे हुए कुएं ही हैं।

    आगे बढ़ें उससे पहले आपके एक सवाल का जवाब देना ज़रूरी है, इस कहानी को पढ़ा क्यों जाए? इसके जवाब में आपको एक बुजुर्ग दंपत्ति की कल्पना करनी होगी जो अपने हाथों में गैती-फावड़ा लेकर मुसलसल कुआं खोदते हैं। एक नहीं, दो नहीं बल्कि पांच। यह कहानी बुंदेलखंड में पानी के उस संघर्ष के बारे में है जो आम तौर पर अनदेखा रह जाता है।

    दीपचंद हमें अपने द्वारा खोदे गए एक कुएं को दिखाने ले जा रहे हैं। खेत की मेड़ के किनारे दो जगह पत्थरों के ढेर हैं। इससे आगे बढ़ते हुए एक कुआं नज़र आता है। यह लगभग 15 फीट गहरा है। हम यहां बैठकर बात कर रहे थे तभी थोड़े दूर से एक महिला आते हुए दिखती है।

    bundelkhand water crisis 4
    टीकमगढ़ के जमुनिया खेड़ा गांव के दीपचंद सौर। Photograph: (Manvendra Singh Yadav/Ground Report)

    यह दीपचंद की पत्नी गौरबाई हैं। छोटे से कद वाली गौरबाई का शरीर बेहद कमज़ोर नज़र आता है। पर्याप्त पोषण के आभाव और अधिक उम्र के प्रभाव में सूख रहे हाथों पर गुदना (टैटू) के हरे-हरे निशान हैं और चेहरे पर झुर्रियां। उनके बारे में दीपचंद कहते हैं,

    “पांच कुएं खोद चुका हूं, मिट्टी का एक ढेला कभी बाहर नहीं निकाला। सारी मिट्टी बूढ़ी ने बाहर निकाली, मैंने सिर्फ खोदा है।”

    दीपचंद खुद कुएं खोदने से पहले अपने खेत के आस-पास कृषि करने वाले किसानों से पानी लिया करते थे। इस पानी के एवज में कई बार ज्यादा पैसा देना पड़ता था। फिर भी पानी समय से नहीं मिलता था। दीपचंद बताते हैं

    “पानी तब मिलता था, जब फसल पीली पड़ जाती थी।” 

    bundelkhand water crisis
    कुआं कच्चा होने से अब हर बरसात में इसमें मिट्टी भर जाती है जिससे 25 फीट का कुआं 15 फीट का रह जाता है। Photograph: (Manvendra Singh Yadav/Ground Report)

    क़र्ज़ और उससे उपजा पलायन

    दीपचंद बताते हैं कि साल  2006 और 2007 में लगातार सूखा पड़ा था। इस समय वे पास की कुछ जमीन ठेके पर लेकर खेती कर रहे थे। मगर उन्हें लगातार दो साल फसल ही नहीं मिल पायी। इससे उनके ऊपर एक लाख रुपए का क़र्ज़ हो गया। लोग उनकी जमीन खरीदना चाहते थे, पर वह बेचने के लिए राजी नहीं हुए।

    तब उन्होंने खेती-किसानी छोड़ पंजाब में छह महीने से ज्यादा समय तक मजदूरी की थी। इस समय दीपचंद, गौराबाई और उनकी दोनों छोटी बेटियां साथ में रहती थीं। घर से पंजाब जाने से पहले वह अपने बैल एक रिश्तेदार के यहां छोड़ गए थे। इसके अलावा सात एकड़ जमीन बगल के खेत वालों को देकर जाना पड़ा था। जब कर्ज चुक गया तब वे घर वापस आए और फिर से खेती शुरू कर दी।

    क़र्ज़ ने भले ही उनका पीछा छोड़ दिया हो मगर पानी की किल्लत अभी भी सर पर थी। ऐसे में उन्होंने 15 साल पहले पहला कुआं खोदने का निर्णय लिया। मगर शुरुआत के तीन बार पथरीली ज़मीन से केवल धूल और पत्थर ही हाथ आए। अब जब यह दंपत्ति अपने बुढ़ापे में है तब 2 कुओं में पानी बचा है। लेकिन यह कुएं भी कच्चे हैं इसलिए इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। अब वे दोनों इस कुएं को पक्का करना चाहते हैं। इसलिए चेहरे पर झुर्रियां, हाथ में फावड़ा और गैंती लिए पत्थर खोदते रहते हैं।  

    bundelkhand water crisis 5
    दीपचंद के साथ उनकी पत्नी ने भी कुआं खोदने में बराबर योगदान दिया है। Photograph: (Manvendra Singh Yadav/Ground Report)

    दीपचंद कुएं की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि यह कुआं 25 फीट गहरा था। तब पानी की मोटर की चेकबोल पूरी डूब जाती थी। मगर आखिर के दो सालों से बरसात के पानी के साथ आयी मिट्टी ने कुएं की तलहटी को लगभग 10 फीट तक भर दिया है। इस उम्र में दीपचंद की कमर दर्द करने लगी है। कभी-कभी पैर भी कांपने लगते हैं। इसलिए अब वे हर साल मिट्टी खाली करने में मेहनत नहीं कर सकते।

    दीपचंद रात में जंगली जानवरों व मवेशियों से फसल की सुरक्षा करने के लिए रातभर जागते रहते हैं। दिन में समय मिलता है, तो कुएं को पक्का करने के लिए खेत के कोने से पत्थर निकालते हैं।

    bundelkhand water crisis 3
    वे दोनों कुएं को पक्का करना चाहते हैं इसलिए चेहरे पर झुर्रियां, हाथ में फावड़ा और गैंती लिए पत्थर खोदते रहते हैं।  Photograph: (Manvendra Singh Yadav/Ground Report)

    दीपचंद को दिन, तारीख, साल कुछ याद नहीं रहता। उन्हें पढ़ना लिखना भी नहीं आता है। इसलिए सालों उन्हें सरकारी राशन भी नहीं मिला। साल 2024 में ही उन्हें राशन मिलना शुरू हुआ है। इस उम्र में वृद्धा पेंशन भी नहीं मिलती है। उन्हें सिंचाई के लिए किसी भी सरकारी योजना की जानकारी नहीं है। पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से नहरें भी नहीं हैं।

    दीपचंद पहले बगल के किसानों गोपाल यादव और गोटीराम आदिवासी के कुंओं से पानी लिया करते थे। जिसके लिए उन्हें हर साल पैसे देने पड़ते थे। अब भी गर्मियों में जब दीपचंद के दोनों कुएं सूख जाएंगे तो वह पीने के पानी के लिए इन्हीं पड़ोसियों पर निर्भर हो जाएंगे। दीपचंद और गौरबाई पानी की जंग तो जीत गए हैं, लेकिन प्यास अभी तक नहीं बुझ पायी है। आज भी उन्हें  आस है कि सरकार उनकी कुआं बनाने में मदद करेगी।

    भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को आर्थिक सहयोग करें।

    यह भी पढ़ें

    किसानों को सिंचाई के लिए ही नहीं मिल रहा उर्मिल बांध का पानी

    गर्मी से पहले नल जल योजनाएं अटकीं, 102 ट्यूबवेल में पानी नहीं मिला

    स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण): फंड की कमी के बीच बदहाल कचरा प्रबंधन

    बुंदेलखंड के गांवों में जल संचय की गुहार लगाती जल सहेलियों की टोली

    पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

    पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी।

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleपहलगाम के हमलावर कोलंबो में? श्रीलंकाई एयरलाइंस के विमान की जांच
    Next Article भारत के आयात प्रतिबंधों के बाद पाक ने भारतीय जहाजों के लिए बंदरगाह बंद किए
    Janta Yojana

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    Related Posts

    किसान मित्र और जनसेवा मित्रों का बहाली के लिए 5 सालों से संघर्ष जारी

    May 14, 2025

    सरकार की वादा-खिलाफी से जूझते सतपुड़ा के विस्थापित आदिवासी

    May 14, 2025

    पलायन का दुश्चक्र: बुंदेलखंड की खाली स्लेट की कहानी

    April 30, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    किसान मित्र और जनसेवा मित्रों का बहाली के लिए 5 सालों से संघर्ष जारी

    May 14, 2025

    सरकार की वादा-खिलाफी से जूझते सतपुड़ा के विस्थापित आदिवासी

    May 14, 2025

    दीपचंद सौर: बुंदेलखंड, वृद्ध दंपत्ति और पांच कुओं की कहानी

    May 3, 2025

    पलायन का दुश्चक्र: बुंदेलखंड की खाली स्लेट की कहानी

    April 30, 2025

    शाहबाद के जंगल में पंप्ड हायड्रो प्रोजेक्ट तोड़ सकता है चीता परियोजना की रीढ़?

    April 15, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    मर चुकी मां के गर्भ में पल रहा भ्रूण, 3 महीने बाद लेगा जन्म! दुनिया में छिड़ गई बहस

    May 17, 2025

    PM शरीफ ने माना भारत के ऑपरेशन सिंदूर से नूरखान एयरबेस समेत कई ठिकाने हुए तबाह

    May 17, 2025

    पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत बड़े पैमाने पर पानी निकालने वाला है, पाकिस्तान में इस प्रोजेक्ट पर मची है दहशत

    May 16, 2025
    एजुकेशन

    बैंक ऑफ बड़ौदा में ऑफिस असिस्टेंट के 500 पदों पर निकली भर्ती, 3 मई से शुरू होंगे आवेदन

    May 3, 2025

    NEET UG 2025 एडमिट कार्ड जारी, जानें कैसे करें डाउनलोड

    April 30, 2025

    योगी सरकार की फ्री कोचिंग में पढ़कर 13 बच्चों ने पास की UPSC की परीक्षा

    April 22, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.