
Two Surveys Raise BJP’s Tension (Photo: Social Media)
Two Surveys Raise BJP’s Tension
बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। सारी पार्टीयां साम-दाम दंड-भेद लगाकर अपने मछली की आंख को भेदने की तैयारी में लगी है ताकि सत्ता के सिंहासन पर अगले पांच बरस तक उनका ही कब्जा रहे। इसी बीच BJP अब विधानसभा चुनाव में गुजरात की रणनीति को दोहराने की योजना बना रही है। गुजरात में BJP ने जो मॉडल अपनाया था, उसी तरह बिहार में भी सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए कई बड़े कदम उठा सकती है। गुजरात चुनाव 2022 में पार्टी ने जिस तरह से सत्ता विरोधी लहर से निपटा था, उसी रणनीति को बिहार में भी लागू करने की तैयारी है। इस रणनीति के तहत, बीजेपी सत्ता के विरोध में उठ रही नाराजगी को अपने पक्ष में बदलने की कोशिश करेगी।
गुजरात मॉडल और उसकी सफलता
गुजरात में बीजेपी लगातार 1995 से सत्ता में रही है और 2022 के चुनाव से पहले पार्टी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की चर्चा काफी जोरों पर थी। कोरोना महामारी के दौरान सरकार की व्यवस्थाओं को लेकर जनता में नाराजगी थी, वहीं मोरबी पुल हादसे ने स्थिति को और खराब कर दिया। इस चुनौती से निपटने के लिए बीजेपी ने चुनाव से एक साल पहले बड़ा कदम उठाया। पार्टी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया। इसके साथ ही पूरी कैबिनेट को बदल दिया गया, ताकि जनता को यह संदेश दिया जा सके कि पार्टी ने अपनी सरकार में बदलाव किया है। इसके बाद 2017 में जीते 99 विधायकों में से 45 के टिकट काट दिए गए। इन फैसलों के साथ बीजेपी ने यह संदेश दिया कि अगर जनता को 2017 की सरकार से कोई नाराजगी है, तो वह सरकार अब पूरी तरह बदल दी गई है। इस रणनीति का फायदा हुआ, और बीजेपी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में 182 सीटों वाली विधानसभा में 156 सीटें जीतकर एक ऐतिहासिक विजय प्राप्त की।
बिहार में गुजरात मॉडल लागू करने की रणनीति
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी अब गुजरात की ही रणनीति को अपनाने की सोच रही है। पार्टी की योजना है कि वह बड़े नेताओं को चुनाव में उतारेगी और साथ ही बड़े पैमाने पर उम्मीदवारों को बदलने की तैयारी भी कर रही है। बीजेपी के लिए बिहार में कई चुनौतियाँ हैं, जिनका मुकाबला करने के लिए यह रणनीति अपनाई जा रही है।
बिहार में बीजेपी के सामने आने वाली चुनौतियाँ
बिहार में बीजेपी के सामने कई ऐसी चुनौतियाँ हैं, जिनके कारण पार्टी को गुजरात के मॉडल की रणनीति अपनाने की जरूरत महसूस हो रही है। सबसे बड़ी चुनौती एंटी इनकंबेंसी और सत्तारूढ़ विधायकों के खिलाफ सार्वजनिक नाराजगी है। विभिन्न इलाकों में बीजेपी के सत्ताधारी विधायकों के खिलाफ विरोध हो रहा है। उदाहरण के लिए, 22 सितंबर को पूर्णिया सदर में बीजेपी विधायक विजय खेमका का विरोध हुआ, वहीं 25 अगस्त को पटना में प्रदर्शनकारियों ने स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के काफिले पर पथराव किया था। इसके अलावा, जेडीयू के मंत्री श्रवण कुमार और विधायक कृष्ण मुरारी को भी विरोध का सामना करना पड़ा है।
इसके साथ ही, जनसुराज नेता प्रशांत किशोर द्वारा बीजेपी नेताओं पर लगाए गए गंभीर आरोपों से पार्टी की मुश्किलें बढ़ी हैं। उन्होंने डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को हत्या के मामले में अभियुक्त तक बताया है। इस स्थिति में बीजेपी को एक नई रणनीति अपनाने की जरूरत महसूस हो रही है।
नीतीश कुमार की सेहत और सत्ता की स्थिति को लेकर भी बीजेपी को मुश्किलें हैं। कुछ लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार मानसिक रूप से सेहतमंद नहीं हैं और सरकार पूरी तरह से ब्यूरोक्रेट्स और अन्य नेताओं द्वारा चलाई जा रही है।
बिहार में बीजेपी का उम्मीदवार चयन और बदलाव की योजना
बिहार में उम्मीदवारों के चयन के लिए बीजेपी के केंद्रीय कोर ग्रुप ने व्यापक बदलाव की योजना बनाई है। हालांकि, इस बारे में कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि बिहार का राजनीतिक परिदृश्य गुजरात जैसा नहीं है, इसलिए यह बदलाव गुजरात के पैमाने पर नहीं हो सकता है।
बीजेपी ने यह फैसला लिया है कि उसे नए और साफ सुथरे चेहरों को चुनाव में उतारने की जरूरत है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जिन 36 सीटों पर बीजेपी हार गई थी, उन सीटों पर उम्मीदवारों का चयन बदलने की योजना है।
बीजेपी को कर्नाटक से भी एक बड़ा सबक मिला है। कर्नाटक में कई उम्मीदवारों को टिकट न दिए जाने के कारण विरोध हुआ और पार्टी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। मगठबंधन की मजबूरियां भी बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। बिहार में चुनाव गठबंधन में तीन-चार पार्टियों के साथ लड़ा जाना है और जातिगत समीकरण का ध्यान रखना जरूरी है।
बिहार में बीजेपी की हैवी वेट्स को चुनाव लड़ा रही है। पार्टी आलाकमान ने कई मंत्रियों और नेताओं को विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी के रूप में उतारने की योजना बनाई है। इसके तहत सम्राट चौधरी, जनक राम, हरी सहनी और मंगल पांडे जैसे नेताओं को MLA का चुनाव लड़ाने की तैयारी की जा रही है।
चुनाव की तैयारी और संगठनात्मक काम
बीजेपी ने अगस्त और सितंबर में बिहार की सभी सीटों को लेकर दो सर्वे किए थे, जिनकी रिपोर्ट केंद्रीय समिति के सामने पेश की गई है। इसके बाद पार्टी में टिकट वितरण को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
चुनाव की तैयारियों को देखते हुए पार्टी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को बिहार का प्रभारी नियुक्त किया है। इसके साथ ही, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी बिहार का दौरा किया और क्षेत्रीय स्तर पर संगठन के नेताओं के साथ बैठकें कीं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी बिहार में जमीन तैयार कर रहा है। इसके कार्यकर्ता दिल्ली की तर्ज पर बिहार में घर-घर जाकर मतदाताओं से मुलाकात कर रहे हैं। इस तरह, बीजेपी बिहार में गुजरात मॉडल को अपनाने की तैयारी में है, लेकिन यहां एक बड़ा मसला यह है कि गुजरात में पार्टी मुख्यमंत्री को बदल सकती है, जबकि बिहार में यह संभव नहीं है क्योंकि चुनाव के परिणामों के बाद नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावना अधिक है।