
Omkareshwar Mandir
Omkareshwar Mandir: भारत की पवित्र नदियों में नर्मदा का महत्व बेहद खास है। मान्यता है कि नर्मदा स्वयं शिव की देह से उत्पन्न हुई दिव्य नदी है, जो अपने प्रवाह की प्रत्येक लहर में शिवत्व का स्पर्श लिए बहती है। इसी नर्मदा के मध्य स्थित मान्धाता-पर्वत पर ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग स्थापित है। जो प्राकृतिक रूप से ‘ॐ’ आकार में बने भू-भाग पर साकार दिव्यता के तौर पर जाना जाता है। यहां नदी, पर्वत और ज्योतिर्लिंग तीनों मिलकर ऐसा आध्यात्मिक त्रिवेणी-संगम बनाते हैं, जिसे संसार में अद्वितीय कहा गया है। इंदौर से लगभग 77 किलोमीटर और खंडवा शहर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धाम नर्मदा के शांत प्रवाह के बीच बसा हुआ है। नर्मदा का हर घाट, हर लहर और हर पत्थर शिव का स्वरूप माना जाता है। यही कारण है कि ओंकारेश्वर धाम में नर्मदा-स्नान, पर्वत-परिक्रमा और ज्योतिर्लिंग-दर्शन तीनों को मिलाकर पूर्ण तीर्थयात्रा का स्वरूप माना जाता है।
इस तरह पड़ा मांधाता पर्वत का नाम
प्राचीन काल में राजा मान्धाता ने इसी पर्वत पर कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दर्शन दिए, जिसके बाद यह पर्वत मान्धाता-पर्वत कहलाने लगा। यह पूरा पर्वत शिव का स्वरूप माना जाता है। भक्त पर्वत की परिक्रमा करते हैं और इस पवित्र भूमि को शिवपुरी के नाम से भी जाना जाता है। नर्मदा नदी यहां ‘ॐ’ जैसा आकार बनाती है, जो इस स्थान की आध्यात्मिकता को और अधिक लोकप्रिय बनाता है।
प्राकृतिक रूप से निर्मित ज्योतिर्लिंग
ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं है। यह स्वयं अपनी प्राकृतिक अवस्था में प्रकट हुआ माना गया है। मंदिर के अंदर पहुंचने के लिए दो संकरी कोठरियों से गुजरना पड़ता है, जहां निरंतर दीपक जलते रहते हैं। शिवलिंग के चारों ओर हमेशा नर्मदा का जल भरा रहता है और इसे स्पर्श करते ही एक गहरी दिव्य अनुभूति होती है।
ओंकारेश्वर और ममलेश्वर के दो रूप
ओंकारेश्वर धाम की मान्यता दो शिवलिंगों एक ओंकारेश्वर और दूसरा ममलेश्वर के अस्तित्व से जुड़ी है। मान्यता के अनुसार विन्ध्य पर्वत ने शिव की कठोर उपासना कर उन्हें प्रसन्न किया था। शिवजी जब प्रकट हुए तो उन्होंने विन्ध्य को वरदान दिया और ऋषियों की प्रार्थना पर स्वयं को दो भागों में विभाजित कर दिया। एक शिवलिंग को ओंकारेश्वर और दूसरे को अमलेश्वर या ममलेश्वर कहा गया। दोनों मंदिर अलग स्थानों पर हैं, लेकिन दोनों की आध्यात्मिक शक्ति एक मानी जाती है। भक्त दोनों के दर्शन करके यात्रा को पूर्ण मानते हैं।
रात में शिव-पार्वती के चौसर खेलने की परंपरा
ओंकारेश्वर धाम की विशेषता में शामिल अनोखी और प्राचीन परंपरा शिव और पार्वती के द्वारा रात में चौसर खेलने की मान्यता बेहद लोकप्रिय है। हर रात गुप्त आरती के बाद गर्भगृह में शिवलिंग के सामने चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। कई बार ऐसा हुआ है कि जो बिसात रात में जिस जगह रखी गई, वह सुबह बदल कर किसी दूसरी जगह मिली। इसे शिव-पार्वती की लीला माना जाता है।
रात्रि की गुप्त आरती में केवल पुजारी मौजूद रहते हैं। यह रुद्राभिषेक से शुरू होकर शयन-आरती तक चलता है। आरती के बाद चौसर-पांसे रखकर गर्भगृह के पट बंद कर दिए जाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान के लिए नई चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है।
महाशिवरात्रि की दिव्य और विशेष तैयारी
महाशिवरात्रि के अवसर पर ओंकारेश्वर में अद्भुत माहौल देखने को मिलता है। श्रद्धालु सुबह-सुबह नर्मदा स्नान करके ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं। इस दिन मंदिर के पट सामान्य दिनों से एक घंटा पहले खोल दिए जाते हैं, और पूरे दिन तीनों पहरों में रुद्राभिषेक और जलाभिषेक की प्रक्रिया चलती रहती है।
भगवान को 251 किलो पेड़े का विशेष महाभोग लगाया जाता है। मठों और आश्रमों में भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। पूरे धाम में भक्तों को साबूदाने की खिचड़ी और सिंघाड़े के हलवे का प्रसाद वितरित किया जाता है। ओंकार पर्वत की परिक्रमा करने की परंपरा भी महाशिवरात्रि पर विशेष रूप से निभाई जाती है। इस पर्व पर आने वाले भक्तों का सिलसिला दो-तीन दिन पहले से ही शुरू हो जाता है।
नर्मदा और ओंकारेश्वर का आध्यात्मिक संबंध
ओंकारेश्वर धाम नर्मदा नदी से जुड़ा होने के कारण और भी पवित्र माना जाता है। यहां नर्मदा और कावेरी (कवि नदी) का संगम भी स्थित है। नर्मदा-स्नान को मोक्ष देने वाला कहा गया है। ओंकारेश्वर में स्नान व दर्शन का महत्व कई पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है।
ऐसा कहा जाता है कि यहां की भूमि पर कदम रखते ही मन में एक अजीब-सी शांति उतर आती है। नर्मदा का शांत प्रवाह, पर्वत का प्राकृतिक ‘ॐ’ आकार, और शिवलिंग की दिव्यता मिलकर इस स्थान को अद्वितीय बनाते हैं।


