
भारतीय जनता पार्टी के महिला मोर्चा की हरिद्वार की पूर्व जिलाध्यक्ष अनामिका शर्मा और उसके दोस्त सुमित पटवाल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अनामिका शर्मा इस जनवरी पति से अलग होकर अपने दोस्त सुमित पटवाल के साथ रह रही थी। अनामिका शर्मा की नाबालिग बेटी ने अपनी माँ पर आरोप लगाया है कि उसने अपने दोस्त सुमित पटवाल और उसके सहयोगी शुभम से अपनी उपस्थिति में गैंगरेप करवाया है। यह गैंगरेप एक बार नहीं बल्कि जनवरी से मार्च के बीच में कम से कम 8 बार हुआ है। इस दौरान यह महिला बीजेपी नेता, जिसे अब पार्टी ने निकाल दिया गया है, आगरा, वृंदावन जैसी जगहों पर घूमने गई और अपनी बेटी को भी अपने साथ ले गई।
बेटी कहती है कि उसे पहले शराब पीने पर मजबूर किया जाता और फिर माँ के दोस्त माँ के ही सामने उसका बलात्कार करते। बेटी ने पुलिस को बताया कि माँ यह कहना नहीं भूलती थी कि “इसमें कुछ ग़लत नहीं है, यही जीवन जीने का सही तरीका है”। बच्ची को धमकाया जाता था कि अगर उसने यह बात किसी को बताई तो उसके पिता को मार दिया जाएगा। लेकिन बेटी ने किसी तरह यह बात अपने पिता को बताई और फिर अनामिका शर्मा और दोनों आदमी गिरफ्तार हुए।
इसी तरह लखनऊ में ढाई साल की बच्ची को दीपक वर्मा नामक एक 24 साल का आदमी उठाकर ले गया, उसके साथ बलात्कार किया और फिर भाग गया। बच्ची सड़क के किनारे अपने माँ बाप के साथ सो रही थी तभी दीपक, जोकि एक आदतन अपराधी भी है, बच्ची को उठा ले गया। कुछ देर बाद बच्ची घायल अवस्था में 500 मीटर दूर मिली। बच्ची का इलाज चल रहा है और अपराधी दीपक वर्मा, जिसे पुलिस ने बड़ी मुस्तैदी से खोज निकाला और जब वो भागने लगा और गोलियाँ चलाने लगा तब पुलिस को भी आत्मरक्षा में उस पर गोली चलानी पड़ी। ढाई साल की बच्ची का बलात्कार करने वाला दीपक वर्मा पुलिस एनकाउंटर में मारा गया।
एक और मामले में, रांची जिले के एक गाँव छन्हो में एक शादी समारोह चल रहा था तभी 25 साल का एक आदमी 5 साल की एक बच्ची को आम देने के बहाने समारोह से दूर ले जाता है। इसके बाद बच्ची के साथ बलात्कार करता है और उसे लहूलुहान करके भाग जाता है। बच्ची और ये निकृष्ट आदमी दोनों एक ही गाँव के हैं। पुलिस ने इसे भी गिरफ्तार कर लिया है।
ऐसे अनगिनत मामले सामने आ रहे हैं। न कोई रुकावट नज़र आ रही है न कोई भय! ऐसी कोई संस्था नहीं है जो निवारक उपायों पर चर्चा करे और ऐसी घटनाओं को घटने से रोके। ऐसी कोई रिसर्च भी नहीं मिल रही है जिससे यह पता चल सके कि आख़िर ये घटनाएँ हो क्यों रही हैं? इनकी संख्या बढ़ क्यों रही है? कानून और सजा से भय क्यों ख़त्म हो रहा है? और इसके अलावा सामाजिक बहिष्कार का भय भी क्यों समाप्त हो चुका है?
2012 के पहले तक बच्चों के यौन शोषण के ख़िलाफ़ कोई विशेष कानून नहीं था। लेकिन 2012 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा, POCSO अर्थात ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज’ (POCSO) एक्ट लाया गया। इसका उद्देश्य भारत में बच्चों के यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लीलता से संबंधित अपराधों से निपटना था। 14 नवंबर 2012 को यह कानून लागू किया गया। अब कम से कम एक कानून तो उपलब्ध था जो 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण से निपट सकता था।
2013 से नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बच्चों से संबंधित यौन अपराधों की गणना अलग से शुरू की। NCRB 2013 की रिपोर्ट के अनुसार, POCSO एक्ट के तहत कुल 12,363 मामले दर्ज किए गए। NCRB 2022 की रिपोर्ट आते आते यह आंकड़ा लगभग 400% बढ़ गया। NCRB 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, POCSO एक्ट के तहत 63,414 मामले दर्ज किए गए, जो कि 2013 की तुलना में 413% की वृद्धि दर्शाता है।
POCSO के बढ़ते हुए मामले और बढ़ते हुए बलात्कार के मामलों की संख्या में इतनी अधिक वृद्धि बड़ी चिंता का कारण है।
2014 में पोप फ्रांसिस ने एक अनुमान के आधार पर कहा था कि दुनिया भर में फैले चर्च में रह रहे पादरियों में से 2% पीडोफाइल हो सकते हैं। पीडोफाइल को लेकर वैज्ञानिकों में आम सहमति की परिभाषा यह है कि जिन लोगों को 13 साल या उससे कम उम्र के बच्चों में यौन आकर्षण होता है यौन दिलचस्पी होती है उन्हें पीडोफाइल कहा जा सकता है।
टोरंटो विश्वविद्यालय में यौन व्यवहार विशेषज्ञ डॉ. माइकल सेटो, ने अपनी एक किताब में यह अनुमान लगाया था कि समाज में लगभग 5% लोग यौन शोषण में शामिल हो सकते हैं हालांकि बाद में उन्होंने अपने ही आंकड़ों में संशोधन करके इसे 1% कर दिया। लेकिन वैश्विक आबादी का 1% भी कम संख्या नहीं है। डॉ. सेटो का अध्ययन चुनिंदा विकसित देशों को लेकर था जहाँ मानव गुणवत्ता सूचकांक उच्च स्तर का है। भारत जैसे विकासशील देशों में ऐसे लोगों की संख्या निश्चित ही अधिक होगी। यहाँ आसानी से किसी बच्ची को रेलवे स्टेशन से उठाया जा सकता है, बच्ची के माता-पिता का रहन सहन इतना निम्न है कि उन्हें सड़क किनारे सोना पड़ रहा है, बच्चे भारत में बेहद असुरक्षित वातावरण में पल-बढ़ रहे हैं विशेषतया वो बच्चे जिनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब है।
इन्ही परिस्थितियों का लाभ उठाकर अपराधी या तो ख़ुद बच्चों का यौन शोषण करते हैं या फिर उन्हें एक ऐसे दलदल में फेंक देते हैं जहाँ सालों तक उनका यौन शोषण होता रहता है। ECPAT (End Child Prostitution in Asian Tourism) एक वैश्विक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है, जिसकी स्थापना 1990 में थाईलैंड में की गई थी। यह संगठन बच्चों के यौन शोषण और तस्करी को समाप्त करने के लिए काम करता है। ECPAT की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बच्चों की तस्करी, विशेष रूप से यौन शोषण के उद्देश्य से, एक गंभीर समस्या है। 2020 में 2,222 बच्चे तस्करी के शिकार थे। यह संख्या वास्तविकता से कम हो सकती है क्योंकि कई मामले दर्ज ही नहीं होते।
यह आंकड़े लड़कियों में अधिक जोखिम को दर्शाते हैं। पर ऐसा नहीं है कि यौन शोषण से ख़तरा सिर्फ़ लड़कियों को ही है। डॉ. अलंकार शर्मा, ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ वोलोंगोंग के स्कूल ऑफ हेल्थ एंड सोसाइटी में शोधार्थी हैं। वे भारत में बाल यौन शोषण, विशेष रूप से लड़कों और पुरुषों के अनुभवों पर केंद्रित अनुसंधान के लिए जाने जाते हैं। उनका कहना है कि दुनिया भर में प्रत्येक 6 लड़कों में से एक को यौन शोषण का सामना करना पड़ता है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2007 में यौन शोषण को लेकर एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में यह बात सामने आयी कि, भारत में 53% बच्चों ने किसी न किसी रूप में यौन शोषण का सामना किया। आश्चर्य की बात यह कि 50% मामलों में अपराधी, पीड़ित बच्चे का परिचित या विश्वासपात्र व्यक्ति ही था।
भारत 21वीं सदी के शुरुआत से ही बाल यौन शोषण को लेकर सतर्क रहा है। इस संबंध में तमाम अध्ययन भी करवाए गए हैं जिससे नीति निर्माण में आसानी हो सके। ऊपर दिए गए अध्ययन इसका प्रमाण हैं। इसके अलावा भारत ने UNCRC अर्थात् संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि-1989 में भी हस्ताक्षर किया है। 1989 में अपनाई गई यह संधि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को परिभाषित करती है।
भारत ने 1992 में इस संधि को स्वीकार किया, इसके बाद भारत ने इस संधि के तहत तमाम कानून और नीतियों को अंजाम भी दिया। उदाहरण के लिए: बाल विवाह को रोकने के लिए, बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006; राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) 2007; POCSO अधिनियम, 2012; बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए और 2015 में जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम(इसने 2000 में लाए गए कानून को प्रतिस्थापित किया)।
लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि इन अध्ययनों और इसके बाद किए गए कानूनों के बाद भी बाल यौन शोषण के मामलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। टोरंटो विश्वविद्यालय के डॉ सेटो का मानना है कि नेता, अभिनेता और धर्मगुरु बच्चों के यौन शोषण में सबसे आगे हैं। इनका यह आंकलन ग़लत भी नहीं है। ‘यूज़ुअल सस्पेक्टस’ और ‘हाउस ऑफ़ कार्ड्स’ में काम करने वाले अभिनेता केविन स्पेसी हों या पूर्व इजराइली प्रधानमंत्री एहूद बराक, या भारत के मामले में बृजभूषण शरण सिंह हों या कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा इन सभी पर या तो बाल यौन शोषण के मामले चल रहे हैं या चल चुके हैं और भारतीय सिस्टम की खामियों के कारण इनमें से कई बच गए हैं और आगे भी बचते रहेंगे।
मुझे लगता है कि कानून इस संबंध में कोई मिसाल क़ायम नहीं कर पा रहा है। बड़ी मछलियाँ आसानी से छूट जाती हैं और बाल यौन शोषण मजाक बनकर रह जाता है। अख़बारों की खबरें यह बताती हैं कि ‘वो’ बड़ा नेता जिस पर पॉक्सो चल रहा था वह छूट गया। यह सिर्फ खबर नहीं है बल्कि अपराधियों को मिलने वाला दुस्साहस है जिसका इस्तेमाल वो मासूम बच्चों के यौन शोषण में करते हैं। अपराधियों के छूटने की ख़बरों से समाज के लिए कोई मजबूत संदेश नहीं जाता बल्कि अपराधियों के हौसले बुलंद से और बुलंद होते रहते हैं। ऑनलाइन पोर्नोग्राफी और एडल्ट कंटेंट का लगातार और आसान फैलाव, तमाम लोगों में मानसिक कुण्ठाओं को जन्म दे रहा है जिसे रोक पाने और संयमित कर पाने में प्रशासन नाकाम है और इन सबका सामूहिक परिणाम यह है कि ऐसी घटनाएँ रोके नहीं रुक रही हैं।