भारत और इंग्लैंड के बीच 20 जून से शुरू होने वाली पाँच टेस्ट मैचों की सीरीज अब नए नाम से जानी जाएगी। पहले पटौदी ट्रॉफी के नाम से मशहूर इस सीरीज का नाम बदलकर तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी कर दिया गया है। बीबीसी की रिपोर्ट में यह कहा गया है। यह फ़ैसला इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड यानी ईसीबी और बीसीसीआई के बीच आपसी सहमति से लिया गया है, जिसका उद्देश्य क्रिकेट के दो दिग्गज खिलाड़ियों सचिन तेंदुलकर और जेम्स एंडरसन के योगदान को सम्मानित करना बताया जा रहा है। लेकिन इस फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं। कुछ लोग इसे मंसूर अली खान पटौदी और उनके पिता इफ्तिखार अली खान के अपमान से जोड़ रहे हैं तो कुछ लोग इसे मुस्लिम पहचान से जोड़ रहे हैं। आख़िर ऐसे सवाल क्यों उठ रहे हैं?
इस सवाल का जवाब पाने से पहले यह जान लें कि आख़िर नाम बदलने के पीछे कारण क्या बताया गया है। ईसीबी और बीसीसीआई के अनुसार, यह बदलाव दोनों देशों के क्रिकेट इतिहास में तेंदुलकर और एंडरसन के अतुलनीय योगदान को मान्यता देने के लिए किया गया है। सचिन तेंदुलकर ने अपने करियर में 200 टेस्ट मैच खेले और 15,921 रन बनाए, जबकि जेम्स एंडरसन टेस्ट क्रिकेट में 700 से अधिक विकेट लेने वाले पहले तेज गेंदबाज हैं। नई ट्रॉफी का अनावरण 11 जून को होने की संभावना है।
सुनील गावस्कर ने जताई नाराजगी
इस फ़ैसले पर भारत के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि पटौदी ट्रॉफी का नाम मंसूर अली खान पटौदी और उनके पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी के सम्मान में रखा गया था, जो दोनों देशों के क्रिकेट इतिहास का हिस्सा हैं। गावस्कर ने इसे परंपरा के साथ छेड़छाड़ बताया।
शशि थरूर ने भी इस पर ट्वीट किया, ‘समस्या यह है कि आज के क्रिकेट के संरक्षकों का खेल के पवित्र इतिहास के प्रति कितना कम सम्मान है। मुझे शर्मिला टैगोर के साथ पटौदी ट्रॉफी टेस्ट देखने का सम्मान प्राप्त हुआ। यह उनके और उनके प्रतिष्ठित परिवार के प्रति कितना अपमान दिखाता है!’
एक्स पर विवाद और प्रतिक्रियाएं
नाम बदलने की घोषणा के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ यूजरों ने इस क़दम को क्रिकेट के आधुनिक दिग्गजों को सम्मान देने का सकारात्मक कदम बताया, जबकि अन्य ने इसे ‘मुस्लिम पहचान को मिटाने की कोशिश’ करार दिया। एक यूजर ने लिखा, ‘पटौदी ट्रॉफी का नाम बदलना केवल इसलिए किया गया क्योंकि यह एक मुस्लिम नाम से जुड़ा था। यह हिंदुत्व की विचारधारा का हिस्सा है।’
वहीं, कई यूजरों ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि यह फ़ैसला खेल के प्रति सम्मान का प्रतीक है और इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं। एक अन्य पोस्ट में लिखा गया, ‘सचिन और एंडरसन के नाम पर ट्रॉफी रखना गलत नहीं है, लेकिन पटौदी परिवार के योगदान को भुलाया नहीं जाना चाहिए।’
पटौदी ट्रॉफी का नाम 2007 में शुरू किया गया था, जो मंसूर अली खान पटौदी और उनके पिता के भारत-इंग्लैंड टेस्ट क्रिकेट में योगदान को समर्पित था। अब इस बदलाव ने क्रिकेट प्रशंसकों और इतिहासकारों के बीच बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे क्रिकेट के विकास के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे सांस्कृतिक पहचान से जोड़कर देख रहे हैं।
20 जून से हेडिंग्ले में शुरू होने वाली इस सीरीज में भारतीय टीम गौतम गंभीर की कोचिंग में उतरेगी, लेकिन रोहित शर्मा और विराट कोहली इस सीरीज का हिस्सा नहीं होंगे। यह बदलाव क्रिकेट इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत तो कर रहा है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठा रहा है कि क्या परंपराओं को संरक्षित करने और आधुनिकता को अपनाने के बीच संतुलन बनाया जा सकता है।