लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अपने बयानों से एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के लिए सिरदर्द बनते नजर आ रहे हैं। जैसे-जैसे बिहार विधानसभा 2025 के चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है चिराग पासवान अपने बयानों का डोज बढ़ाते जा रहे हैं।
खुद को युवा बिहारी कहने वाले और बिहार फर्स्ट का नारा देने वाले चिराग पासवान ने कुछ समय पहले यह बात कही थी कि उनका दिल दिल्ली में नहीं लगता और बिहार उन्हें बुला रहा है लेकिन उस समय उन्होंने कहा था कि इस चुनाव के बाद इस बारे में वह फैसला करेंगे। अब उनकी पार्टी की ओर से ताजा बयान में यह संकेत दिया गया है कि चिराग पासवान न केवल विधानसभा चुनाव लड़ेंगे बल्कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे।
हाजीपुर की सुरक्षित सीट से लोकसभा के सदस्य बने चिराग पासवान की पार्टी इस समय वह सभी हथकंडे अपना रही है जो चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स में अपनाए जाते हैं। उनकी पार्टी ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर अपने पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान को विधानसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी है। इसके बाद चिराग पासवान ने भी पार्टी के फैसले पर सहमति जताने की औपचारिकता पूरी करते हुए कहा कि अगर चुनाव लड़ने से पार्टी और गठबंधन का प्रदर्शन बेहतर होता है तो वह जरूर चुनाव लड़ेंगे।
इन बयानों से 2020 के विधानसभा चुनाव की याद ताजा हो जाती है जब उन्होंने एनडीए में रहते हुए एनडीए से अलग चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई और हर उस सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा किया जहां से जनता दल यूनाइटेड का उम्मीदवार खड़ा हुआ था। इसके बाद नीतीश कुमार की पार्टी केवल 43 सीटों पर सिमट गई थी और यह माना जाता था कि लगभग तीन दर्जन सीटों पर नीतीश कुमार की पार्टी के उम्मीदवारों की हार की बड़ी वजह चिराग पासवान के उम्मीदवारों को मिले हुए वोट थे। यानी चिराग पासवान की पार्टी ने नीतीश कुमार के खिलाफ ‘वोटकटवा’ का काम किया।
उस समय नीतीश कुमार से चिराग पासवान बिल्कुल खुश नजर नहीं आते थे और उनकी खुलकर आलोचना भी करते थे। इस समय से चिराग पासवान ने खुद को ‘मोदी का हनुमान’ बताना शुरू किया था और कई लोगों की राय यह थी कि दरअसल भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर ही उन्होंने अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं ताकि नीतीश कुमार की पार्टी का विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन कमजोर हो जाए। चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार की हालत इतनी कमजोर हो गई कि उन्हें मजबूरी में यह कहना पड़ा कि वह मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते हैं। यह अलग बात है कि इसके बावजूद वह मुख्यमंत्री बने।
2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने चिराग पासवान को पूरी तरह साथ कर लिया और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को एनडीए में अलग-अलग कर दिया। इसकी वजह से पारस तो एनडीए से बाहर हो गए लेकिन चिराग पासवान का कद काफी बढ़ गया। भारतीय जनता पार्टी ने चिराग पासवान की पार्टी को लोकसभा के पांच सीटें दीं और उन सभी सीटों पर चिराग के उम्मीदवार जीत गए। इसके बाद चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के साथ अपने संबंध बेहतर करने शुरू किए।
नीतीश कुमार ने जब अगस्त 2022 मैं एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार बनाई तो चिराग पासवान का कद एनडीए में और बढ़ गया। यह और बात है कि नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मारते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ ही पहले दोबारा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गए।
इस दौरान नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं काफी बढ़ गई और उनके अजीबोगरीब हरकत से भी उनकी काफी बदनामी हुई। राजनीतिक तौर पर एक और बदलाव यह आया कि प्रशांत किशोर अब एक तीसरी शक्ति के रूप में बिहार में उभरने की कोशिश में लगे हैं। इन सब के बीच इस बात पर भी शक पैदा हुआ कि क्या भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार को 2025 के चुनाव में एनडीए का चेहरा बनाना पसंद करेगी या नहीं। भारतीय जनता पार्टी के नेता परस्पर विरोधी बयान देते रहे लेकिन फिलहाल ऐसा लगता है कि भाजपा औपचारिक रूप से उन्हें ही एनडीए का चेहरा मानती है और उन्हें ही अगले मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रही है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक यह याद दिलाते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने ऐसा ही स्टैंड लेते हुए दिखाने की कोशिश की थी लेकिन शायद अंदर ही अंदर वह चिराग पासवान को भी इस बात के लिए उकसा रही थी कि वह अपने उम्मीदवार जदयू के उम्मीदवार के खिलाफ खड़े करें। पांच साल बाद कई लोगों को लगता है कि वही सीन दोहराया जा रहा है।
इस सारी बयानबाजी के पीछे सीटों के बंटवारे की राजनीति भी लोगों को समझ में आ रही है। नीतीश कुमार की कमजोर स्थिति के बावजूद ऐसा माना जा रहा है कि उनकी पार्टी एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के बराबर सीट चाहती है। उधर भारतीय जनता पार्टी चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के नाम पर नीतीश कुमार को इस बात के लिए तैयार करने की कोशिश में लगी है कि वह इस बार कम सीट पर चुनाव लड़ें। पिछली बार चिराग पासवान की पार्टी केवल एक सीट पर जीत हासिल कर सकी थी और उस विजयी उम्मीदवार ने भी बाद में उनकी पार्टी छोड़ दी थी। लेकिन इस बार उनके तरकश में यह तीर है कि उन्होंने पांच लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की है और उनका स्ट्राइक रेट 100% है।
फिलहाल चिराग पासवान औपचारिक रूप से यही कहेंगे कि मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार ही उनकी पसंद है और इस सीट के लिए कोई वैकेंसी नहीं है लेकिन उनकी पार्टी एक समानांतर नीति के तहत उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाते रहेगी। आमतौर पर सीट बंटवारे में घमासान के लिए महागठबंधन खबरों में रहता है लेकिन इस समय एनडीए में यह खींचतान जोरों पर है।कई लोगों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी चिराग पासवान को नीतीश कुमार के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए एक समानांतर चेहरे के रूप में पेश करने की कोशिश करेगी। हालांकि भारतीय जनता पार्टी औपचारिक रूप से इसके लिए कभी बयान नहीं दे सकती लेकिन चिराग पासवान की पार्टी उन्हें संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर भी पेश करते दिख रही है। इसके पीछे यह रणनीति बताई जा रही है कि उनके चाचा पशुपति कुमार पारस अगर पासवान वोट में सेंध लगाने की कोशिश करते हैं तो वह नाकाम हो और पासवान बिरादरी चिराग पासवान के समर्थन में आक्रामक रूप से सामने आएं जिससे भारतीय जनता पार्टी को भी चुनावी फायदा हो।
बिहार में नीतीश कुमार के लिए चिराग पासवान एक बार फिर सिरदर्द बनेंगे?
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