भारत ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की ‘निष्पक्ष’ जांच के लिए पाकिस्तान के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है। भारतीय अधिकारियों ने इसे पाकिस्तान की ओर से ध्यान भटकाने और हमले में अपने हाथ होने की बात को छिपाने की एक चाल क़रार दिया है। यह हमला 22 अप्रैल को पहलगाम में हुआ था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे।
पहलगाम में हमले के बाद से ही इसमें भारत ने पाक स्थित आतंकवादियों का हाथ बताया है। टीओआई ने रिपोर्ट दी है कि भारतीय विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “पाकिस्तान का ‘निष्पक्ष’ जांच का प्रस्ताव एक कपटपूर्ण रणनीति है। यह उनकी पुरानी रणनीति है, जिसका उद्देश्य आतंकवाद के लिए अपनी जिम्मेदारी से बचना और भारत के सुरक्षा हितों को कमजोर करना है।” उन्होंने आगे कहा कि हमले के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों का हाथ होने के साफ़ सबूत हैं। ये पाकिस्तान के समर्थन से चलते हैं।
भारत की तरफ़ से ऐसी प्रतिक्रिया तब आई है जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पहलगाम हमले की ‘विश्वसनीय और पारदर्शी’ जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की थी। उन्होंने दावा किया था कि पाकिस्तान आतंकवाद का शिकार रहा है और इस घटना से उसका कोई लेना-देना नहीं है। हालाँकि, भारत ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि 26/11 मुंबई हमले और पठानकोट हमले में जांच को बाधित करने जैसा पाकिस्तान का इतिहास उसकी मंशा पर सवाल उठाता है।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी पाकिस्तान के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा, ‘पहले तो उन्होंने इस घटना को स्वीकार ही नहीं किया और उल्टा भारत पर आरोप लगाए। अब उनके बयानों पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जो नहीं होनी चाहिए थी।’
इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी भारतीय जहाजों के लिए बंदरगाह बंद किए, भारतीय उड़ानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है, शिमला समझौता को रद्द कर दिया और दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी इस मामले में भारत के पक्ष को समर्थन दिया है। अमेरिका ने भारत के साथ आतंकवाद के ख़िलाफ़ सहयोग की प्रतिबद्धता दोहराई है और पाकिस्तान से जाँच में सहयोग करने को कहा है। हालांकि, पाकिस्तान ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए भारत पर क्षेत्रीय अस्थिरता फैलाने का आरोप लगाया है।
जैसे-जैसे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है, वैश्विक समुदाय इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने की अपील कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दोनों देशों से अधिकतम संयम बरतने का आग्रह किया है।
जाँच के पाकिस्तान के प्रस्ताव पर भारत का यह रुख दोनों देशों के बीच पिछले अनुभवों पर आधारित है। भारतीय अधिकारियों ने 26/11 मुंबई हमले और 2016 के पठानकोट हमले का हवाला दिया है, जहां पाकिस्तान ने सहयोग का वादा किया लेकिन उसने जांच को बाधित किया। मुंबई हमले में पाकिस्तान ने शुरू में हमलावर अजमल कसाब की नागरिकता से इनकार किया था और पठानकोट हमले की संयुक्त जांच में पाकिस्तान ने कोई ठोस परिणाम नहीं दिया।
अंग्रेज़ी अख़बार ने एक सूत्र के हवाले से रिपोर्ट दी है, ‘निष्पक्ष जांच की बात तब होती है जब तथ्यों पर विवाद हो, लेकिन यहां हमलावरों और उनके आकाओं की पहचान स्पष्ट है। यह पाकिस्तानी राज्य की आतंकवाद को प्रायोजित करने की नीति का हिस्सा है।’
पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव के जरिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन हासिल करने की कोशिश की। शरीफ ने तुर्की, चीन, और रूस जैसे देशों से संपर्क किया और चीन ने इस ‘निष्पक्ष जांच’ के प्रस्ताव का समर्थन भी कर दिया। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत का पक्ष लेते हुए पाकिस्तान को जांच में सहयोग करने और आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने को कहा। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ बातचीत में भारत के आतंकवाद विरोधी प्रयासों का समर्थन किया, जबकि शरीफ से इस निंदनीय हमले की जांच में सहयोग करने को कहा।
भारत द्वारा पाकिस्तान के प्रस्ताव को खारिज करना दोनों देशों के बीच गहरे अविश्वास को दिखाता है। भारत का मानना है कि पाकिस्तान की “निष्पक्ष जांच” की पेशकश केवल समय हासिल करने और अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने की रणनीति है।
पाकिस्तान की ओर से, यह प्रस्ताव उसकी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत को आक्रामक के रूप में पेश करना और अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करना है। उसकी यह रणनीति भारत पर दबाव डालने और अपनी छवि सुधारने के लिए भी है।