पिछले चार दिनों तक चली सैन्य कार्रवाई के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की घोषणा ने दक्षिण एशिया में तनाव को अस्थायी रूप से कम कर दिया है। इस युद्धविराम के पीछे अमेरिकी विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मार्को रुबियो और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के बीच हुई टेलीफोनिक बातचीत को एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है। रुबियो ने मुनीर से बातचीत में भविष्य के संघर्षों से बचने के लिए रचनात्मक वार्ता शुरू करने में अमेरिकी सहायता की पेशकश की। यह पहली बार था जब अमेरिकी प्रशासन ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख से सीधा संपर्क किया। और इस पर बात भी बन गई।
तो सवाल है कि आख़िर चरम पर पहुँचा तनाव एकाएक से आख़िर कम कैसे हो पाया? इस सवाल के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर तनाव बढ़ने से लेकर अब तक का घटनाक्रम कैसे चला। इस तनाव की शुरुआत जनरल मुनीर के हिंदू-मुस्लिम संबंधों और कश्मीर पर भड़काऊ बयानों से हुई, जिसके बाद पहलगाम में आतंकी हमला हुआ। यह हमला कारगिल युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच सबसे बड़े टकराव का कारण बना।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 नागरिक मारे गए। इस हमले ने भारत को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू करने के लिए मजबूर किया। इसके तहत भारतीय सेना ने सीमा पर आक्रामक जवाबी कार्रवाई की। भारतीय विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि पाकिस्तानी सेना ने बाड़मेर और बारामूला जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में गोलीबारी और ड्रोन हमलों के साथ एलओसी पर युद्धविराम का उल्लंघन किया।
दोनों देशों में बढ़ते तनाव के बीच ही 1 मई को मार्को रुबियो ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात की और दोनों देशों से तनाव कम करने की अपील की। इसे औपचारिक कॉल माना गया।
8 मई को रुबियो ने फिर जयशंकर से बात की और तत्काल तनाव कम करने पर जोर दिया। इसके अगले दिन रुबियो की पाक सेना प्रमुख से बातचीत की ख़बर आई। इन कॉलों की श्रृंखला ने उस मंच को तैयार किया जिसे अमेरिकी विदेश विभाग ने अपनी घोषणा में ‘भारत और पाकिस्तान के बीच अमेरिका द्वारा मध्यस्थता वाला युद्धविराम’ कहा।
रुबियो के अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उपराष्ट्रपति जे डी वेंस ने भी अपनी भूमिका के बारे में बात की। रुबियो ने एक्स पर पोस्ट में लिखा, ‘पिछले 48 घंटों में उपराष्ट्रपति वेंस और मैंने भारतीय और पाकिस्तानी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की। जिनसे बात की उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शहबाज शरीफ, विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर, सेना प्रमुख असीम मुनीर, और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल और असीम मलिक शामिल हैं।’
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, वेंस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की। वेंस ने भी लिखा, ‘राष्ट्रपति की टीम, विशेष रूप से विदेश मंत्री रुबियो, का शानदार काम। और भारत और पाकिस्तान के नेताओं के कठिन परिश्रम और इस युद्धविराम में शामिल होने की इच्छा के लिए आपका आभार।’
इसके बाद अमेरिकी विदेश विभाग ने इसे ‘अमेरिका द्वारा मध्यस्थता वाला युद्धविराम’ करार दिया।
इस युद्धविराम ने भारत की सैन्य श्रेष्ठता को स्थापित किया। भारत ने न केवल पाकिस्तान के हमलों का सफलतापूर्वक जवाब दिया, बल्कि यह भी साफ़ किया कि भविष्य में कोई भी आतंकी हमला ‘एक्ट ऑफ़ वार’ माना जाएगा। भारत ने विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता वाले सिंधु जल संधि को निलंबित कर और अन्य कूटनीतिक व आर्थिक कदम उठाकर अच्छी तरह चेता दिया है।
पाकिस्तान के लिए जनरल मुनीर ने अपने देश के लोगों को यह संदेश दिया कि पाकिस्तान चुप नहीं बैठा है। इसके साथ ही, शुक्रवार रात को पाकिस्तान को आईएमएफ बेलआउट पैकेज मिला, जिसमें भारत ने हिस्सा नहीं लिया। इससे पाकिस्तान को एक कूटनीतिक जीत का दावा करने का मौक़ा मिला।
अमेरिका ने इस युद्धविराम को अपनी मध्यस्थता का परिणाम बताया, लेकिन भारत ने इसे द्विपक्षीय समझौता करार दिया। रुबियो की मुनीर और शहबाज शरीफ से बातचीत और ट्रम्प व वेंस की सक्रियता ने इस प्रक्रिया में तेजी ला दी।
यह युद्धविराम भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को अस्थायी रूप से कम करता है, लेकिन इसका भविष्य अनिश्चित है। भारत की सैन्य और कूटनीतिक ताक़त ने उसे इस टकराव में बढ़त दी, जबकि पाकिस्तान ने अपनी घरेलू राजनीति को मजबूत करने की कोशिश की। अमेरिका की भूमिका महत्वपूर्ण रही, लेकिन भारत का यह दावा कि यह समझौता द्विपक्षीय था, क्षेत्रीय संप्रभुता के नज़रिए से अहम है। आने वाले दिन इस बात का फ़ैसला करेंगे कि यह युद्धविराम कितना टिकाऊ है।