भारत ने वैश्विक आर्थिक मंच पर एक और शानदार छलांग लगाई है! नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ताजा आंकड़ों का हवाला देते हुए घोषणा की है कि भारत अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। लेकिन क्या यह उपलब्धि आम आदमी के जीवन में खुशहाली ला पाई है?
विपक्षी नेताओं ने इस पर कड़े सवाल पूछे हैं। आरजेडी नेता मनोज झा ने कई सवाल खड़े किए और पूछा- क्या यह आर्थिक प्रगति वास्तव में आम आदमी तक पहुंची है? क्या यह विकास समावेशी है और क्या यह भूख, गरीबी और असमानता जैसे जमीनी मुद्दों को हल करता है?
इन सवालों का जवाब पाने से पहले यह जान लें कि भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर क्या दावे किए गए हैं। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आँकड़े तक पहुँच गई है। उन्होंने कहा कि आज भारत जापान से बड़ा है और केवल अमेरिका, चीन और जर्मनी ही उससे बड़े हैं। यह उपलब्धि भारत की बढ़ती वैश्विक आर्थिक ताक़त और नीतिगत सुधारों का परिणाम हो सकती है। सरकार के डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने निवेश को आकर्षित किया और औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, भारत की युवा आबादी और तकनीकी प्रगति ने वैश्विक मंच पर देश की स्थिति को मज़बूत किया है।
हालाँकि, यह आर्थिक प्रगति केवल जीडीपी के आँकड़ों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। जीडीपी एक व्यापक आर्थिक संकेतक है, लेकिन यह सामाजिक-आर्थिक असमानता, गरीबी और जीवन स्तर जैसे अहम पहलुओं को पूरी तरह से नहीं दिखाता। विपक्षी नेताओं ने इसी को लेकर सवाल उठाए हैं। आरजेडी नेता मनोज झा ने पीटीआई से कहा, ‘मैं पूछना चाहता हूं- कि क्या यह ज़मीन पर उतरा है? क्या इसका आम आदमी पर कोई असर हुआ है? संविधान के अनुच्छेद 39 (सी) में, आय समता की बात कही गई है। ऐसा माना जा रहा है कि अगर अर्थव्यवस्था समावेशी नहीं है तो आर्थिक मील के पत्थर का जश्न मनाना अच्छा नहीं है।’ राजद नेता ने कहा,
अयोध्या से सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने एएनआई से कहा, ‘आजादी को इतना समय बीत चुका है, लेकिन आज अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है- कि हमारे कई देशवासी ऐसे हैं, जिनके पास रहने के लिए आवास, खाने के लिए भोजन नहीं है…। जब तक हमारे देश का एक-एक व्यक्ति संपन्न ना हो जाए, तब तक मैं नीति आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करता…। भाजपा के शासनकाल में हमारी अर्थव्यवस्था में जो अपेक्षित सुधार होना चाहिए था, वह नहीं हुआ।’
भूख और समावेशी विकास, असली चुनौती
मनोज झा ने वैश्विक भूख सूचकांक और समावेशी विकास के सूचकांक का ज़िक्र किया, जो भारत के सामने मौजूद गंभीर चुनौतियों की ओर इशारा करता है। 2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 105वें स्थान पर रहा, जो दिखाता है कि देश में कुपोषण और भूख अभी भी गंभीर समस्याएं हैं। इसके अलावा, भारत में आय असमानता और बेरोजगारी की दर भी चिंता का विषय बनी हुई है। ऑक्सफैम की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1% सबसे अमीर लोग देश की 50% से अधिक संपत्ति के मालिक हैं। यह आँकड़ा असमानता की गहरी खाई को दिखाता है।
समावेशी विकास का मतलब है कि आर्थिक प्रगति का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचे, खासकर गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक। लेकिन वास्तविकता यह है कि ग्रामीण भारत में बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वच्छ पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी अभी भी बनी हुई है। शहरी क्षेत्रों में भी, अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है।
आम आदमी की नज़र में अर्थव्यवस्था कैसी?
मनोज झा कहते हैं कि आम नागरिक को अर्थव्यवस्था तब बेहतर समझ आती है, जब तरक्की और खुशहाली हर घर तक पहुंचे। यह भारत की आर्थिक नीतियों के मूल्यांकन के लिए एक बढ़िया पैमाना है। यदि आर्थिक विकास केवल कॉरपोरेट क्षेत्रों या अमीर वर्ग तक सीमित रहता है, तो यह समावेशी नहीं कहा जा सकता।
विपक्षी नेताओं के अनुसार भारत की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उपलब्धि को सही मायने में सार्थक बनाने के लिए सरकार को समावेशी और टिकाऊ विकास पर ध्यान देना होगा।
जानकारों का कहना है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना होगा ताकि विकास का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुँचे।
- छोटे और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देकर और कौशल विकास पर जोर देकर युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं।
- प्रगतिशील कर नीतियों और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के माध्यम से धन के असमान वितरण को कम करना होगा।
- ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना, ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो।
भारत का विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक अहम मील का पत्थर है, जो देश की बढ़ती ताक़त को दिखाता है। लेकिन, जैसा कि मनोज झा ने सही कहा, आर्थिक प्रगति का असली मूल्यांकन तब होता है, जब यह आम आदमी के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए। भूख, गरीबी और असमानता जैसे मुद्दों को हल किए बिना यह उपलब्धि अधूरी रहेगी। सरकार को आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक न्याय और समावेशिता पर भी ध्यान देना होगा, ताकि भारत न केवल आर्थिक शक्ति के रूप में, बल्कि एक समृद्ध और समावेशी राष्ट्र के रूप में भी विश्व मंच पर चमके।