मणिपुर में उग्रवादियों के पास हथियार क्या राज्य के शास्त्रागार में उपलब्ध हथियारों से भी उन्नत हैं कम से कम एक रिपोर्ट में तो ऐसा ही दावा किया गया है। एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उग्रवादियों से बरामद 30% हथियार राज्य के शस्त्रागारों से भी उन्नत हैं। यह सरकारी अधिकारियों के हवाले से ही कहा गया है।
शीर्ष अधिकारियों के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने यह रिपोर्ट दी है। अधिकारियों ने बताया कि एम16, एम18 और एम4ए1 कार्बाइन जैसी असॉल्ट राइफलें मणिपुर जातीय संघर्ष में इस्तेमाल की गई हैं। ये अत्याधुनिक उन्नत हथियार राज्य के शस्त्रागार से लूटे नहीं गए थे। इस वजह से सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।
3 मई 2023 से मणिपुर में मैतेई और कुकी-ज़ो समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष जारी है। मार्च 2023 में हाईकोर्ट के आदेश में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को कहा गया था। इस आदेश पर प्रतिक्रिया हुई और 3 मई को कुकी-जो छात्रों द्वारा कैंडल मार्च निकाला गया। इसके बाद हिंसा शुरू हुई और अगले 3 दिनों में ही कम से कम 52 लोगों की मौत हो चुकी थी।
आने वाले दिनों में दो समुदायों के बीच यह हिंसा बढ़ती रही। आज स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि इस संघर्ष में 237 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, 1500 से अधिक लोग घायल हैं, 32 से अधिक लापता हैं, सुरक्षा बलों के 16 जवानों की मौत हो चुकी है, 14 हज़ार से अधिक घर गिराए जा चुके हैं और 60 हज़ार से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा है।
इस दौरान पुलिस कार्रवाइयों में हथियार भी बरामद किए गए। रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों ने कहा है कि वास्तव में संघर्ष की शुरुआत से अब तक सुरक्षा बलों द्वारा बरामद किए गए हथियारों में से लगभग 30% इसी तरह के हैं। अंग्रेजी अख़बार ने एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी के हवाले से कहा है कि पिछले साल मई में शुरू हुए संघर्ष के दौरान राज्य के शस्त्रागारों से लगभग 6000 हथियार लूटे गए थे। अधिकारी ने कहा कि सुरक्षा बलों और पुलिस द्वारा तलाशी अभियान, विशेष रूप से मैतेई और कुकी-ज़ोमी पक्षों को अलग करने वाले सीमांत क्षेत्रों में लगभग 2600 हथियार बरामद किए गए हैं।
बरामद 2600 में से केवल 1200 हथियार शस्त्रागारों से लूटे गए हैं। अधिकारी के अनुसार, लगभग 800 परिष्कृत हथियार कहीं और से खरीदे गए हैं, जबकि बाक़ी 600 देशी कच्चे हथियार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि दोनों पक्षों के उग्रवादी समूहों की भागीदारी ने आपूर्ति को बढ़ावा दिया है। अधिकारी ने कहा, ‘मैतेई लोगों के पास घाटी-आधारित उग्रवादी समूहों के माध्यम से अच्छी गुणवत्ता वाले हथियार- स्वचालित और लंबी दूरी के हथियार – उपलब्ध हैं। इसमें शस्त्रागारों के भी हथियार शामिल हैं। कुकी लोगों के पास भी एसओओ समूहों के कारण स्वचालित हथियारों की समान क्षमता है।’ रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी ने उन उग्रवादी समूहों का ज़िक्र किया जिन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ऑपरेशन के निलंबन समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। सुरक्षा बलों के सामने एक और चुनौती यह है कि संघर्ष बढ़ने के साथ-साथ हथियार अधिक कुशल – और घातक – होते जा रहे हैं।
हाल ही में 5 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाले रॉकेटों ने मोइरांग शहर में दहशत पैदा कर दिया था। 6 सितंबर को मणिपुर के पहले मुख्यमंत्री दिवंगत एम कोइरेंग सिंह के घर पर एक रॉकेट गिरा और वहां एक पुजारी की मौत हो गई।
अख़बार से एक अधिकारी ने कहा है कि बम बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है, लेकिन 5 किलोमीटर दूर तक दागना आसान नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने लहंगनोम गांव के सशस्त्र लड़ाकों से भी संपर्क साधा। उनके अनुसार, उनके ‘विशेषज्ञों’ ने इन्हें विकसित करने में मदद की थी। उन्होंने दावा किया कि उन्नत हथियारों की रेंज 12-15 किलोमीटर है। एक लड़ाके ने कहा, ‘यह बारूद की मात्रा और बैरल की लंबाई पर निर्भर करता है।’ संघर्ष शुरू होने के बाद कांगपोकपी जिले में गठित एक संगठन आदिवासी एकता समिति के एक पदाधिकारी थांगटिनलेन किपगेन ने दावा किया, ‘शुरुआत में हम पंपियों का उपयोग कर रहे थे, जिसके बारे में हमने अपने पूर्वजों से सीखा था। वे बहुत तेज आवाज करते हैं और लगभग 30 मीटर तक चलते हैं। पिछले साल नवंबर-दिसंबर तक दूसरी श्रेणी विकसित की गई थी। मोइरांग में दागे गए रॉकेट के प्रकार पर काम पिछले साल दिसंबर में शुरू हुआ था। हमारे पास 12-15 किलोमीटर तक फायर करने की क्षमता है, लेकिन अभी तक इसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।’