“मैंने करीब छह माह पहले अपने घर में रिनोवेशन का काम कराया था, इस दौरान करीब एक ट्रॉली मलबा निकला था, जोकि मेरे किसी काम का नहीं था। नगर निगम की कार्रवाई से बचने के लिए मैंने उनके टोल फ्री नंबर 155304 पर संपर्क किया। उन्होंने मुझे एक ट्रॉली मलबा उठाने का 1500 रूपये चार्ज बताया और कहा जितनी बार गाड़ी मलबा उठाने आएगी, उतनी बार 1500 रूपये चार्ज देने होगा। यह बात भोपाल के कोहेफिजा इलाके में रहने वाले जावेद खान ने कही।”
भारत में हर साल करीब 50 करोड़ टन कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन (C&D) वेस्ट निकल रहा है, जिससे देश भर में वायु प्रदूषण के साथ नदियां, नाले और तालाबों का पानी भी प्रदूषित हो रहा है। यही बात भारत सरकार के आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की साल 2024 में रिपोर्ट में भी सामने आई है।
इस मलबे से निपटने के लिए ही भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साल 2016 में द कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट रूल्स-2016 के तहत नियम तय किये। इस नियम में निर्माण और विध्वंस मलबे को अपशिष्ट बताते हुए बिल्डिंग-घर निर्माण कार्य और पुन:निर्माण, मरम्मत और विध्वंस के लिए केंद्र शासित राज्यों और प्रदेश सरकारों से लेकर आम नागरिक तक की जिम्मेदारी तय की गई।
वहीं आवास एवं शहरी कार्य और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा जारी साल 2024 में फरवरी माह की एक प्रेस रिलीज के मुताबिक देश में लगभग 50 करोड़ टन C&D Waste में से 38.5 करोड़ टन (77 प्रतिशत) को ही रिसाइकिल कर रीयूज लायक बनाया जा रहा है। यानी देश में 11.5 करोड़ टन मलबा अनुपचारित रह जाता है।
मध्य प्रदेश की स्थिति
मध्य प्रदेश में हर साल सभी तरह का 1.5 करोड़ टन कचरा निकल रहा है, जिसमें सिर्फ 60 से 70 प्रतिशत कचरे का निपटान किया जा रहा है। राज्य के 53 शहरी स्थानीय निकायों (ULB- Urban Local Body) ने 86 डंप साइटों पर करीब 33,44,472 मीट्रिक टन पुराने कचरे में से मात्र 10,45,812 मीट्रिक टन कचरे का निपटारा किया। इसमें 22,98,660 मीट्रिक टन कचरे को प्रोसेस करना बाकी है। इस कचरे में 30 से 40 प्रतिशत C&D Waste शामिल है।
प्रदेश में कुल 413 अर्बन लोकल बॉडीज़ (ULB) से 6671.5 टन कचरा प्रतिदिन (TPD- टन पर डे) उत्पादिन होता है। इसमें से 6608.79 (TPD) कचरा प्रोसेस किया जा रहा है, जिसमें प्रोसेस किये सीएंडी वेस्ट की मात्रा 3785 (TPD) है। यहां प्रोसेस का मतलब रीसायकल कर उत्पाद बनाने से नहीं बल्कि केवल स्टोरेज, कलेक्शन और ट्रांस्पोर्टेशन से है। अभी 405 अर्बन लोकल बॉडीज़ में कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट के लिए अलग से स्टोरेज, कलेक्शन और ट्रांस्पोर्टेशन की सुविधा है। दिसंबर 2024 तक 7 और अन्य अर्बन लोकल बॉडीज़ में यह सुविधा सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है।
राज्य में सीएंडी वेस्ट को रीसायकल कर उत्पाद बनाने वाले प्लांट्स केवल 8 ही हैं।
जावेद, आगे कहते हैं कि
“मैंने नगर निगम वालों से कुछ पैसे कम करने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया। मेरे घर में काम करने वाले ठेकेदार ने मुझे कहा कि आप मलबे को बेच सकते हैं। मैंने जिस दुकानदार से रेत, गिट्टी, ईंट और सीमेंट आदि का बिल्डिंग मटेरियल लिया, उस दुकानदार ने मेरे घर से मलबा भी उठा लिया और उस मलबे के बदले में मुझे कुछ पैसे भी दिए।”
जुर्माने तक सीमित, जागरूकता पर फोकस नहीं
प्रदेश में बहुत ही कम लोग जानते हैं कि सीएंडडी वेस्ट यानी मलबा कहां फेंका जाए, कहां नहीं और किसे मलबा दिया जाए, जबकि इससे भी कम लोग जानते है कि इस मलबे को रीसाइकल कर दोबारा से निर्माण कार्य में उपयोग किया जा सकता है।
पुराने भोपाल के नारियलखेड़ा इलाके में रहने वाले और एमपी नगर जोन-2 में स्थित गंगा अर्पण डेकोर के इंटीरियर डिजाइनर और आर्किटेक नावेद खान कहते हैं
“कुछ समय पहले ही मुझे शहर के कोलार रोड स्थित थुआखेड़ी गांव में बने सीएंडडी वेस्ट प्लांट के बारे में पता चला। मुझे जब पता चला कि यह प्लांट पिछले चार साल यानी वर्ष 2020 से संचालित हो रहा है तो आश्चर्य हुआ कि पिछले चार साल से शहर में मलबा रिसाइकिल करने वाला प्लांट है और मुझे अभी तीन माह पहले ही पता चला है।”
वे आगे कहते हैं कि “अब मैं कंस्ट्रक्शन साईट से निकलने वाले अनयूज्ड सीएंडडी वेस्ट को प्रोसेसिंग यूनिट में भेजने के लिए अपने क्लांइट (ग्राहकों) से कहता हूं और उसे सीएंडडी वेस्ट से होने वाले नुकसान और फायदे के बारे में भी बताता हूं।”
वहीं जबलपुर में रहने वाले दीपक कुशवाह (जिन्होंने हाल ही में अपने घर को रिनोवेट किया) कहते हैं कि उन्हें आज से पहले तक सीएंडडी वेस्ट को रिसाइकिल कर गमले, रेंत, ईंट, टाइल्स और पेवर ब्लॉक आदि बनाए जा रहे है, इसकी जानकारी नहीं थी। न ही उन्हें यह पता है कि सार्वजनिक स्थानों, नदी, नालों में मलबा फेंकने पर जुर्माने की कार्रवाई भी होती है।
दीपक की तरह, मध्य प्रदेश के अधिकतर निवासियों को 26 मार्च 2016 में अधिसूचित सीएंडडी वेस्ट नियमावली के बारे में जानकारी नहीं है। जबकि इस नियमावली में कचरे के निपटान की जिम्मेदारी सभी संबंधित पक्षों को सौंपी गई है। फिर चाहे वह छोटा कारोबारी हो, नगर निगम हो या सरकार ही क्यों न हो।
यह नियमावली मलबे के पुन:र्चक्रण को अनिवार्य बनाने के साथ ही निर्धारित क्षेत्रों के बाहर मलबे को डालने, फेंकने आदि को गैर-कानूनी भी घोषित करती है। भारतीय मानक ब्यूरो ने भी सीएंडडी वेस्ट को पुन:र्चक्रण संयंत्र द्वारा इस्तेमाल योग्य रेत और बजरी में बदलकर कंक्रीट मिश्रण में प्राकृतिक रेत का अच्छा विकल्प माना है।
द कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट रूल्स-2016 (सीएंडडी रूल्स) के मुताबिक खुले स्थान पर सीएंडडी वेस्ट मटेरियल रखने पर जुर्माने का प्रावधान है। इस नियम के तहत मध्य प्रदेश के 372 नगरीय निकायों में 4 सितंबर 2024 को सीएंडडी वेस्ट के संग्रहण के लिए एक विशेष अभियान चलाया गया।
इस अभियान के दौरान प्रदेश भर के 372 नगरीय निकायों में 1318 स्थानों से अनाधिकृत 2428 टन सीएंडडी वेस्ट को एकत्र कर वाहनों से प्रोसेसिंग यूनिटों तक भेजा गया।
वहीं भोपाल जिला पंचायत, सीईओ और प्रभारी नगर निगम भोपाल, आयुक्त ऋतुराज सिंह कहते हैं कि
“भोपाल जिले में सीएंडडी वेस्ट के निपटान और प्रबंधन से संबंधित जागरूकता के लिए समय-समय पर अभियान चलाया जाता है, जबकि समय-समय पर जुर्माना संबंधित कार्रवाई को भी अंजाम दिया जाता है।”
सिंह, आगे कहते हैं कि “शहर में निकलने वाले सीएंडडी वेस्ट को उठाकर प्रोसेसिंग यूनिट तक पहुंचाने के लिए शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में 12 ट्रांसफर स्टेशन बनाए गए हैं, जिनमें ईदगाह हिल्स, जाटखेड़ी, कोलार रोड जोन ऑफिस के सामने, यादगार-ए-शाहजहानी ट्रांसफर स्टेशन आदि शामिल हैं। इसके अलावा हेल्पलाइन नंबर 155304 भी जारी किया गया है। इस हेल्पलाइन नंबर का उपयोग कर नागरिक सीएंडडी वेस्ट निगम को सौंप सकते हैं और कहीं सीएंडडी वेस्ट सार्वजानिक जगह या नदी, नाले और तालाबों में फेंका जा रहा है तो उसकी भी जानकारी दे सकते हैं।”
सिंह, कहते हैं कि
“निगम सीएंडडी वेस्ट उठाने के लिए बहुत कम चार्ज कर रही है, यदि आप मजदूर बुलाकर भी मलबा उठवाएंगे तो कम से कम दो से तीन मजदूर लगाने पड़ेंगे, जोकि प्रति मजदूर 400 रू. और ट्रॉली का भाड़ा करीब 1200-1500 रू. भी अलग से देना पड़ेगा, इतना ही नहीं आप उस मलबे को किसी सार्वजानिक जगह या नदी, नाले-तालाबों के किनारे भी नहीं फेंक सकते हैं, यदि आप ऐसा करते पाए जाते है तो 2000 रू. जुर्माना देना पड़ेगा।”
इसी कड़ी में भोपाल में इस साल बीएमसी ने सीएंडडी नियमों का उल्लंघन करने वाले 1693 व्यक्तियों से 11,44,325 रू. का जुर्माना वसूला हैं।
विकास कार्यों की कीमत चुकाते स्थानीय लोग
पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष सी. पाडे्य कहते हैं
“अधिकारी खुद नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं और जनता से चाहते हैं कि वो नियमों का पालन भी करें और उन्हें पैसे भी दें।”
वे आगे कहते हैं कि “भोपाल में अभी जगह-जगह मेट्रो निर्माण कार्य चल रहा है, इसकी वजह से शहर में वायु प्रदूषण काफी बढ़ गया है। मेट्रो निर्माण कार्य की किसी भी साइट पर न तो पर्यावरण नियमों का पालन हो रहा है और न ही सीएंडडी वेस्ट के लिए बनाए गए नियमों का पालन किया जा रहा है।”
इन नियमों का पालन नहीं होने की वजह से शहर में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से हवा में पीएम 10 का स्तर बढ़ रहा है, साथ ही यह यातायात को भी बाधित कर रहा है। पिछले तीन-चार सालों में सर्दी के शुरूआती महीनों में शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के पार पहुंच जाता है, इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण धूल होती है।जिसकी वजह शहर में लगातार चल रहे विकास कार्यों में पर्यावरण नियमों का पालन नहीं होना है, इन कार्यों की वजह से शहर में जहां-तहां सीएंडडी वेस्ट का ढेर फैला रहता है, जोकि वायु प्रदूषण फैलाने में अहम भूमिका निभा रहा है।
मध्य प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने लगातार खराब होती शहर की हवा के पीछे के कारणों को जानने के लिए साल 2019 में पुणे की ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई) की मदद से अध्ययन किया। 18 माह चले इस अध्ययन की मार्च 2023 की रिपोर्ट में भी सामने आया था कि शहर की हवा को खराब करने के पीछे 62.2 प्रतिशत तक धूल का हाथ है और शहर में होने वाले कंस्ट्रक्शन से 12.1 प्रतिशत पॉल्यूशन बढ़ रहा है।
इस रिपोर्ट में भोपाल सहित छह शहरों ( इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर और देवास) में भी नेशनल एंबिंएंट एयर क्वालिटी स्टैंडडर्स ( एनएएक्यूएस) के लगातार उल्लघंन की वजह से हवा में पीएम 10 का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया है।
धूल से बिगड़ता लोगों का स्वास्थ्य
पुराने भोपाल के डीआईजी बंगला क्षेत्र में रहने वाले सैयद शाहिद अली कहते हैं
“पिछले डेढ़ साल से मैं परमानेंट सर्दी-जुकाम की बीमार से पीड़ित हूं, काफी इलाज कराने के बाद भी आराम नहीं मिल रहा है। डॉक्टरों ने कहा है कि आपको परमानेंट सर्दी-जुकाम की शिकायत साइनस नामक बीमारी है, जोकि डस्ट (धूल) से एलर्जी की वजह से होती है, डॉक्टरों ने मुझे धूल वाले स्थानों में जाने से मना किया है।’
वे आगे कहते हैं कि “शहर में पिछले पांच साल से मेट्रो का काम चल रहा है, जगह-जगह मलबा और निर्माण सामग्री का ढेर देखने को मिल रहा है, इस की वजह से धूल का उड़ता हुआ गुबारा देखने को मिलता है।”
वे निराश होते हुए आगे कहते हैं
“पेट पालने के लिए घर से बाहर परमानेंट मुंह पर कपड़ा बांधकर निकलना पड़ रहा है। अगर डॉक्टरों की सलाह पर अमल करूं तो घर से बाहर निकला छोड़ना पड़ेगा या फिर दूसरे शहर में शिफ्ट होना पड़ेगा।”
वहीं सुभाष नगर रेलवे फाटक के पास फल का ठेला लगाने वाले सूरज यादव बताते हैं “तीन माह पहले अचानक ठेले पर सांस लेने में तकलीफ और घबराहट महसूस हो रही थी और मैं अचानक बेहोश हो गया तो आसपास के ठेले वाले मुझे अस्पताल ले गए। वहां पर मुझे पता चला कि मुझे सांस की बीमारी हो गई जो कि धूल की वजह से है।”
वे आगे कहते हैं
“जाएं तो कहां जाएं घर चलाने के लिए घर से बाहर निकलना तो पड़ेगा ही, नहीं निकलेंगे तो भूखे मर जाएंगे। शहर में जगह-जगह मेट्रो और रोड बनाने का काम चल रहा है, जिसकी वजह से बहुत धूल उड़ रही है।”
मध्य प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के रीजनल ऑफिसर ब्रजेश शर्मा कहते हैं
“शहर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम चल रहा है, इस प्रोग्राम में नगर निगम की भूमिका अहम है। शहर में हमारे पास तीन स्टेशन है, जिसके द्वारा एयर पॉल्यूशन की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। निगम के सहयोग से जहां-जहां निर्माण कार्य चल रहे वहां जल छिड़काव किया जा रहा है।”
वे आगे कहते हैं कि “मेट्रो के निर्माण कार्य के दौरान नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है, इस संबंधित शिकायतें मिल रही हैं, जांच की जा रही है, जांच रिपोर्ट आने पर कार्रवाई की जाएगी।”
राज्य में सही काम नहीं कर रहे C&D वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट
प्रदेश में सीएंडडी अपशिष्ट प्रबंधन (रीसायकल कर उत्पाद बनाने) के लिए 8 संयंत्र हैं, जो इंदौर, उज्जैन, भोपाल, जबलपुर, रीवा, सिंगरौली, सागर, और ग्वालियर नगर निगम में मौजूद हैं। बाकी की अर्बन लोकल बॉडीज़ में केवल इसके कलेक्शन, ट्रांस्पोर्टेशन और स्टोरेज की ही सुविधा उपलब्ध है। जिन 8 शहरों में सीएंडी मैनेजमेंट प्लांट्स स्थापित हैं वहां भी इनके काम करने के तरीके और प्रबंधन पर सवाल उठते रहे हैं।
पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान कहते हैं कि
“भोपाल में बीएमसी द्वारा एक मात्र सीएंडडी वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पाटर्नरशिप) मोड पर थुआखेड़ी गांव में न्यू डिस्टींक्ट सर्सिवेज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के माध्यम से संचालित है, इस प्लांट में पर्यावरण और सीएंडडी वेस्ट मैनेजमेंट नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। प्लांट में धूल को कंट्रोल करने के लिए हाई प्रेशर स्प्रिंकलर्स और फॉगिंग मशीनों का उपयोग नहीं किया जा रहा है। प्लांट में जहां-तहां धूल फैली हुई है, जोकि आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण का कारण बन रही है।”
वे आगे कहते हैं कि “प्रदेश में भारी निवेश करने के बाद भी प्रोसेसिंग यूनिट आर्थिक रूप से व्यावहारिक साबित नहीं हो पा रहे है, अधिकतर प्लांट संचालक स्थानीय नगरीय निकायों पर ही निर्भर हैं, जबकि अधिकतर प्लांट संचालक रीसाइकल कर तैयार किए प्रोडक्ट जैसे ईंट, पेवर ब्लॉक, टाइल्स आदि को मार्केट में बेचने में असक्षम हैं।”
यही बात न्यू दिल्ली स्थित थिंक टैंक संस्था सेंटर फॉर सांइस एंड एनवायरमेंट की 11 नवंबर 2024 को जारी की गई रबल रीकास्ट: नेविगेटिंग दि रोड टू एफ्फिसिएंट सीएंडडी वेस्ट रीसाइक्लिंग रिपोर्ट में भी सामने आई है। रिपोर्ट कहती है कि द कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट रूल्स-2016 (सीएंडडी रूल्स) के तहत दस लाख से अधिक आबादी वाले 36 शहरों में C&D वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट संचालित है, और आने वाले सालों में 35 से अधिक प्लांट स्थापित करने की योजना है।
रिपोर्ट में देशभर में चल रहे 16 सीएंडडी प्रोसेसिंग युनिट की जांच और मूल्यांकन करते हुए चिंता जताई गई है और कहा है कि जिस तेजी से देश में भवन निर्माण या कंक्रीट से तैयार होने वाली परियोजनाएं चल रही है और बन रही हैं, उससे जल्द ही देश में निकलने वाला सीएंड वेस्ट लगभग दोगुना हो जाएगा। वहीं देश में संचालित सीएंडडी प्रोसेसिंग प्लांट्स क्षमता से काफी कम काम कर रहे हैं और वे आर्थिक तौर पर व्यवहारिक भी साबित नहीं हो रहे हैं।
भोपाल में धुंआखेड़ी, सीएंडडी वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट के मैनेजर अंकित श्रीवास्तव कहते हैं कि
“प्लांट के निर्माण के लिए सरकार से करीब 1 करोड़ रू. का अनुदान मिला था, जबकि जमीन लीज पर निगम ने उपलब्ध कराई है। प्लांट के संचालन के लिए निगम से 15 साल का अनुबंध हुआ है। इस अनुबंध के अनुसार निगम, प्लांट को सीएंडडी वेस्ट उपलब्ध करा रहा है और हम उस वेस्ट को रिसाइकिल कर रीयूज प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। निगम द्वारा हमें जीएसटी के साथ 104 रू. प्रति टन सीएंडडी वेस्ट का भुगतान भी किया जा रहा है।”
एक बेहतर कार्ययोजना की जरूरत
पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष सी. पांडे्य कहते हैं “प्रदेश की अधिकतर जनता को नहीं पता की मलबा कहां फेंकना या कहां देना है, इसके लिए जन जागरूकता अभियानों को चलाया जाना बहुत जरूरी है।”
वे आगे कहते हैं
“सीएंडडी वेस्ट को उठाने के लिए स्थानीय नगरीय निकायों द्वारों अधिक पैसे लिए जा रहे है। इस वजह से भी अधिकतर लोग या तो मलबा बेच देते हैं या फिर उस मलबे को सार्वजनिक जगहों, नदी, नालों और तालाबों के किनारों पर फेंक देते हैं। इस चार्ज से जनता को मुक्ति मिलनी चाहिए और जागरूक जनता को कुछ रिवॉर्ड दिया जाना चाहिए, उल्टा नगरीय निकाय उस मलबे से पैसा काम रहा है।”
पांडे्य की बात का समर्थन करते हुए पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान कहते हैं कि
“मप्र के नगरीय निकायों को दिल्ली मॉडल जैसी क्रास-सब्सिडी आदि स्कीम पर काम करना चाहिए। इससे मलबे का संग्रहण आसान होगा, क्योंकि महंगा चार्ज ही अवैध डंपिंग की वजह बन रहा है, खासकर छोटे मकान मालिकों के लिए यह काफी खर्चीला है। ऐसे में वे जिससे (रेत, गिट्टी, सीमेंट आदि के दुकानदारों) माल लेते है, उन्ही को मलबा बेच देते हैं।”
सीएसई की रबल रीकास्ट रिपोर्ट-2024 कहती है
“मलबे को रिसाइकिल कर बनने वाले उत्पादों के अधिक से अधिक इस्तेमाल के लिए नीतिगत फैसले लेने होंगे और इसे आर्थिक रूप से व्यवहारिक भी बनाना होगा। यदि इन उत्पादों की बिक्री और बाजार में मांग होगी, तो ही रिसाइकिल प्लांट सफल होंगे और इससे प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा, जिससे शहरों में अधिक प्लांटों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।”
राशिद, आगे कहते हैं
“सीएंडडी रूल्स-2016 में सरकारों और स्थानीय नगरीय निकायों को अपनी इमारतों में 10 में से 20 प्रतिशत सीएंडडी वेस्ट के रिसाइकिल मटेरियल का इस्तेमाल करने को कहा गया है, लेकिन राज्य में इस नियम का सही से पालन नहीं किया जा रहा है।”
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