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    Home » महाराष्ट्रः परभणी में भाजपा का दलित और संविधान विरोधी चेहरा बेनकाब
    भारत

    महाराष्ट्रः परभणी में भाजपा का दलित और संविधान विरोधी चेहरा बेनकाब

    By December 21, 2024No Comments7 Mins Read
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    परभणी में 15 दिसंबर को सोमनाथ सूर्यवंशी, जो अंबेडकर की तरह वकील बनने के लिए पढ़ाई कर रहे थे, उनकी कानून की परीक्षा से दो दिन पहले हिरासत में मौत हो गई। अंतरिम पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण “कई चोट” बताया गया है। इस घटना ने दलितों में चिंगारी का काम किया। सोमनाथ की मौत के बाद परभणी शहर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। क्योंकि इससे पहले 10 दिसंबर को अंबेडकर प्रतिमा के बगल में रखी संविधान की प्रति का “अपमान” किया गया था। दलितों ने जब इसका विरोध किया तो पुलिस ने उनके प्रदर्शन के दौरान तमाम अत्याचार किये। सोमनाथ की मौत ने दलितों को फिर से आंदोलन का मौका दिया, इस पर वहां फिर हिंसा हुई। 

    इस घटना से महायुति की फडणवीस सरकार का दोहरा चेहरा भी सामने आ गया। शुक्रवार को महाराष्ट्र विधानसभा में परभणी घटना पर चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि सोमनाथ को सांस लेने में तकलीफ थी और वो अन्य बीमारियों से पीड़ित थे। मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए जाने पर उन्होंने किसी पुलिस उत्पीड़न की शिकायत नहीं की थी। वहीं दूसरी तरफ, सरकार ने घटना की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया, एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर को निलंबित कर दिया और एक को छुट्टी पर भेज दिया है। हालाँकि, सोमनाथ के परिवार के लिए, यह उनकी “पुलिस के हाथों हत्या” के लिए शायद ही इंसाफ है। पुलिस हिरासत में अत्याचार किये जाने पर सोमनाथ की मौत को दबाने की कोशिश में सरकार अपने ही बयानों पर कायम नहीं रह पा रही है।

    अनुसूचित जाति में में आने वाले खानाबदोश वडार परिवार के लिए सोमनाथ की पढ़ाई बहुत बड़ी बात थी। क्योंकि परिवार 35 साल के सोमनाथ की शिक्षा पर पैसा खर्च कर रहा था, ताकि वो अंबेडकर जैसे वकील बन सकें। वडार परिवार में इतनी पढ़ाई तक कोई नहीं पहुंचा था। उनके लिए आजीविका कमाने में हर दिन संघर्ष का दिन होता था। 2018 में सोमनाथ के पिता की मृत्यु ने परिवार पर और दबाव डाला।

    सोमनाथ के भाई प्रेमनाथ का कहना है कि “सोमनाथ सीखने को अपने जीवन को बेहतर बनाने और दूसरों की मदद करने का एक तरीका मानते थे, सोमनाथ कहते थे, ‘जिथे स्थान, दशम काम, अनी दशम शिक्षण (जहाँ भी जाओ, काम और शिक्षा ढूँढ़ो)’।” सोमनाथ खुद भी इसी सिद्धांत पर चलते थे। उन्होंने अलग-अलग पाठ्यक्रमों के लिए दाखिला लिया। लेकिन रोटी-रोजी के लिए एक शहर से दूसरे शहर, जैसे औरंगाबाद, लातूर, परभणी और पुणे में रोटी-रोजी के लिए जाते रहते थे। प्रेमनाथ का कहना है कि सोमनाथ बड़ा वकील बनकर जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी मदद देने की बातें कहते थे।

    परिवार के अनुसार, संविधान के “अपमान” पर परभणी शहर में विरोध प्रदर्शन के बाद, सोमनाथ आंदोलनकारियों को “कानूनी सलाह” की पेशकश कर रहे थे। मुंबई से लगभग 500 किमी दूर इस क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन शुरू में शांतिपूर्ण था, लेकिन बाद में हिंसा में बदल गया। पुलिस इस हिंसा के लिए जिम्मेदार है। अंबेडकर मूर्ति और बगल में रखी संविधान की प्रति का अपमान किये जाने के लिए पुलिस ने परभणी शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर मिर्ज़ापुर गांव के एक निवासी को आरोपी बताया और कहा कि वह “मानसिक रूप से अस्थिर था, उसने किसी भी बुरे इरादे से काम नहीं किया, जिससे गुस्सा और बढ़ गया। दलित प्रदर्शनकारियों ने इसे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश के प्रयास के रूप में लिया। क्योंकि कई लोगों ने दावा किया कि मिर्ज़ापुर के उस व्यक्ति को बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ “अत्याचार” पर दक्षिणपंथी सकल हिंदू समाज द्वारा उस दिन आयोजित एक रैली में देखा गया था। यानी लोग पुलिस की मानसिक रूप से बीमार वाली कहानी को फर्जी मान रहे थे, क्योंकि आरोपी को दक्षिणपंथियों द्वारा आयोजित रैली में देखा गया था।

    10 दिसंबर को दलितों का विरोध प्रदर्शन हिंसक होने के बाद 11 से 12 दिसंबर के बीच पुलिस कार्रवाई में सोमनाथ सहित लगभग 50 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। स्थानीय लोगों का दावा है कि पुलिस रात में दलित बस्तियों में आई और यहां तक ​​कि महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। सोमनाथ को शंकर नगर, जो कि एक बड़ी दलित बस्ती है, से उठाया गया और दो दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। 15 दिसंबर को परिवार को बताया गया कि सोमनाथ का “दिल का दौरा” पड़ने से मौत हो गई है।

    सोमनाथ से परिवार की आखिरी बार बात 9 दिसंबर को हुई थी, जिसके बाद परिवार का उनसे संपर्क नहीं हो सका। परभणी में हिंसा से अनजान, परिवार ने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा। सोमनाथ की मौत की खबर सुनने के बाद सूर्यवंशी परिवार परभणी शहर पहुंचा। उन्हें बताया गया कि शव को पोस्टमॉर्टम के लिए औरंगाबाद भेजा गया है। जब वे औरंगाबाद पहुंचे और वहां प्रदर्शनकारियों की भीड़ जमा देखी तो उनके मन में पहला संदेह पैदा हुआ।

    सोमनाथ की मां विजयाबाई ने बताया कि इस डर से कि सोमनाथ की मौत पर गुस्सा और अधिक हिंसा भड़का सकता है, पुलिस ने परिवार से कहा कि वे शव को वापस परभणी नहीं ले जा सकते। पुलिस ने मुझसे पूछा कि अगर स्थिति बिगड़ती है तो क्या मैं जिम्मेदारी लूंगी। मैंने उनसे पूछा कि क्या वे मेरे बेटे की मौत की ज़िम्मेदारी लेते हैं।”

    शुक्रवार को विधानसभा में सीएम फडणवीस ने कहा कि संविधान के “अपमान” के पीछे का व्यक्ति 2012 से अपनी मानसिक स्थिति का इलाज करा रहा था, और उसने अपने कार्यों के लिए खेद व्यक्त किया था। उन्होंने कहा, ”चार डॉक्टरों की एक समिति ने रिपोर्ट दी कि वह मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकार से पीड़ित हैं और उन्हें मनोचिकित्सक से नियमित इलाज कराने की जरूरत है।” यानी जो बात पुलिस आरोपी के लिए कह रही थी, फडणवीस ने भी वही बात विधानसभा में कही। जबकि स्थानीय लोग कह रहे हैं कि वो शख्स सकाल हिन्दू रैली में नारे लगाता हुआ देखा गया।

    सीएम ने इसे “समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ लड़ाने” की साजिश बताते हुए कहा: “संविधान के अपमान का जातियों और समुदायों से कोई लेना-देना नहीं है। हम राजनेताओं को तनाव कम करने के लिए काम करना चाहिए।” सोमनाथ के परिवार के लिए 5 लाख रुपये की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि 10 दिसंबर का विरोध काफी हद तक शांतिपूर्ण था, लेकिन 200 लोगों ने इसे अशांत कर दिया। हालांकि फडणवीस ने विधानसभा में जो बताया उसे स्थानीय लोग पचा नहीं पा रहे हैं, क्योंकि परभणी में तो पुलिस ने दलित बस्ती को घर कर उनकी पिटाई की थी। तमाम लोगों को हिरासत में लिया गया था।

    परभणी की ज्योति कांकुटे ने कहा कि उनकी 14 और 16 साल की नाबालिग बेटियों, “जिनका हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था”, को उनके टिन-छतरी वाले घर से पुलिस ने उठा लिया। ज्योति का आरोप है, ”जब मैं पुलिस स्टेशन गई तो मुझे पीटा गया और दुर्व्यवहार किया गया।”

    पुणे से आई पूजा जाधव के ससुराल वालों का कहना है कि उन्हें भी हिरासत में लिया गया और जब उन्होंने हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो उन्हें पीटा गया। विमल जाधव ने कहा कि “पुलिस ने मुझे बांस की लाठियों से पीटा। मेरे पति, जो किडनी के मरीज हैं, को बाहर खींच लिया गया।”

    प्रियदर्शनी नगर की 50 वर्षीय नर्स वत्सलाबाई मनवते, जो पुलिस कार्रवाई को रिकॉर्ड करने की कोशिश कर रही थीं, का कहना है कि उन्हें अधिकारियों ने हिरासत में लिया था। निकिता वॉटर का दावा है कि पुलिस अधिकारी उन्हें तब तक पीटते रहे जब तक “मैंने उन्हें नहीं बताया कि मैंने अभी-अभी एक बच्चे को जन्म दिया है।” यानी सरकार जिस तरह से इस घटना पर पर्दा डाल रही है, उतना ही वो बेनकाब हो रही है। परभणी में दलितों पर पुलिस अत्याचार की सारी कहानी बेनकाब हो गई है। सोमनाथ की मौत पर अभी भी पर्दा डालने की कोशिश हो रही है लेकिन यहां के दलितों ने सच बता कर उस कोशिश को नाकाम कर दिया है। 

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