
Pandharpur Vitthal Temple
अनोखी भक्ति और अध्यात्म का गढ़ महाराष्ट्र पुरातनकाल से अपनी समृद्ध परंपराओं, संत संस्कृति और दिव्य मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां कई ऐसे पवित्र धाम हैं जो सिर्फ पूजा का स्थान नहीं, बल्कि लोगों की आस्था, विश्वास और जीवंत भक्ति भाव का केंद्र हैं। इन्हीं में से एक है पंढरपुर का विट्ठल मंदिर, जहां भगवान श्रीकृष्ण ‘विठोबा’ स्वरूप में विराजते हैं और जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपने इष्टदेव की एक झलक पाने के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर में भगवान कृष्ण ‘विठोबा’ कमर पर हाथ टिकाए, पैरों को साथ जोड़कर ईंट पर खड़े हुए। इस अनोखी मुद्रा के पीछे छिपी कथा भारत की सबसे सुंदर और रहस्यमयी परंपराओं में से एक है। मंदिर की परंपराएं, वारकरी संप्रदाय और भगवान की प्रतीक्षा की कहानी इस स्थल को विश्वभर के भक्तों के बीच पवित्र बनाती है।
पंढरपुर- विट्ठल और रुक्मिणी की दिव्य नगरी
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित पंढरपुर को विट्ठल-रुक्मिणी का धाम माना जाता है। यहां भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण विठ्ठल स्वरूप में स्थापित हैं। साल में चार बड़े त्योहारों के दौरान यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं और ‘विठ्ठल विठ्ठल जय हरि विठ्ठल’ का जयघोष पूरी नगरी में गूंज उठता है। इस मंदिर की प्राचीनता और यहां की जीवंत परंपराएं इसे पूरे महाराष्ट्र का आध्यात्मिक केंद्र बनाती हैं।
विठोबा नाम के पीछे छिपा रहस्य
यह मंदिर विठोबा या विट्ठल के नाम से भी प्रसिद्ध है। ‘विठ’ का अर्थ महाराष्ट्र की स्थानीय बोली में ‘ईंट’ होता है। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण भक्त पुंडलिक के कहने पर एक ईंट पर खड़े हुए थे। इसी कारण उनका नाम विट्ठल या विठोबा पड़ा अर्थात् ईंट पर खड़े होकर भक्त की प्रतीक्षा करने वाले भगवान। भगवान की यही अनोखी मुद्रा उन्हें अन्य सभी कृष्ण स्वरूपों से अलग बनाती है।
भक्त पुंडलिक की अनोखी भक्ति की कहानी
पंढरपुर की प्रसिद्धि का केंद्र संत पुंडलिक की जीवन कथा है। कहा जाता है कि वे अपने माता-पिता के प्रति उपेक्षापूर्ण थे और एक समय ऐसा भी था जब उन्होंने उन्हें घर से बाहर कर दिया था। लेकिन समय के साथ उन्हें अपने व्यवहार पर गहरा पछतावा हुआ और वे माता-पिता की सेवा में पूरी तरह समर्पित हो गए। यहीं से उनकी भक्ति ने नया रूप लिया वे भगवान कृष्ण के भी परम उपासक बन गए।
उनकी सच्ची भक्ति और सेवा से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण स्वयं रुक्मिणी के साथ उनके घर पधार गए।
भगवान ने पुंडलिक को पुकारा, ‘हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करने आए हैं।’
उस समय पुंडलिक अपने पिता के पैर दबा रहे थे। बिना पीछे देखे उन्होंने कहा कि ‘प्रभो, मेरे पिताजी विश्राम कर रहे हैं। मैं अभी उनकी सेवा में लगा हूं। आप कृपया इस ईंट पर खड़े होकर प्रातःकाल तक प्रतीक्षा कीजिए।’ भगवान ने विनम्र भाव से आज्ञा स्वीकार भी कर ली। कहते हैं कि भगवान कृष्ण यहीं ईंट पर खड़े होकर स्थिर हो गए। यही स्वरूप आगे चलकर ‘विट्ठल’ के रूप में पूजित हुआ।
पुंडलिकपुर से पंढरपुर बनने की कथा
सुबह जब पुंडलिक ने द्वार की ओर देखा, तो भगवान मूर्ति रूप में स्थापित हो चुके थे। भक्त ने उस दिव्य रूप को अपने घर में पूजा के लिए स्थापित कर दिया। समय के साथ यह स्थान ‘पुंडलिकपुर’ कहलाया और बाद में अपभ्रंश होकर ‘पंढरपुर’ बना। पुंडलिक को वारकरी संप्रदाय का आधार स्तंभ माना जाता है। वारकरी संप्रदाय आज भी भक्ति, सेवा और सादगी का प्रतीक है और विट्ठल की पूजा में समर्पित रहता है।
विट्ठल मंदिर की परंपराएं और भक्ति का रहस्य
यह मंदिर सिर्फ पौराणिक कथा से नहीं, बल्कि अपनी अनोखी परंपराओं से भी पहचाना जाता है।
हर वर्ष आषाढ़ी और कार्तिकी एकादशी पर लाखों वारकरी पैदल यात्रा कर पंढरपुर पहुंचते हैं। संत ज्ञानदेव, तुकाराम, नामदेव जैसे संतों की पालकियां इस यात्रा का हिस्सा होती हैं। यह आस्था का ऐसा जुलूस होता है जहां हर कदम पर भक्ति का उत्साह बहता दिखाई देता है।
ईंट का आध्यात्मिक महत्व
वह ईंट जिसके कारण उनका नाम विट्ठल पड़ा, आज भी मंदिर में पूजा का केंद्र है। भक्त मानते हैं कि यह ईंट सेवा-भाव का उत्कृष्ट प्रतीक है भगवान कृष्ण स्वयं जिसपर खड़े होकर अपने भक्त की राह देखते रहे।
चंद्रभागा नदी का पौराणिक महत्व
मंदिर के तट पर बहती चंद्रभागा नदी अर्धचंद्राकार है। भक्त मानते हैं कि इस नदी में स्नान करने से मन, बुद्धि और कर्म तीनों पवित्र हो जाते हैं। आषाढ़ी एकादशी के अवसर पर यह नदी आस्था का सागर बन जाती है। जब सैकड़ों की संख्या में भक्त यहां स्नान करने पहुंचते हैं।
पंढरपुर की आस्था की खासियत
पंढरपुर के भक्त मानते हैं कि विट्ठल भक्ति सिर्फ पूजा-पाठ का विषय नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। भक्ति को कर्म से जोड़कर देखने की परंपरा ने इस मंदिर को एक जीवंत धरोहर बना दिया है।
कहा जाता है कि विट्ठल उन भक्तों की प्रतीक्षा आज भी करते हैं, जो बिल्कुल भक्त पुंडलिक की तरह प्रेम, सेवा और समर्पण की राह चुनते हैं। आप भी नए साल की शुभ शुरुआत विट्ठल मंदिर के दर्शन के साथ कर सकते हैं।
पंढरपुर कैसे पहुंचे?
पंढरपुर पहुंचना भक्तों के लिए काफी सुविधाजनक है, क्योंकि यह शहर सड़क, रेल और हवाई तीनों मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा है। महाराष्ट्र के धार्मिक मानचित्र पर इसका इतना बड़ा स्थान होने के कारण यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते रहते हैं, इसलिए यातायात के लगभग सभी विकल्प आसानी से उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग से यात्रा का विकल्प-
पंढरपुर सड़क मार्ग से सबसे अधिक जुड़ा हुआ शहर है। पुणे, मुंबई, सोलापुर और कोल्हापुर जैसे बड़े शहरों से यहां नियमित बसें चलती रहती हैं। पुणे से लगभग 210 किलोमीटर, मुंबई से करीब 380 किलोमीटर और सोलापुर से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धाम सड़क यात्रा के लिए बेहद आरामदायक माना जाता है। MSRTC की सरकारी बसों के साथ निजी बसें भी लगातार सेवा देती हैं, जिससे भक्तों को किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती।
रेल मार्ग-
पंढरपुर रेलवे स्टेशन शहर को सीधे पुणे, सोलापुर, नागपुर, मिरज और अन्य प्रमुख शहरों से जोड़ता है। रेल यात्रा यहां पहुंचने का सबसे किफायती और सुविधाजनक विकल्प माना जाता है। त्योहारों के खास अवसरों जैसे आषाढ़ी और कार्तिकी एकादशी पर रेलवे द्वारा विशेष ट्रेनें भी चलाई जाती हैं। स्टेशन से मंदिर तक की दूरी मात्र 3 से 4 किलोमीटर है। जहां ऑटो और टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं।
हवाई मार्ग –
पंढरपुर के सबसे नजदीकी हवाई अड्डे सोलापुर और पुणे में स्थित हैं।
सोलापुर एयरपोर्ट लगभग 75 किलोमीटर दूर है, जबकि पुणे एयरपोर्ट करीब 210 किलोमीटर की दूरी पर है। पुणे एयरपोर्ट पर फ्लाइट विकल्प अधिक होने के कारण यह यात्रियों के बीच अधिक लोकप्रिय है। एयरपोर्ट से टैक्सी या बस के माध्यम से आसानी से पंढरपुर पहुंचा जा सकता है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई पौराणिक कथाएं, धार्मिक मान्यताएं और ऐतिहासिक विवरण परंपरागत स्रोतों एवं लोकमान्यताओं पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य केवल जानकारी साझा करना है।


