केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मुंबई आकर चले गए लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह कह नहीं सके राज्य में महायुति की सरकार फिर बनने जा रही है। भाजपा लोकपोल सर्वे से घबरा गई है। डैमेज कंट्रोल के उपाय में खुद अमित शाह जुटे हुए हैं। लेकिन उससे बात कितना बन पाएगी, यह वक्त पर पता चलेगा। इस उपाय में एक तो यह व्यवस्था की गई है कि महायुति (भाजपा, शिवसेना शिंदे गुट, एनसीपी अजित पवार गुट) को एकजुट होकर लड़ना है और सभी नेताओं के सार्वजनिक बयान पर पाबंदी लगा दी गई है। लेकिन लोकपोल सर्वे कह रहा है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) एनडीए या महायुति को राजनीतिक शिकस्त दे सकता है। उसने क्षेत्रवार सीटों का खुलासा किया है।
लोक पोल सर्वे के मुताबिक महाराष्ट्र में एनडीए को 115 से 128 सीटें मिल सकती हैं, जबकि उसका वोट शेयर 38-41% तक जा सकता है। सर्वेक्षण में के मुताबिक विपक्षी गठबंधन एमवीए 141-154 सीटें जीत सकता है, जबकि उसका वोट शेयर 41-44% तक जा सकता है।
महाराष्ट्र पर हुए इस जमीनी सर्वे के मुताबिक अन्य यानी निर्दलीय या छोटी क्षेत्रीय पार्टियों को 5 से 18 सीटें मिल सकती हैं और वोट शेयर 15-18 फीसदी रह सकता है। लोकपोल ने सर्वे के लिए पूरे महाराष्ट्र को 6 जोन में बांटा है। सर्वे के बारे में आगे बात करने से पहले बता दें कि लोकसभा चुनाव 2024 से ही देश में एनडीए और खासकर भाजपा की सीटों में गिरावट का दौर शुरू हुआ है। राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने जिन 28 सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें से केवल नौ पर जीत हासिल की थी, जबकि शिवसेना ने 15 में से सात सीटों पर जीत हासिल की थी और एनसीपी ने तीन में से एक सीट पर जीत हासिल की थी। प्रतिद्वंद्वी महा विकास अघाड़ी गठबंधन ने 30 सीटें जीतीं। अब बात करते हैं लोकपोल सर्वे की।
विदर्भ की स्थितिः यहां 62 विधानसभा सीटें हैं। एनडीए को 15-20 सीटें और एमवीए को 40-45 और अन्य को एक से पांच सीटें मिल सकती हैं। यहां लोग कांग्रेस के पक्ष में जबरदस्त ढंग से हैं। यहां पर अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) मतदाता कांग्रेस के लिए एकजुट होकर वोट करने का इरादा रखते हैं। विदर्भ के किसान सोयाबीन और कपास की कीमतों को लेकर काफी नाराज हैं। कपास उत्पादकों ने आंदोलन भी किया लेकिन डंडे के जोर पर उन्हें चुप करा दिया गया।
खानदेश क्षेत्र की स्थिति
इस इलाके में राज्य की 47 विधानसभा सीटें हैं। लोकपोल सर्वे का कहना है कि एनडीए 20-25 सीटें और एमवीए भी 20-25 सीटें जीत सकते हैं। जबकि अन्य शून्य से लेकर दो सीटें निकाल सकते हैं। इस क्षेत्र की एसटी बेल्ट एमवीए का समर्थन कर रही है लेकिन बाकी क्षेत्र में मजबूत नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मौजूदगी से एनडीए को मदद मिलेगी। हालांकि, प्याज किसान मौजूदा सरकार से नाखुश हैं। लेकिन आरएसएस कार्यकर्ता यहां खुलकर ध्रुवीकरण अभियान चलाकर चुनाव अभियान को प्रभावित कर सकते हैं।
ठाणे-कोंकण में एनडीए का असरः इस इलाके में विधानसभा की 39 विधानसभा सीटें हैं। सर्वे के मुताबिक यहां एनडीए को 25-30, एमवीए को पांच से 10 और अन्य को एक से तीन सीटें मिल सकती हैं। चूंकि इस क्षेत्र में एमवीए का नेतृत्व मजबूत नहीं है, जिसके कारण कोंकण बेल्ट में एनडीए की पकड़ मजबूत है। हालाँकि, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, पीडब्ल्यूपीआई और सीपीआई (एम) के प्रभाव ने भी एमवीए को प्रासंगिक बना दिया है।
मुंबई भाजपा के साथ नहीं
मुंबई में कुछ गुजराती पॉकेट्स को छोड़कर भाजपा कहीं भी लोकप्रिय नहीं है। यहां विधानसभा की 36 सीटें हैं। सर्वे के मुताबिक एनडीए को 10-15 सीटें, एमवीए को 20-25 सीटें और अन्य को शून्य से एक सीट मिल सकती है। इस शहर में चुनावी कहानी अमीर बनाम गरीब रही है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को एससी मतदाताओं से फायदा हुआ है, जबकि कांग्रेस को मुस्लिम वोट बैंक से फायदा होगा। न्याय यात्रा से यहां कांग्रेस का कद बढ़ा है। हालांकि, वहां रहने वाले गुजराती मतदाताओं के बीच बीजेपी लोकप्रिय है।
पश्चिम महाराष्ट्र में क्या होगा
सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें इसी इलाके में हैं। यहां की 58 विधानसभा सीटों में से एनडीए को 20-25 सीटें, एमवीए को 30-35 सीटें और अन्य को एक से पांच सीटें मिलने का अनुमान पोलसर्वे में लगाया गया है। बारामती (सतारा बेल्ट) में शरद पवार की मौजूदगी सारे समीकरणों को बदल सकती है। कोल्हापुर (सोलापुर बेल्ट) में कांग्रेस को पहले ही फायदा हो चुका है।
मराठवाड़ा की स्थिति
मुंबई, पश्चिम महाराष्ट्र के बाद मराठवाड़ा भी आखिरी जोन है जो चुनावी माहौल बदल देते हा। मराठवाड़ा में 46 विधानसभा सीटें हैं। सर्वे के मुताबिक एनडीए को 15-20, एमवीए को 25-30 और अन्य को शून्य से लेकर दो सीटें मिल सकती हैं। मराठों को वर्तमान में (जातिगत कारक के कारण) एमवीए के पक्ष में माना जाता है, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मतदाता पुराने वोटिंग पैटर्न का पालन कर रहे हैं। हालांकि, यहां भी किसानों से जुड़ा संकट ज्यादा है और इससे मौजूदा सरकार को झटका लग सकता है।
लोकसभा चुनाव से पहले जिस राज्य में विधानसभा या पंचायत लेवल के चुनाव होते थे। पीएम मोदी अक्सर खुद बढ़कर चुनाव की कमान संभाल लेते थे। लेकिन हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया चल रही है लेकिन पीएम मोदी की अभी तक कोई रैली नहीं हुई है। हरियाणा में भाजपा की सरकार है। पोल सर्वे में भाजपा की हालत पतली बताई गई है और कांग्रेस के सत्ता में वापसी की भविष्यवाणी की गई है। चुनाव में 20-22 दिन बचे हैं लेकिन मोदी अभी तक हरियाणा नहीं जा पाए हैं। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस ने 10 में से 5 सीटें जीती थीं।