
प्रयागराज कुंभ मेले में 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के दिन, संगम पर भगदड़ मचने से कई लोगों की जान चली गई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में इस हादसे में मरने वालों की संख्या 37 बताई। लेकिन बीबीसी की गहन पड़ताल में यह खुलासा हुआ कि इस भगदड़ में कम से कम 82 लोगों की मौत हुई। इस अंतर न सिर्फ सरकारी दावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिया है, बल्कि यह भी बताया है कि योगी सरकार किस तरह इस त्रासदी की गंभीरता को छिपाने की कोशिश की। मीडिया भी प्रयागराज कुंभ हादसे की सही और ईमानदार रिपोर्टिंग में नाकाम रहा।
कुंभ मेला, जो हर 12 साल में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है, हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है। प्रयागराज के संगम पर इस बार, 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक चलने वाले इस मेले में अनुमानित 40 करोड़ लोग शामिल होने की उम्मीद थी। 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन, जो इस मेले का सबसे पवित्र दिन माना जाता है, करीब 10 करोड़ लोगों के संगम तट पर पहुंचने का दावा किया गया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 फरवरी को विधानसभा में बताया था कि 29 जनवरी की रात 1:10 से 1:30 बजे के बीच संगम नोज़ के पास भगदड़ मची थी। उनके अनुसार, 66 लोग इसकी चपेट में आए और उनमें से 30 लोगों की मौत हो गई, जबकि अन्य स्थानों पर हुई घटनाओं में 7 और लोग मारे गए। कुल मिलाकर सरकार ने 37 मौतों की बात स्वीकार की और मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपए मुआवज़ा देने की घोषणा की।
मुख्यमंत्री ने विधानसभा में यह भी कहा कि एक मृतक की पहचान नहीं हो सकी और एक लावारिस था, इसलिए इन दो मामलों में मुआवज़ा नहीं दिया गया। मुख्यमंत्री ने किसी भी तरह की अव्यवस्था की बात को स्वीकार नहीं किया। हकीकत यह है कि स्नान करने के बाद संगम की ओर बढ़ रही भीड़ ने नदी किनारे सो रहे श्रद्धालुओं को कुचला था। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पुलिस और आयोजकों की ओर से भीड़ प्रबंधन के लिए अपर्याप्त व्यवस्था थी, जिसके कारण यह हादसा और भी घातक हो गया।
बीबीसी की टीम ने जांच में पाया कि मौनी अमावस्या के दिन कम से कम तीन अलग-अलग स्थानों पर भगदड़ की घटनाएं हुई थीं। जिसमें कुल 82 लोगों की मौत की पुष्टि हुई। यह जानकारी स्थानीय अस्पतालों, प्रत्यक्षदर्शियों और मृतकों के परिजनों से बातचीत के आधार पर सामने आई। इसके लिए बीबीसी के रिपोर्टर अभिनव गोयल और उनकी टीम ने कई राज्यों का दौरा किया।
बीबीसी की पड़ताल में यह भी खुलासा हुआ कि मृतकों की संख्या को कम बताने के लिए प्रशासन ने आधिकारिक आंकड़ों में हेरफेर किया। उदाहरण के लिए, मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के शवगृह में एक पत्रकार ने 39 शवों की गिनती की, जबकि तीन पुलिस सूत्रों ने भी लगभग 40 लोगों की मौत की बात कही। इसके अलावा, स्थानीय हिंदी अखबारों ने भी कम से कम 20 शवों की मौजूदगी की पुष्टि की। फिर भी, उत्तर प्रदेश सरकार ने आधिकारिक तौर पर केवल 37 मौतों की बात स्वीकारी।
बीबीसी ने देश के 11 राज्यों और 50 से अधिक ज़िलों में जाकर 100 से ज़्यादा परिवारों से बात की। इन मुलाक़ातों और दस्तावेज़ों के आधार पर बीबीसी इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि भगदड़ में मारे गए लोगों की वास्तविक संख्या 82 है। ये सभी आंकड़े केवल उन मामलों पर आधारित हैं जिसके पुख़्ता सबूत हैं। संदिग्ध मामलों को बीबीसी ने इस सूची में शामिल नहीं किया। हालांकि शुरू से स्थानीय लोग मरने वालों की संख्या 100 से ज्यादा बता रहे थे। लेकिन यूपी सरकार ने कभी भी ऐसी संख्या को सही नहीं माना।
पश्चिम बंगाल के तरुण बोस ने भी अपनी एक महिला रिश्तेदार को इस हादसे में खो दिया। उन्होंने प्रशासन की ओर से फौरी मदद न मिलने की शिकायत की। इन बयानों से साफ है कि भीड़ प्रबंधन की कमी और आपातकालीन सेवाओं की अनुपस्थिति ने इस त्रासदी को और गंभीर बना दिया। इसी तरह के तमाम लोगों के बयान को बीबीसी ने अपने वीडियो रिपोर्ट में शामिल किया है।
बीबीसी की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि इस हादसे के लिए पुलिस और आयोजकों की लापरवाही जिम्मेदार थी। कई श्रद्धालुओं ने बताया कि संगम तट पर पर्याप्त जगह नहीं थी, और पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पुलिस बैरिकेड्स को पार करने की कोशिश कर रहे श्रद्धालुओं को रोकने में नाकाम रही, जिससे स्थिति और बिगड़ गई।
बीबीसी रिपोर्ट की कुछ खास बातें
*36 परिवारों को सरकार ने 25-25 लाख रुपए का मुआवज़ा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) या चेक के जरिए दिया।
*26 परिवार ऐसे भी मिले, जिन्हें 5-5 लाख रुपए कैश दिए गए, लेकिन आधिकारिक सूची में शामिल नहीं किया गया।
*कैश भुगतान वाले मामलों में बीबीसी को फोटो और वीडियो सबूत मिले, जिनमें पुलिसकर्मी कैश बाँटते नज़र आ रहे हैं।
*परिजनों से ऐसे कागज़ों पर हस्ताक्षर करवाए गए जिनमें यह लिखा था कि मौत “अचानक तबीयत बिगड़ने” से हुई।
*19 और परिवार ऐसे भी हैं जिन्हें कोई मुआवज़ा नहीं मिला।
*इन परिवारों के पास पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाण पत्र और शव की तस्वीरें जैसे सबूत मौजूद हैं।
82 मौतों की 3 श्रेणियां
बीबीसी ने इन 82 मौतों को तीन श्रेणियों में बाँटा है:
*सरकारी सूची में शामिल मृतक, जिनके परिवारों को 25 लाख मिले।
*गोपनीय रूप से कैश मुआवज़ा पाए परिजन, जिन्हें 5 लाख नकद दिए गए।
*बिल्कुल नजरअंदाज परिवार, जिन्हें कोई मुआवज़ा नहीं मिला। जिनकी मौत की सरकारी मान्यता नहीं है।
मेला, दावा और हकीकत
उत्तर प्रदेश सरकार ने दावा किया कि इस बार के कुंभ में 66 करोड़ लोग पहुंचे, और 7000 करोड़ रुपए इस आयोजन पर खर्च हुए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा, “कुंभ के सफल आयोजन की गूंज दुनिया में लंबे समय तक सुनाई देगी।” लेकिन इस गूंज में 82 परिवारों की चीखें कहीं दब गईं। जिनकी मां, बहन, पिता, दादी – सभी इस भगदड़ में जान गंवा बैठे, उन्हें या तो सरकारी आंकड़ों से बाहर कर दिया गया या फिर कैश बाँटकर चुप करा दिया गया।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक कुंभ भगदड़ में मारे गए लोगों की कोई औपचारिक सूची प्रकाशित नहीं की है। ना ही यह जानकारी सार्वजनिक की गई कि किन परिवारों को मुआवज़ा दिया गया और किन्हें नहीं। बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि कैसे एक लोकतांत्रिक शासन तंत्र अपने ही नागरिकों की मौत पर पर्दा डालने की कोशिश करता है।
कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन में भाग लेने आए श्रद्धालुओं की मौत को यदि राजनीतिक छवि खराब न हो, इसके लिए छिपाया गया तो यह एक अपराध से कम नहीं है। सरकार का यह रवैया न केवल पारदर्शिता के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि यह उन परिवारों के लिए भी अपमानजनक है जिन्होंने अपनों को खोया और अब सच के लिए लड़ रहे हैं। इस मामले में न्याय तभी होगा जब राज्य सरकार आधिकारिक सूची सार्वजनिक करे, कैश मुआवज़े की जांच कराए और जिन परिवारों को अब तक कोई मदद नहीं मिली, उन्हें पहचान कर उचित मुआवज़ा दे। बीबीसी की पूरी रिपोर्ट का वीडियो आप नीचे देख सकते हैं।बीबसी की यह रिपोर्ट मंगलवार को आए हुए चार घंटे हो चुके हैं। लेकिन केंद्र या यूपी सरकार ने इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। अगर सरकार कोई प्रतिक्रिया देती है तो इस रिपोर्ट को फिर से अपडेट किया जाएगा या फिर आप उसे अलग से भी पढ़ सकेंगे।