
Sheopur Tantrik Bawdi History and Mystery
Sheopur Tantrik Bawdi History and Mystery
Sheopur Tantrik Bawdi History: मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के एक छोटे से कस्बे में स्थित हीरापुर गढ़ी का एक कोना आज भी रहस्यों से घिरा है। यह कोना है तांत्रिक बावड़ी। स्थानीय जनमान्यता है कि इस बावड़ी का पानी पीने से सगे भाई तक आपस में लड़ने लगते थे। इस अजीबोगरीब घटनाक्रम से यह बावड़ी न केवल एक रहस्य बन गई, बल्कि अपने पीछे कई ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक सवाल छोड़ गई है। आइए जानते हैं इस तांत्रिक बावड़ी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उससे जुड़ी किंवदंतियां, गिरधरपुर नगर का गौरवशाली अतीत और आज की बदहाल स्थिति के बारे में विस्तार से –
तांत्रिक बावड़ी के रहस्य की कहानी
श्योपुर जिले से लगभग 20 किलोमीटर दूर गिरधरपुर कस्बे में हीरापुर गढ़ी के नाम से जानी जाने वाली ऐतिहासिक धरोहर स्थित है। यही वह स्थान है, जहां आज भी तांत्रिक बावड़ी के अवशेष मौजूद हैं। यह बावड़ी कोई आम जल स्रोत नहीं थी, बल्कि इसके पानी को लेकर एक खौफ और विस्मय लोगों के मन में घर कर गया था। यहां के वयोवृद्ध स्थानीय निवासी बताते हैं कि जब वे छोटे थे, तब उनके दादा और माता-पिता ने इस बावड़ी की रहस्यमयी कहानियां सुनाई थीं।

उन्होंने बताया- ‘तांत्रिक बाबड़ी का पानी पीते ही सगे भाई आपस में झगड़ने लगते थे। इतना गुस्सा आता था कि हाथापाई की नौबत आ जाती थी। जब ऐसे घटनाक्रम शाही परिवार तक पहुंचे, तो राजा गिरधर सिंह ने बावड़ी को पाटने का आदेश दे दिया।’
राजा गिरधर सिंह गौड़ और हीरापुर गढ़ी का क्या है इतिहास
राजा गिरधर सिंह गौड़ का शासनकाल आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व का था। उन्होंने इस क्षेत्र में आठ बावड़ियों का निर्माण करवाया था। जो न केवल जल संरक्षण का माध्यम थीं, बल्कि सामाजिक समरसता की प्रतीक भी थीं। परंतु इन्हीं में से एक बावड़ी ऐसी थी, जो अपने रहस्यात्मक प्रभाव के चलते ‘तांत्रिक बावड़ी’ के नाम से जानी जाने लगी।

यह बावड़ी गढ़ी परिसर के भीतर सोरती बाग में स्थित है। जहां कभी आम के घने पेड़ होते थे। राजा अक्सर यहां विश्राम के लिए आते थे। शिव मंदिर के पास बनी यह बावड़ी करीब 100 वर्ग फीट क्षेत्रफल में फैली है और 10 फीट गहरी है। आज भी इस बावड़ी में पानी मौजूद है, लेकिन इसका प्रयोग कोई नहीं करता।
जादू-टोना और तंत्र विद्या का केंद्र रहा गिरधरपुर
समाजसेवी कैलाश पाराशर बताते हैं कि यह क्षेत्र तांत्रिकों और जादूगरों का केंद्र रहा है। यहां एक लोकप्रिय कथा प्रचलित है- ‘ एक बार दो महान जादूगरों में मुकाबला हुआ। एक ने ताड़ के पेड़ को जादू से गिरा दिया, तो दूसरे ने उसे फिर से जोड़ दिया। हालांकि पेड़ में एक सिरा थोड़ा टेढ़ा रह गया, जो पेड़ यह वर्षों तक खड़ा रहा।’ इस किस्से से यह संकेत मिलता है कि यहां तांत्रिक विद्या और अद्भुत शक्तियों का प्रभाव माना जाता था। लोगों का विश्वास है कि तांत्रिक बावड़ी का रहस्य भी इसी विद्या से जुड़ा है। एक नाराज़ तांत्रिक ने इस बावड़ी में कोई ऐसा प्रयोग किया, जिससे पानी पीते ही इंसानों के स्वभाव में हिंसक परिवर्तन आने लगा।
क्यों कहलाता है यह गांव दो नामों से – हीरापुर और गिरधरपुर?

गांव के बुजुर्गों के अनुसार, इस नगर का पुराना नाम हीरापुर था, लेकिन जब राजा गिरधर सिंह ने इसे बसाया और वहां गढ़ी का निर्माण कराया, तब इस नगर को गिरधरपुर भी कहा जाने लगा। यहां आज भी नैरोगेज रेलवे स्टेशन है, जिसे ‘गिरधरपुर’ नाम से जाना जाता ह। जबकि ग्रामीण इसे हीरापुर कहते हैं। यह दोहरी पहचान इस क्षेत्र के इतिहास और वर्तमान को अलग-अलग दिशाओं में दर्शाती है।
गढ़ी का पतन- गौरवशाली अतीत से जर्जर वर्तमान तक
वर्तमान में हीरापुर गढ़ी का दृश्य काफी पीड़ादायक है। समय के थपेड़ों और सरकारी उपेक्षा ने इस ऐतिहासिक धरोहर को जर्जर अवस्था में पहुंचा दिया है। मुख्य द्वार और उसके सामने का विशाल मैदान अतिक्रमण की चपेट में है। गढ़ी के चारों ओर झाड़ियां और कचरा जमा हो गया है।
गढ़ी परिसर में एक शिव मंदिर है, जिसमें अब देवी प्रतिमा स्थापित कर दी गई है। वहीं, गढ़ी के भीतर एक छोटा मंदिर है जिसमें शिवलिंग और भैरव की प्रतिमा अब भी विद्यमान है। इस ऐतिहासिक महल की सुंदर छत्रियां और बावड़ियां धीरे-धीरे खंडहर में बदल रही हैं। इस गांव के बुजुर्ग पाराशर के अनुसार- ‘ गर्व की बात है कि हमारे पुरखों ने एक सुंदर नगर बसाया, लेकिन दुख इस बात का है कि आज की पीढ़ी इस पहचान को मिटाने पर तुली है।’
क्या कहती है तांत्रिक बावड़ी की लोककथा?

गांववालों के अनुसार, यह बावड़ी सामान्य नहीं थी। इसके जल में कोई ऐसी ‘ऊर्जा’ थी, जो मनुष्य के स्वभाव को ही बदल देती थी। अक्सर लोग इसका पानी पीते ही उग्र हो जाते और आपसी लड़ाई-झगड़े बढ़ जाते। तांत्रिक बाबड़ी के बारे में यहां सबको पता है। इसका पानी पी लेने से पड़ोसी, परिवारों और सगे भाई तक आपस में लड़ने लगते थे। राजा गिरधर सिंह ने उसी समय इस बावड़ी को पाट दिया। उसके बाद से लड़ाई-झगड़े भी खत्म हो गए।’ इस प्रकार यह बावड़ी न केवल पानी का स्रोत रही, बल्कि सामाजिक असंतुलन का कारण बन गई और अंततः इसका पटना ही इसका समाधान माना गया।
क्या विज्ञान से हो सकता है इस रहस्य का खुलासा
हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो संभव है कि उस जल स्रोत में कोई खनिज तत्व या रासायनिक घटक रहा हो, जो मानसिक स्थिति को प्रभावित करता हो। संभवतः उसमें मौजूद कोई विषैला पदार्थ, जैसे सल्फर या आर्सेनिक, लोगों में चिड़चिड़ापन या आक्रोश पैदा करता हो। लेकिन यह भी अनुमान मात्र है, क्योंकि आज तक किसी वैज्ञानिक अध्ययन ने इस बावड़ी के पानी का विश्लेषण नहीं किया है। यह तांत्रिक बावड़ी और हीरापुर गढ़ी दोनों ही एक ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो न केवल स्थापत्य कला और जल संरक्षण के प्रतीक हैं। बल्कि सामाजिक और मानसिक अध्ययन के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। अगर सरकार या पुरातत्व विभाग इसके संरक्षण और अध्ययन की पहल करे। तो यह क्षेत्र पर्यटन और अनुसंधान दोनों का केंद्र बन सकता है। हीरापुर की तांत्रिक बावड़ी आज भी एक अदृश्य परंतु प्रखर ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है। जहां जनविश्वास और इतिहास इसे रहस्य से जोड़ते हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि इस स्थल का विधिवत दस्तावेजीकरण, वैज्ञानिक परीक्षण और पुरातात्विक संरक्षण किया जाए।
अगर तांत्रिक बावड़ी का रहस्य सुलझाया जा सके तो यह केवल श्योपुर जिले के लिए नहीं, बल्कि समूचे भारत के लिए एक गौरवशाली अध्याय साबित हो सकता है।