संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने केंद्र सरकार के भीतर विभिन्न वरिष्ठ पदों पर लैटरल एंट्री के जरिए “प्रतिभाशाली नागरिकों” की तलाश के लिए एक विज्ञापन पिछले शनिवार को जारी किया है। इनके जरिए 24 मंत्रालयों में 45 पदों को भरा जाना है। जिनमें वरिष्ठ स्तर के अधिकारी भर्ती होंगे। जिसमें संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव शामिल हैं।
नौकरशाही में लैटरल एंट्री से मतलब सरकारी विभागों में मध्य और वरिष्ठ स्तर के पदों को भरने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) जैसे पारंपरिक सरकारी सेवा संवर्गों के बाहर से व्यक्तियों की भर्ती से है। यानी वैसे तो इन पर आईएएस नियुक्त होने चाहिए लेकिन सरकार अब आईएएस की नियुक्ति इन पदों पर नहीं करना चाहती है। लैटरल एंट्री की भर्ती में किसी भी तरह का आरक्षण लागू नहीं है। देश में इस समय मोदी सरकार द्वारा भर्ती किए गए 56 अधिकारी लैटरल एंट्री के जरिए आए हैं और वे सरकार के सभी महत्वपूर्ण निर्णय को तैयार करते हैं, लागू करते हैं।
लैटरल एंट्री प्रक्रिया प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान शुरू की गई थी। मोदी के नेतृत्व में 20214 में भाजपा की सरकार बनी। उसके बाद ही उसने इस पर काम शुरू कर दिया। 2018 में लैटरल एंट्री के जरिए भरे जाने वाली वैकेंसी के पहले खेप की घोषणा की गई थी। यह पारंपरिक यूपीएससी के जरिए आईएएस की भर्ती से हटकर की गई पहल थी। नौकरशाही तक इस फैसले से चौंक गई। सिविल सेवा को बतौर करियर अपनाने वालों के लिए भी यह झटका था। उनके लिए अवसर कम हो गए। आरक्षण वालों का कोटे का हक भी मारा गया।
यूपीएससी के वर्तमान विज्ञापन में तीन स्तरों पर पद शामिल हैं: संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव। इन पदों पर अक्सर विभागों के भीतर विशिष्ट विंग के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं और प्रमुख पॉलिसी मेकिंग वाले अधिकारी होते हैं। अब सिविल सेवा पास करना इन पदों के लिए जरूरी नहीं रह गया है। अगर आपका जुगाड़ है या भाजपा-आरएसएस से जुड़े हैं तो आपकी एंट्री सीधे ज्वाइंट सेक्रेटरी जैसे महत्वपूर्ण पद पर हो सकती है।
क्या कांग्रेस जिम्मेदार है
लैटरल एंट्री की अवधारणा नई नहीं है। यह विचार पहली बार 2000 के दशक के मध्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान प्रस्तावित किया गया था। 2005 में वीरप्पा मोइली को दूसरे केंद्रीय सुधार आयोग (एआरसी) की स्थापना का काम सौंपा गया था। उन्होंने इसकी सिफारिश की थी। लेकिन इसे यूपीए सरकार ने कभी लागू ही नहीं होने दिया। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह इस प्रणाली के सख्त खिलाफ थे। उनका कहना था कि यूपीएसी के जरिए भर्ती का एक स्टैंडर्ड कायम रहता है और सभी भर्तियां यूपीएससी ही करे। मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लेकिन मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने तो उन्हें इसे लागू करने का भूत सवार हुआ। उन्होंने 2018 में इसके जरिए अधिकारियों की भर्तियां भी कर दीं।