केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के प्रमुख को पत्र लिखकर सिविल सेवा निकाय से लैटरल एंट्री के लिए अपना विज्ञापन रद्द करने को कहा। नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस मुद्दे पर दो दिनों से लगातार ट्वीट करके इसका विरोध कर रहे थे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसके खिलाफ आंदोलन की धमकी दी थी। बसपा प्रमुख मायावती ने भी दबी जबान से इसका विरोध किया था।
जितेंद्र सिंह के पत्र में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों का हवाला देते हुए, संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप लैटरल एंट्री की जरूरत का आह्वान किया गया, विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधान के संबंध में। यानी अब सरकार अगर लैटरल एंट्री लाती है तो उसमें आरक्षण का पालन किया जाएगा। कुल मिलाकर सरकार इस मुद्दे पर झुक गई है।
यूपीएससी ने पिछले शनिवार को केंद्र सरकार के भीतर विभिन्न वरिष्ठ पदों पर लैटरल एंट्री के जरिए “प्रतिभाशाली भारतीय नागरिकों” की तलाश के लिए एक विज्ञापन जारी किया था। इन पदों में 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव शामिल हैं, जिनमें कुल 45 पद रिक्त हैं। विज्ञापन इन्हीं 45 पदों के लिए था।
पीएमओ में मंत्री जितेंद्र सिंह के पत्र में कहा गया है- “हालांकि 2014 से पहले अधिकांश प्रमुख पद लैटरल एंट्री के जरिए तदर्थ तरीके से भरे गए थे, जिनमें कथित पक्षपात के मामले भी शामिल थे। हमारी सरकार का प्रयास इस प्रक्रिया को संस्थागत रूप से संचालित, पारदर्शी और खुला बनाना है। प्रधानमंत्री का दृढ़ विश्वास है कि लैटरल एंट्री की प्रक्रिया को हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के साथ जोड़ा जाना चाहिए, खासकर आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में।”
मंत्री जितेंद्र सिंह के पत्र में कहा गया है, “पीएम मोदी के लिए, सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है। यह महत्वपूर्ण है कि सामाजिक न्याय के प्रति संवैधानिक आदेश को बरकरार रखा जाए ताकि हाशिए पर रहने वाले समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।”
सिंह ने कई हाई-प्रोफाइल मामलों का हवाला दिया जहां उचित आरक्षण प्रोटोकॉल का पालन किए बिना प्रमुख पदों पर नियुक्तियां की गईं थीं, जिसमें भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) का नेतृत्व और यहां तक कि पिछले प्रशासन के दौरान विभिन्न मंत्रालयों में सचिव स्तर के पद भी शामिल थे।
जितेंद्र सिंह ने पत्र में लिखा- “चूंकि इन पदों को विशिष्ट माना गया है और एकल-कैडर पदों के रूप में नामित किया गया है, इसलिए इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने पर प्रधान मंत्री के फोकस के संदर्भ में इस पहलू की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है। इसलिए पत्र में लिखा है, ”मैं यूपीएससी से लेटरल एंट्री भर्ती के विज्ञापन को रद्द करने का आग्रह करता हूं। यह कदम सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति होगी।”
नौकरशाही में लैटरल एंट्री से अर्थ सरकारी विभागों में मध्य और वरिष्ठ स्तर के पदों को भरने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) जैसे पारंपरिक सरकारी सेवा के बदले बाहर से लोगों की भर्ती। जिसमें न तो आरक्षण का पालन होता है और न ही किसी आईएएस को लिया जाता है। यानी अगर कोई सरकार किसी रामलाल-श्यामलाल को विशेषज्ञ मानती है या वो व्यक्ति विशेषज्ञ होने का दावा करे तो उसे लैटरल एंट्री के जरिए सरकार ज्वाइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रख सकती है।
मोदी सरकार के मंत्रियों का यह दावा है कि पहली बार 2000 के दशक के मध्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान इसे प्रस्तावित किया गया था। 2005 में, यूपीए ने वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) की स्थापना की। आयोग को भारतीय प्रशासनिक प्रणाली में सुधारों की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था। बताया जाता है कि उस आयोग ने इसकी सिफारिश की थी। लेकिन कांग्रेस ने इसे कभी लागू नहीं किया।
लैटरल एंट्री से औपचारिक रूप से भर्ती प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान शुरू की गई थी, जिसमें 2018 में रिक्तियों के पहले सेट की घोषणा की गई थी। मोदी सरकार ने 2018 के बाद 57 अफसरों को लैटरल एंट्री के जरिए सरकार में उच्च पदों पर बैठा दिया। हालांकि इससे पहले इन पदों पर आईएएस ही प्रमोशन और अनुभव से पहुंचते थे।