केंद्र में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पेश करते हुए गुरुवार को लोकसभा में कहा कि पुराने वक्फ नियमों का फायदा वक्फ माफिया उठा रहे हैं। अब जबकि सरकार ने झुकते हुए इस विवादित बिल को वापस ले लिया है, भाजपा की मशीनरी अभी भी इसके खिलाफ नेरिटव बनाने में जुटी हुई है। भाजपा आईटी सेल के इंचार्ज अमित मालवीय ने शुक्रवार से ही इसकी शुरुआत कर दी है।
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा है- निजी संपत्ति से लेकर सरकारी जमीन तक, मंदिर की जमीन से लेकर गुरुद्वारे तक, वक्फ बोर्ड हाल के दिनों में कांग्रेस द्वारा वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों के कारण भू-माफिया की तरह व्यवहार कर रहा है और संपत्ति हड़प रहा है। मूल रूप से, वक्फ की पूरे भारत में लगभग 52,000 संपत्तियाँ थीं। 2009 तक, कुल 4 लाख एकड़ तक की 3,00,000 पंजीकृत वक्फ संपत्तियाँ थीं। आज की तारीख में, 8 लाख एकड़ भूमि में फैली 8,72,292 से अधिक पंजीकृत वक्फ संपत्तियां हैं। महज 13 साल में दोगुनी हो गई वक्फ जमीन!
इस ज़मीन हड़पने के सबसे बड़े शिकार गरीब मुसलमान हुए हैं।
अमित मालवीय के आंकड़ों को एक तरफ रख दें, उन्होंने दो बड़े आरोप अपने बयान में लगाए हैं। वो कह रहे हैं कि वक्फ बोर्ड मंदिर से लेकर गुरुद्वारे तक की जमीन हड़प रहे हैं। इस समय 11 राज्यों में भाजपा की सरकार है, हालांकि कभी 19 राज्यों में भाजपा सरकार थी। अमित मालवीय को अपनी 11 भाजपा सरकारों से आंकड़े मंगाकर देश को बताना चाहिए कि पिछले 10 साल से ज्यादा समय से केंद्र में मोदी सरकार है, इसके बावजूद वक्फ बोर्डों ने कितने मंदिर और गुरुद्वारों की जमीन हड़पी है। अमित मालवीय के इस ज्ञान से यह पता चलता है कि इस भाजपा नेता को न तो वक्फ बोर्ड की कार्यशैली पता है और न ही यह पता है कि दरअसल वक्फ की जमीन क्या होती है।
वक्फ एक्ट 1954 में आया। 1995 में इसका संशोधित स्वरूप आया। इसके अनुसार इसका चेयरमैन, एक प्रभारी केंद्रीय मंत्री होगा
इसके अन्य 3 सदस्य, राष्ट्रीय स्तर के मुस्लिम संगठनों से सरकार तय करेगी। इसके अन्य 4 सदस्य राष्ट्रीय रूप से सम्मानित मैनेजमेंट, एकाउंट, लीगल एक्सपर्ट्स होंगे, सरकार तय करेगी। इसके अन्य तीन सदस्य सांसद, 2 लोकसभा और एक राज्यसभा से होंगे। सरकार तय करेगी। राज्यो के किन्ही तीन वक्फ बोर्ड के चेयरमैन यहां रोटेशन में लिए जाएंगे। दो अन्य सदस्य हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज होंगे। इसके अलावे मुस्लिम स्कॉलर्स, लॉ एक्सपर्ट्स वगैरह होंगे जिन्हें भारत सरकार नियुक्त करेगी। यह केंद्रीय वक्फ बोर्ड का स्वरूप है। राज्यों के वक्फ बोर्ड का ढांचा भी लगभग इसी तरह का होगा, जिसे राज्य सरकारे तय करेंगी। अब जरा ठहरिए।
क्या आपने भाजपा वालों से ये सवाल पूछा- देश का केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री कौन है, जिसके तहत केंद्रीय वक्फ बोर्ड काम कर रहा है। गुरुवार को ही किरण रिजिजू नामक शख्स ने वक्फ संशोधन बिल पेश किया है। रिजिजू से पहले स्मृति ईरानी अल्पसंख्यक मंत्री थीं और तब बोर्ड उनके अधीन काम कर रहा था। अमेठी की स्मृति चली गई। उनसे पहले जो शख्स इस मंत्रालय का तख्तनशीन था, उसका नाम मुख्तार अब्बास अंसारी था। जिसे नेपथ्य में भेज दिया गया है। केंद्रीय वक्फ बोर्ड में अभी कितने जज हैं- एक भी नहीं। अगला सवाल है कि पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार ने किन तीन राज्यों के वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को केंद्र में लिया गया है। हरियाणा में जहां दो महीने बाद चुनाव है, वहां पिछले करीब पांच वर्षों से वक्फ बोर्ड का कोई चेयरमैन नहीं है।
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क्या केंद्रीय वक्फ बोर्ड में इस समय बैठे लोग माफिया हैं। क्या वक्फ बोर्ड के प्रभारी मंत्री माफिया हैं।
भाजपाइयों को यह तक नहीं मालूम है कि वक्फ संपत्ति दरअसल क्या होती है। और बकौल अमित मालवीय वक्फ संपत्तियां देश में 13 वर्षों में वक्फ संपत्तियां दो गुणा बढ़ गई हैं। तो अमित मालवीय ने या अन्य भाजपा नेताओं ने अपने-अपने राज्यों में वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन रुकवाया क्यों नहीं। क्योंकि कोई संपत्ति वक्फ कैसे बनती है, उन्हें कुछ पता ही नहीं है। वक्फ संपत्ति कोई भी मुस्लिम शख्स या मुस्लिम परिवार अल्लाह के लिए घोषित करता है। उसकी आने वाली पीढ़ियां उस संपत्ति का इस्तेमाल तो कर सकती हैं, लेकिन बेच नहीं सकतीं। अब जिसके पास जमीन, घर, दुकान, फैक्ट्री, गोदाम आदि होगा, वही तो वक्फ कर सकता है। वक्फ संपत्तियों का बढ़ना यह बताता है कि मुस्लिम परिवार अल्लाह की राह में अपनी प्रॉपर्टी ज्यादा दान कर रहे हैं। काफी लोगों ने मसजिदों, इमाबाड़ों, कब्रिस्तान तक के लिए जमीनें दान की हैं। क्योंकि दिल्ली एनसीआर के नोएडा, गाजियाबाद, गुड़गांव, फरीदाबाद में मंदिर के लिए सरकार सस्ते दामों पर जमीन दे रही है लेकिन मसजिद या चर्च के लिए जमीन नहीं दे रही है। कई मुस्लिम और ईसाई संगठन मंदिरों को दी गई जमीन की कीमतों के मुकाबले ज्यादा रेट में खरीदने को तैयार हैं, वो जमीन भी उपलब्ध नहीं है।
हरियाणा में वक्फ बोर्ड ने फरीदाबाद और गुड़गांव में मसजिद और कल्चरल गतिविधियों के लिए जमीन रजिस्टर्ड मुस्लिम सोसाइटियों को दी, लेकिन वहां के नगर निगम न तो नक्शा पास कर रहे हैं और न ही प्रशासन उस जमीन का कब्जा दिलवा पा रहा है। गुड़गांव में लोग खाली जगह पर हफ्ते में एक बार नमाज पढ़ते हैं तो उस पर हिन्दू संगठन आपत्ति कर देते हैं। ऐसे में गुड़गांव के गुरुद्वारे आगे आकर अपनी जगह में नमाज पढ़ने की अनुमति देते हैं। हरियाणा में दस वर्षों से भाजपा सरकार है। अधिकांश वक्फ संपत्तियों पर किस धर्म के लोगों का कब्जा है, सूची उसके पास है। वो क्यों नहीं खाली कराती और किरण रिजिजू से लेकर अमित शाह को बताती है।
यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार विधानसभा में पिछले दिनों नजूल संपत्तियों को लेकर विधेयक लाई थी। लेकिन भाजपा के विधायकों, मंत्रियों, खुद प्रदेश अध्यक्ष ने योगी सरकार के उस विधेयक का विरोध कर दिया। जानते हैं क्यों। क्योंकि नजूल संपत्तियों पर लखनऊ समेत सभी शहरों में विशाल शॉपिंग कॉम्पलेक्स बने हुए हैं, मॉल बने हुए हैं, दुकानें बनी हुई हैं। वो किन लोगों की हैं। उनका पैसा किनके पास आ रहा है। उम्मीद है कि आपको जवाब मिल गया होगा। लेकिन योगी सरकार ने ऐसा क्यों किया। इसलिए कि अधिकांश नजूल संपत्तियों के मालिक भी पुराने समय या देश की आजादी के बाद ज्यादातर मुस्लिम परिवार ही थे। उन लोगों ने सस्ते दामों पर उन संपत्तियों को हिन्दुओं को किराये पर दे दिया। अब हिन्दू अधिकांश नजूल संपत्तियों के मालिक हैं या कब्जेदार हैं। नगर निगमों में ऐसी संपत्तियों को अपने रसूख से अपने नाम चढ़वा लिया गया है।
कुल मिलाकर केंद्रीय वक्फ बोर्ड हो या राज्यों के वक्फ बोर्ड वो सरकार के ही अधीन काम करते हैं। लेकिन जिस तरह वैष्णव देवी मंदिर बोर्ड, अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट, सोमनाथ प्रबंध समिति के अलावा असंख्य हिन्दू मंदिरों के कामकाज हिन्दुओं के हवाले हैं, ताकि वहां ठीक से काम होता रहे। वही स्थिति वक्फ बोर्ड की भी है। बोर्ड में मुस्लिमों को इसलिए रखा गया वे अपना काम सुचारु रूप से चलाएं। सरकार की ऐसी कौन सी संस्था नहीं है जहां भ्रष्टाचार नहीं है, जहां जमीनों की लूटमार नहीं है। जिला कलेक्टरों के घर से करोड़ों का कैश क्यों बरामद होता है। भाजपा शासित राज्यों में इन चीजों को दुरुस्त कर अगर वक्फ कानून में संशोधन किया जाता तो आज सरकार की जयजयकार हो रही होती। लेकिन झूठे नैरेटिव गढ़कर समाज में दो धर्म के लोगों को लड़ाना हो तो फिर वक्फ कानून में तुगलकी संशोधन की जरूरत पड़ती है।