डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई वाला अमेरिका भारत से व्यापार सौदे में बड़ी-बड़ी रियायतें मांग रहा है, लेकिन क्या भारत इनके आगे झुकने को तैयार होगा या होना चाहिए? हाल ही में 20 विशेषज्ञों और पूर्व वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखकर सनसनीखेज सलाह दी है। इन्होंने कहा है कि यदि अमेरिका भारत के संवेदनशील हितों पर ज़्यादा दबाव डाले, तो भारत को सख्त रुख अपनाना चाहिए, भले ही इसका मतलब सौदा न हो पाना हो!
इस चिट्ठी में साफ़ लिखा है, ‘यदि अमेरिका भारत के सबसे अहम हितों पर ज़्यादा रियायतें मांगे तो भारत को भी उतना ही सख्त रवैया अपनाना चाहिए। यदि सौदा नहीं होता तो अल्पकालिक नुक़सान लंबे समय तक चलने वाले असमान समझौते की तुलना में कम हानिकारक हो सकता है।’ आखिर भारत इस व्यापारिक जंग में क्या रणनीति अपनाएगा? क्या वह ट्रंप की धमकियों के सामने डटकर खड़ा होगा, या सौदे की चाह में रियायतें दे देगा? सवाल है कि भारत के लिए यह एक मौक़ा है या चुनौती?
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल से ही टैरिफ़ को हथियार बनाया है। इस बार भी उन्होंने भारत समेत कई देशों पर 10% से 26% तक टैरिफ़ लगाने की बात कही। उनका दावा है कि भारत जैसे देश अमेरिका के साथ अनुचित व्यापार कर रहे हैं, क्योंकि भारत अमेरिकी सामानों पर ऊँचे टैरिफ लगाता है। भारत में अमेरिकी चिकन और सेब जैसे कृषि उत्पादों पर भारी टैरिफ़ हैं, जो भारतीय किसानों को बेहतर क़ीमत दिलाते हैं।
लेकिन ट्रंप की टैरिफ वाली धमकियां हमेशा सख्त नहीं रहतीं। कई बार वह पीछे हट जाते हैं। हाल ही में 90 दिनों की टैरिफ़ छूट की घोषणा और भारत के साथ अंतरिम व्यापार समझौते की बात ने दिखाया है कि ट्रंप दबाव डालकर सौदेबाजी की मेज पर लाने की रणनीति अपनाते हैं। माना जा रहा है कि ट्रंप की धमकियाँ भारत पर दबाव डालने का खेल हो सकती हैं।
भारत ने साफ़ कर दिया कि वह डेयरी, कृषि, डिजिटल और मेडिकल सर्विसेज जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अमेरिका की मांगें आसानी से नहीं मानेगा।
जानकार कहते हैं कि भारत की यह रणनीति इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि ट्रंप की नीतियां अमेरिकी हितों को प्राथमिकता देती हैं। वह चाहते हैं कि भारत अमेरिकी तेल, गैस, और सैन्य उपकरण जैसे एफ़-35 फाइटर जेट खरीदे। रक्षा क्षेत्र से जुड़े जानकार चेताते रहे हैं कि एफ़-35 जैसे हथियारों की तकनीकी खामियां और ऊंची क़ीमत भारत के लिए बोझ बन सकती हैं। इसके अलावा ट्रंप की मेक इन इंडिया विरोधी बयानबाजी और भारत में एप्पल के उत्पादन पर 25% टैरिफ़ जैसी धमकी भारत की औद्योगिक महत्वाकांक्षाओं के लिए ख़तरा है।
भारत ने अमेरिकी चिकन और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ लगाकर अपने किसानों और स्थानीय उद्योगों को संरक्षित किया है। पहले भारत ने एवियन फ्लू का हवाला देकर अमेरिकी पोल्ट्री पर बैन लगाया था। अगर भारत इन टैरिफ़ को हटाता है तो स्थानीय किसानों को नुक़सान होगा और अमेरिकी उत्पाद बाजार में हावी हो सकते हैं।
भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर पर टैरिफ़ भारतीय उद्योग को बढ़ावा देते हैं। ट्रंप की मांगों को मानने का मतलब होगा कि भारत का मेक इन इंडिया मिशन कमजोर पड़ सकता है।
ट्रंप की रणनीति दबाव बनाकर रियायतें हासिल करना है। भारत ने पहले भी अमेरिका के साथ सौदों में रियायतें दीं। बोरबन और ऑटो पार्ट्स पर 150% से 50% तक टैरिफ़ कम किया गया है। आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि अब भारत को सख्त रुख अपनाकर यह दिखाना होगा कि वह आसानी से नहीं झुकेगा।
ट्रंप की टैरिफ़ धमकियां डरावनी लगती हैं, लेकिन उनकी छवि बताती है कि वह अक्सर पीछे हट जाते हैं। यूरोपीय यूनियन के साथ 50% टैरिफ़ की धमकी के बाद भी वह बातचीत के लिए तैयार हुए। रणनीतिकार कहते हैं कि भारत को इस कमजोरी का फ़ायदा उठाना चाहिए और ट्रंप के साथ सौदेबाजी में भारत को यह साफ करना होगा कि वह रियायतें तभी देगा, जब अमेरिका भी भारतीय हितों का सम्मान करेगा।
जानकार कहते हैं कि भारत को ट्रंप के साथ सौदेबाजी में संतुलन बनाना होगा। वह न तो पूरी तरह नरम रुख अपनाए और न ही गैर ज़रूरी टकराव मोल ले। इसके साथ ही सुझाव दिया जा रहा है कि भारत को एशियान और अन्य एशियाई देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करना चाहिए, ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम हो।
ट्रंप के साथ व्यापारिक सौदेबाजी भारत के लिए एक जटिल चुनौती है। ट्रंप की टैरिफ धमकियां डरावनी हो सकती हैं, लेकिन उनकी पलटने वाली छवि भारत को सख्त रुख अपनाने का मौक़ा देती है।