भारत की आर्थिक विकास दर के लिए बुरी ख़बर है। विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर का अनुमान 6.7% से घटाकर 6.3% कर दिया है। इसका मुख्य कारण कमजोर निर्यात और निवेश में कमी बताया गया है। विश्व बैंक की ताजा ‘ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स’ रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है।
विश्व बैंक के अनुसार भारत का निर्यात वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और व्यापार में कमी के कारण प्रभावित हुआ है। वैश्विक बाज़ारों में मांग कम होने से भारत के निर्यात पर दबाव पड़ा है। इसके अलावा निवेश की गति भी धीमी रही है। इसने आर्थिक विकास को प्रभावित किया है। विश्व बैंक ने बताया कि वैश्विक व्यापार में बाधाएँ और नीतिगत अनिश्चितताएँ भी इसकी वजह हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मौद्रिक नीतियों में ढील और कुछ सरकारी सुधारों के बावजूद निर्यात और निवेश में कमी ने विकास दर को प्रभावित किया है। बता दें कि भारत में वित्तीय वर्ष 2024-25 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफ़डीआई में भारी कमी देखी गई है। विभिन्न स्रोतों के अनुसार, नेट एफ़डीआई 96.5% तक गिरकर मात्र 0.4 बिलियन डॉलर यानी क़रीब 353 मिलियन डॉलर रह गया है। यह पिछले साल के 10.1 बिलियन डॉलर से बहुत कम है। यह अब तक का सबसे निचला स्तर है।
इसके अलावा अप्रैल 2025 में निजी इक्विटी और वेंचर कैपिटल निवेश में भी 51% की कमी आई है। यह पिछले साल अप्रैल 2024 के 3.9 बिलियन डॉलर से घटकर 2 बिलियन डॉलर हो गया। इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश भी 13 महीने के निचले स्तर पर पहुँच गया। इसमें मासिक आधार पर 22% की कमी आई।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के निर्यात में मिला-जुला प्रदर्शन देखा गया है और पूरे साल में सेवा और माल के कुल निर्यात में क़रीब साढ़े पाँच फीसदी बढ़ोतरी हुई। हालाँकि, पूरे वर्ष के लिए माल निर्यात के 435 बिलियन डॉलर से कम रहने का अनुमान है, जो 2023-24 में 437.1 बिलियन डॉलर था। यह मामूली कमी को दिखाता है। इस साल वैश्विक आर्थिक विकास दर के धीमा होने से निर्यात के और भी प्रभावित होने की आशंका है।
हालाँकि, इसके बावजूद विश्व बैंक ने यह भी कहा कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहेगा।
विश्व बैंक ने भविष्य के लिए भी अपने अनुमान साझा किए हैं। इसने कहा है कि वित्त वर्ष-2026 में भारत की संभावित विकास दर 6.3% से वित्त वर्ष-2027 में थोड़ा बढ़कर 6.5% और वित्त वर्ष-2028 तक 6.7% तक पहुंच सकती है। इसका कारण घरेलू मांग में सुधार और सरकारी नीतियों का समर्थन बताया गया है। इसके अलावा सेवा क्षेत्र के निर्यात और डिजिटल अर्थव्यवस्था में वृद्धि से भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलने की उम्मीद है।
विश्व बैंक ने यह भी कहा कि भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट वित्त वर्ष 26-27 तक जीडीपी के 1-1.6% के बीच रहेगा। यह सेवा क्षेत्र के निर्यात और प्रवासियों द्वारा भेजे गये पैसे के मजबूत प्रदर्शन के कारण संभव होगा।
वैश्विक रफ़्तार धीमी होगी
वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी होने की बात विश्व बैंक ने कही है। वैश्विक विकास दर 2025 में 2.3% रहने का अनुमान है जो 2008 की मंदी के बाद सबसे निचला स्तर है। इस नज़रिए से भारत का 6.3% विकास दर का अनुमान अभी भी प्रभावशाली है। विश्व बैंक ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बताया है, जो वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बावजूद मज़बूत स्थिति में है।
आर्थिक जानकारों का मानना है कि भारत को निर्यात बढ़ाने के लिए नए बाज़ार तलाशने और घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है।
वैसे, भारत सरकार ने विश्व बैंक के इस अनुमान पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, सरकार ने आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं के तहत निवेश और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। जानकारों का मानना है कि इन नीतियों का असर अगले कुछ वर्षों में दिखाई दे सकता है।
विश्व बैंक का यह अनुमान भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम संदेश है। हालाँकि विकास दर में कमी का अनुमान चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन भारत का वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बने रहना एक सकारात्मक संकेत है। कहा जा रहा है कि सरकार और नीति निर्माताओं को निर्यात और निवेश को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रभावी क़दम उठाने की ज़रूरत है, ताकि भारत अपनी आर्थिक वृद्धि को और मजबूत कर सके।