बीते 28 मार्च को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करते हुए बीटी कपास (BG-II) के बीज के नए रेट जारी किए। केंद्रीय मंत्रालय ने बीज के भाव में 4.2 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है। आगामी खरीफ़ सीजन के लिए 475 ग्राम के बीटी कपास के बीज के पैकिट की कीमत 901 रूपए होगी।
मगर कृषि संगठनों सहित किसानों और विशेषज्ञों ने बीज के रेट बढ़ाने की आलोचना की है। किसानों का मानना है कि कपास के घटते उत्पादन और बढ़ती लागत के बीच सरकार द्वारा ऐसे रेट बढ़ाना उन पर और दबाव डालेगा। इस बीच किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रिय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर नाराज़गी ज़ाहिर की है।
टिकैत का कहना है कि सरकार का यह फैसला चिंताजनक है। उनके अनुसार बीटी कपास के उत्पादन में बीते कुछ सालों में कमी आई है। साथ ही उनका कहना है कि कपास की फसल पर गुलाबी इल्ली (Pink Bollworm) के हमले भी बढ़े हैं जबकि बीटी कपास इसी के निवारण के रूप में प्रचारित की गई थी।
कपास की बढ़ती लागत
मध्य प्रदेश के खरगोन जिला के बेहरामपुरा टेमा गांव के रहने वाले संदीप यादव को जब हमने कपास के बीज के दामो की बढ़ी हुई कीमत के बारे में बताया तो वो बेहद चिंतित नज़र आए। वह कहते हैं,
“कपास की लागत हर रोज़ बढ़ती जा रही है, अब ये फायदे की फसल नहीं रही।”
उन्होंने ग्राउंड रिपोर्ट को बताया कि मई का महीना शुरू होते ही कपास के बीजों के लिए मारामारी शुरू हो जाएगी। इस दौरान इसकी कालाबाज़ारी भी बढ़ जाती है। वह कहते हैं,
“पिछले साल मैंने यही बीज ब्लैक में 1200 रूपए (प्रति पैकेट) में खरीदा था।”
यादव बताते हैं कि उन्हें 5 एकड़ में लगभग 20 पैकेट बीज लग जाते हैं. किसानों को कपास के बीज सहकारी समिति और मंडी में भी उपलब्ध करवाए जाते हैं। खरगोन के किसान कहते हैं कि सहकारी समिति में आशा 1 और 14K59 का बीज उपलब्ध नहीं होता जबकि यहां के किसान इसे ही उपयुक्त मानते हैं। हालांकि कपास मंडी में यह बीज उपलब्ध होते हैं मगर वहां इसे लेने के लिए लंबी लाइन में लगना पड़ता है।
“मंडी से बीज खरीदना हो तो वहां पाउती लेकर जाओ और फिर 2-2 दिन लाइन में लगो।”
किसानों की शिकायत है कि सरकार एक ओर कपास के बीज के दाम बढ़ाने का काम तो कर रही है मगर उसकी सरल उपलब्धता की ओर उसका कोई ध्यान नहीं है। इससे फसल बोवनी से पहले किसानों को धूप में लाइन में लग कर बीज लेना पड़ता है। मगर संदीप जैसे किसान इस परेशानी को उठाने के बजाए बीज सीधे निजी दुकान से लेना पसंद करते हैं। हालांकि उन्हें इसके बदले बढ़ी हुई कीमत चुकानी पड़ती है।
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संदीप कहते हैं कि कपास की खेती में हर साल लागत बढ़ रही है। वह लागत के आंकड़ों को मोटे-मोटे तौर पर बताते हैं,
“एक एकड़ में लगभग 5 हजार का पेस्टीसाइड लग जाता है, 5 हज़ार मज़दूरी, चारा हटाने और खाद का खर्च मिला कर एक एकड़ में 20 हजार का खर्च आता है।”
गौरतलब है कि राकेश टिकैत अपने पत्र में कपास की घटती यील्ड और कीटों के बढ़ते हमले की बात कह चुके हैं। दरअसल 2002 में भारत में पहली बार बीटी कॉटन लाया गया था। यह देश की पहली जेनेटकली मॉडिफाइड (GM crop) फसल थी। इम्पैक्ट एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IMPRI) में सीनियर विजिटिंग फैलो के रूप में कार्य कर रहे और कॉटन एडवाईजरी बोर्ड कमिटी के सदस्य रहे डॉ डोंथी नरसिम्हा रेड्डी ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए कहते हैं,
“इससे पहले की सरकार कपास को लिबरेट करने का सोचती भी, बीटी कॉटन मोंसेंटो द्वारा गैर क़ानूनी रूप से भारत में लाया जा चुका था। इसको लाने के बाद यह नैरेटिव बनाया गया कि इससे कॉटन यील्ड (Cotton Yield) बढ़ेगी, निर्यात बढ़ेगा और देश में टेक्सटाइल इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलेगा। मगर यह सब केवल हाइप था।”
दरअसल मोंसेंटो नाम की कंपनी द्वारा भारत में बीटी कॉटन की वैराईटी विकसित की गई थी। मगर इसको लाने के दौरान जो वादे किए गए थे वह सब झूठे ही साबित हुए। इस बारे में ग्राउंड रिपोर्ट की विस्तृत पड़ताल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बीटी कॉटन क्षेत्र, उत्पादन और प्रदेश
मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत हुए आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि यहां बीटी कॉटन की खेती 2002-03 में शुरू हुई थी. सर्वेक्षण में इसकी सफलता के बारे में बताते हुए कहा गया है,
“बीटी कपाास को अपनाने के परिणामस्वरूप, दोनों–क्षेत्र और उत्पादन में निरंंतर वृद्धि देखने को मिली है, क्योंंकि किसाानोंं को इसकी उच्च कीट प्रतिरोधक क्षमता और बेहतर उपज क्षमता से लाभ हुआ है।”
मगर साल 2024-25 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश सरकार द्वारा बीटी कॉटन के 15.40 लाख पैकेट वितरित किए गए हैं। यह पिछले साल (16.06 लाख) की तुलना में कम हैं। वहीं इसके उत्पादन क्षेत्र में भी कमी आई है. 2024-25 में प्रदेश के 6.22 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही बीटी कॉटन की खेती हुई है। जबकि 2023-24 में यह आंकड़ा 6.50 लाख हेक्टेयर था। यह आंकड़े सरकार के ‘क्षेत्र और उत्पादन में निरंंतर वृद्धि’ के दावे का समर्थन नहीं करते हैं।
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गुलाबी इल्ली की वापसी और बीटी की मोनोपोली
बीटी कपास की बोलगार्ड-II वैराइटी ख़ास तौर पर गुलाबी इल्ली (Pectinophora gossypiella) को रोकने के लिए 2005 में लाई गई थी। सरकारी दाम के अनुसार अभी यही बीज सबसे ज़्यादा महंगे हैं। मगर किसान को अब भी गुलाबी इल्ली के कारण घाटा सहना पड़ रहा है। संदीप यादव साल 2022 का अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि उन्हें इस दौरान अपने 5 एकड़ में आधा उत्पादन ही मिल पाया था।
“मेरी पूरी 5 एकड़ की फसल में गुलाबी इल्ली लगी थी। उस साल मुझे कम से कम 70 क्विंटल का उत्पादन मिलना चाहिए था मगर इल्ली के कारण केवल 40 क्विंटल उत्पादन ही मिला था।”
खरगोन कृषि विज्ञान केंद्र में प्रसार वैज्ञानिक डॉ आरके सिंह का मुख्य काम किसानों को कृषि से सम्बंधित नवीन शोध और तकनीकों की जानकारी देना है। वह कपास में आने वाली समस्या के बारे में ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए कहते हैं कि किसानों को इस समस्या से निपटने के लिए जैविक कपास की ओर बढ़ना चाहिए।
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मगर संदीप इस पर कई सवाल उठाते हैं,
“देसी कपास के बीज हैं कहां बाज़ार में। सब जगह केवल बीटी ही मिलता है।”
साथ ही उनका कहना है कि जैविक कपास की ओर लौटने के लिए किसान को 3 साल तक उत्पादन की उम्मीद छोड़कर मेहनत और लागत लगानी होगी। मगर “निमाड़ क्षेत्र के किसान आर्थिक रूप से इतने भी मज़बूत नहीं हैं कि वो 3 साल के लिए अपनी मुख्य फसल छोड़ दें।”
डॉ सिंह भी मानते हैं कि बाज़ार में देसी कपास के बीज आसानी से उपलब्ध नहीं है ऐसे में उसकी ओर लौटना मुश्किल ही है। गौरतलब है कि राकेश टिकैत इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे अपने एक पत्र में बीटी कपास के बीज पर पूर्णतः प्रतिबंध की बात कह चुके हैं। मगर सवाल वही है कि क्या सरकार ने किसानों के लिए कोई विकल्प मुहैया करवाया है?
हालांकि हरियाणा सरकार ने 2022 में देसी कपास को बढ़ावा देने के लिए 3000 रूपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि का प्रावधान किया था। उससे पहले पंजाब सरकार ने भी इसके लिए प्रयास किए थे। मगर दोनों सरकार कपास के देसी बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं करवा सकी थी। यही कारण है कि यह दोनों योजनाएं सफल नही हो सकीं। अब जब सरकार ने बीटी कपास के दाम बढ़ा दिए हैं तब किसानों का कहना है कि सरकार को न सिर्फ रेट कम करने चाहिए बल्कि उन्हें देसी कपास या फिर इसके विकल्प की ओर ध्यान देना चाहिए।
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