वोटों की गिनती शुरू होने से पहले तक और यहाँ तक कि गिनती शुरू होने के क़रीब एक घंटे बाद तक यह कयास लगाए जा रहे थे कि हरियाणा में कांग्रेस ही जीतेगी। लेकिन वोटों की गिनती शुरू होने के क़रीब एक घंटे बाद ही बीजेपी ने जो बढ़त बनाई, आख़िर तक बनी रही। उसने आख़िरकार 90 में से 48 सीटें जीत लीं। कांग्रेस सिर्फ़ 37 सीटें ही जीत पाई। तो सवाल है कि आख़िर इस तरह का नतीजा कैसे सामने आया कि किसी ने इसका अनुमान तक नहीं लगा पाया।
इसे लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे से समझा जा सकता है। सर्वे में लोगों से यह जानने की कोशिश की गई कि आख़िर वे सरकार के कामकाज के कितने खुश हैं, वोट देते समय उनके लिए पार्टी कितनी अहम थी, वे मुख्यमंत्री के कामकाज से कितना संतुष्ट हैं और किसानों के कल्याण के लिए कौन सी पार्टी बेहतर है। इसके अलावा महिला पहलवानों द्वारा बृजभूषण पर आरोप लगाए जाने, जाट-गैर जाट का मुद्दा, महिला सुरक्षा और कांग्रेस के अंदरुनी क़लह जैसे मुद्दों को भी शामिल किया गया।
चुनाव के समय लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज यानी सीएसडीएस द्वारा किए गए सर्वेक्षण से जनादेश को समझने में मदद मिलती है। द हिंदू ने इस सर्वे के आधार पर रिपोर्ट में कहा है कि ऐसा लगता है कि जनादेश को आकार देने में कई फैक्टर अहम रहे।
बीजेपी सरकार से संतुष्ट या असंतुष्ट
रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा सरकार से लोग आम तौर पर संतुष्ट दिखे। इसने भाजपा को सत्ता में बने रहने में मदद की। लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षण में हर 10 में से क़रीब छह उत्तरदाताओं ने कहा कि वे भाजपा राज्य सरकार के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं। हर 10 में से केवल चार असंतुष्ट थे। मौजूदा सरकार से पूरी तरह संतुष्ट लोगों में से तीन-चौथाई ने भाजपा को वोट दिया। दूसरी ओर, राज्य में भाजपा सरकार से पूरी तरह असंतुष्ट लोगों में से तीन-चौथाई ने कहा कि वे कांग्रेस को पसंद करते हैं। जो लोग सरकार के समर्थन या नाखुशी में इतने स्पष्ट नहीं थे, वे दोनों दलों के समर्थन में समान रूप से बँटे हुए थे।
वोट देने के लिए पार्टी को भी देखा
उत्तरदाताओं ने किसे वोट देना है, यह तय करते समय पार्टी के महत्व को भी अहम माना। हर 10 में से छह से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि पार्टी उनके वोट को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण फैक्टर था। भाजपा के पक्ष में समर्थन बढ़ाने में नरेंद्र मोदी फैक्टर की कुछ भूमिका रही। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले में ऐसा रुझान नहीं देखा गया।
मुख्यमंत्री पद के लिए पसंदीदा उम्मीदवार के रूप में भाजपा के मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से थोड़े आगे थे।
मुख्यमंत्री के काम से कितना संतुष्ट
भाजपा के 10 साल के शासन के दौरान दो मुख्यमंत्री रहे। मौजूदा मुख्यमंत्री सैनी को सत्ता संभाले हुए छह महीने से कुछ ज़्यादा ही समय हुआ था। फिर भी, जब सैनी सरकार को पिछली मनोहर लाल खट्टर सरकार के मुक़ाबले रेटिंग देने के लिए कहा गया, तो खट्टर की तुलना में सैनी द्वारा किए गए काम की अधिक सराहना की गई।
किसान कल्याण
जब पूछा गया कि किसानों के कल्याण और विकास के लिए कौन सी पार्टी बेहतर है, तो उत्तरदाताओं ने कांग्रेस की तुलना में भाजपा को ज़्यादा अंक दिए। हालाँकि, जब जवाबों को किसानों पर केंद्रित करने के लिए फ़िल्टर किया गया, तो उनका मानना था कि कांग्रेस उनके हितों की रक्षा करने में बेहतर है। किसानों में कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों ने बड़े पैमाने पर भाजपा को वोट दिया; कांग्रेस केवल उन लोगों के बीच महत्वपूर्ण समर्थन हासिल करने में सक्षम थी जो लाभार्थी नहीं थे।
महिला पहलवान मुद्दा
राज्य के पहलवानों और अखिल भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के बीच चल रही लड़ाई पर अधिकांश उत्तरदाताओं ने माना कि केंद्र की भाजपा सरकार ने इस मुद्दे से निपटने के लिए ठीक कार्रवाई की है। पहलवान का मुद्दा चुनाव प्रचार के दौरान और उसके दौरान भी चर्चा में रहा। फिर भी, जमीनी स्तर पर इसका कोई खास असर नहीं दिखा।
महिलाओं का वोट
महिलाओं का समर्थन हासिल करने में भाजपा ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया। महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन लोगों को लगता है कि पिछले पांच सालों में हरियाणा में महिलाओं की सुरक्षा में सुधार हुआ है, उनमें से आधे लोगों ने भाजपा को वोट दिया। जिन लोगों को लगता है कि महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति खराब हुई है, उनमें से करीब आधे लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया।
जाट-गैर जाट
हरियाणा की राजनीति में हमेशा से जाट-गैर जाट का विभाजन रहा है। कांग्रेस ने जाट वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। हालांकि इसने जाट वोटों का बहुमत हासिल किया, लेकिन इसके दो परिणाम हुए। इंडियन नेशनल लोकदल यानी आईएनएलडी भी जाट वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने में सफल रहा, जिससे वह वोट बंट गया। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जाटों को एकजुट करने की कोशिश ने भाजपा के पीछे गैर-जाटों को और मजबूत कर दिया। भाजपा ने ब्राह्मणों, पंजाबी खत्रियों, यादवों और गैर-जाटव अनुसूचित जातियों के बीच अपना आधार मजबूत किया।
कांग्रेस की अंदरूनी क़लह
कांग्रेस की राज्य इकाई के भीतर की अंदरूनी कलह से उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच नेतृत्व की खींचतान ने पार्टी के प्रदर्शन को प्रभावित किया। हर 10 में से करीब छह उत्तरदाताओं ने कहा कि इस खींचतान और इसके व्यापक परिणामों ने पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया। केवल एक-चौथाई उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि यह मतदाता की पसंद को प्रभावित करने में बहुत महत्वपूर्ण नहीं था। पूरे अभियान के दौरान कांग्रेस में अति आत्मविश्वास और पार्टी के भीतर की अंदरूनी कलह ने भाजपा को राज्य में सत्ता बनाए रखने में मदद की।