जिस सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पिंजरे में बंद तोते की छवि से बाहर निकलने की नसीहत दी थी उसको हाई कोर्ट के लिए इस्तेमाल की गई भाषा को लेकर फिर से फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने तो इस बार अवमानना की चेतावनी तक दे डाली।
दरअसल, सीबीआई ने एक याचिका लगाई थी जिसमें 2021 के बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा से जुड़े मामलों की सुनवाई राज्य के बाहर करने की मांग की गई थी। सीबीआई ने गवाहों को डराने-धमकाने की आशंका का हवाला देते हुए दिसंबर में इन मामलों को स्थानांतरित करने के लिए याचिका दायर की थी। सीबीआई ने उस याचिका में कहा था कि ‘(बंगाल में) अदालतों में व्याप्त शत्रुतापूर्ण माहौल’ है और इसलिए केस को कहीं और स्थानांतरित कर दिया जाए। इसी बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नाराज़गी जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की अदालतों के खिलाफ ‘घृणास्पद आरोप’ लगाने के लिए सीबीआई की खिंचाई की। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने सीबीआई की याचिका पर कहा कि सीबीआई ने पश्चिम बंगाल की पूरी न्यायपालिका पर आक्षेप लगाया है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘आप पश्चिम बंगाल की सभी अदालतों को शत्रुतापूर्ण बता रहे हैं। जिला न्यायपालिका के न्यायाधीश खुद की रक्षा नहीं कर सकते। आप कह रहे हैं कि मुकदमे ठीक से नहीं चलाए जा रहे हैं।’ अदालत की यह टिप्पणी तब आई जब सीबीआई ने हाल ही में एक आवेदन में 45 से अधिक मामलों को पश्चिम बंगाल से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की। इनमें आरोप लगाया गया कि हिंसा से विस्थापित पीड़ितों को सत्तारूढ़ टीएमसी द्वारा अपने घरों में लौटने से रोका जा रहा है। इसके अतिरिक्त, एजेंसी ने दावा किया कि कई गवाहों को गंभीर धमकियों का सामना करना पड़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सुनवाई से पहले अपनी याचिका में संशोधन करने का निर्देश दिया। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस ओका ने सीबीआई के अनुरोध पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘यदि हम मामले को बंगाल से बाहर स्थानांतरित करते हैं, तो हम प्रमाणित करेंगे कि सभी अदालतें शत्रुतापूर्ण हैं।’
कोर्ट ने आगे कहा कि आवेदन में इस्तेमाल की गई भाषा के कारण हलफनामा दाखिल करने वाले अधिकारी के खिलाफ अवमानना नोटिस दिया जा सकता है।
सीबीआई का प्रतिनिधित्व करने वाले एएसजी एसवी राजू ने सफ़ाई दी कि सीबीआई का न्यायिक प्रणाली पर संदेह करने का कोई इरादा नहीं था। उन्होंने कहा कि ‘शत्रुतापूर्ण वातावरण’ का उल्लेख न्यायपालिका के भीतर किसी भी पूर्वाग्रह के बजाय अदालत कक्ष के बाहर पीड़ितों और गवाहों द्वारा सामना की जाने वाली धमकियों के संदर्भ में है।
पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने सीबीआई के रुख पर सवाल उठाते हुए पूछा, ‘एजेंसी को इस तरह से अदालत का रुख क्यों करना चाहिए’ जवाब में, एएसजी ने कहा कि कई पीड़ितों ने भी धमकी का हवाला देते हुए मामले को स्थानांतरित करने की मांग करते हुए आवेदन दायर किए हैं। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘पश्चिम बंगाल की सभी अदालतों के खिलाफ़ निंदनीय आरोप लगाए गए हैं। बार-बार यह कहा जाता रहा है कि राज्य की सभी अदालतों में शत्रुतापूर्ण माहौल बना हुआ है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों ने इस तरह से न्यायपालिका पर ऐसे आरोप लगाए हैं।’
‘पिंजरे में बंद तोता’
सुप्रीम कोर्ट ने 11 साल पहले यानी कांग्रेस के सरकार के दौरान सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ बताया था। अब हाल में फिर से इसी सुप्रीम कोर्ट ने उस ‘तोते’ की याद दिला दी। अदालत ने कह दिया कि सीबीआई को पिंजरे में बंद तोते की छवि से बाहर आना होगा और दिखाना होगा कि अब वह पिंजरे में बंद तोता नहीं रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की थी जब वह दिल्ली आबकारी नीति मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शुक्रवार को जमानत दे दी। केजरीवाल को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘सीबीआई इस देश की प्रमुख जांच एजेंसी है, इसको न सिर्फ़ सबसे ऊपर होना चाहिए, बल्कि ऐसा दिखना भी चाहिए। इसने कहा,
“
कुछ समय पहले इस अदालत ने सीबीआई को फटकार लगाई थी और इसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी, इसलिए अब ज़रूरी है कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोते की धारणा से बाहर निकले।
सुप्रीम कोर्ट
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2013 को सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था। तब कोयला घोटाले से जुड़े मामले की सुनवाई हो रही थी। अदालत ने कहा था, ‘सीबीआई वो तोता है जो पिंजरे में कैद है। इस तोते को आजाद करना जरूरी है। सीबीआई को एक तोते की तरह अपने मालिक की बातें नहीं दोहरानी चाहिए।’