मध्य प्रदेश के बैतूल में मंगलवार को भीमसेना के प्रदेश प्रभारी पंकज अतुलकर को पकड़ा गया है। अतुलकर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एससी-एसटी तबके के लिए आरक्षण को लेकर दिए फैसले का विरोध जताते हुए सोमवार को एक पोस्ट की थी।
पंकज ने सोशल मीडिया पर लिखा था, ‘गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के परिप्रेक्ष्य में हमारे महान क्रांतिकारियों ने जिस प्रकार अंग्रेजों और अंग्रेजों के गुलामों को बंदूक, फरसे और अन्य हथियारों से मारा था, उसी प्रकार मैं पंकज अतुलकर भी आह्वान करता हूं कि मुझे मौका मिला तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जिसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को गुलाम बनाने का फैसला सुनाया है और संविधान का भी उल्लंघन किया है. ऐसे कुटिल मानसिकता वाले सामंतवादी धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ को मार गिराऊंगा, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को कीड़े-मकोड़े के जीवन का सामना न करना पड़े. आप सभी से अपील है कि समाज के लिए लड़ते रहें.’
पंकज की पोस्ट से हंगामा खड़ा हो गया था. पुलिस ने मामला दर्ज कर छानबीन शुरू की थी. पोस्ट करने वाले की पहचान पंकज अतुलकर के रूप में हुई थी. मप्र के बैतूल का निवासी होने की बात सामने आयी थी. पंकज ने सोमवार 5 अगस्त को सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी. मप्र पुलिस ने 6 अगस्त को उसे पकड़ लिया. पकड़ने के बाद कोर्ट में पेश कर पुलिस रिमांड मांगी गई थी. कोर्ट ने पंकज को 20 अगस्त तक ज्यूडिशियल रिमांड पर जेल भेज दिया है.
कोई मलाल नहीं पंकज कोः पंकज ने गिरफ्तारी से पहले इस पोस्ट को लेकर मीडिया के सामने अपनी सफाई में कहा, ‘मैंने कोई धमकी नहीं दी है। मेरा व्यक्तव्य साफ-साफ है कि जो महान क्रांतिकारी हुए हैं, उन्होंने जैसे भारत को आजादी दिलाई थी, उसी तारतम्य में मैंने गुलाम बनाने वाले को ऐसा किया जा सकता है, कहा है। इसे धमकी नहीं कहा जा सकता.
पोस्ट पर 68 लाइक-27 कमेंट
भीम सेना के प्रदेश प्रभारी पकंज अतुलकर की पोस्ट पर 27 लोगों ने कमेंट किए हैं, जबकि 83 लोगों ने इसे फॉरवर्ड और 68 ने लाइक किया था. इसी के बाद पंकज के खिलाफ बैतूल गंज थाने में FIR दर्ज की गई थी. यहां यह भी बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को इस बारे में फैसला सुनाया था. अदालत ने 20 साल पुराना अपना ही फैसला पलटा है. फ़ैसले में कोर्ट ने कहा था, ‘अनुसूचित जातियां खुद में एक समूह हैं, इसमें शामिल जातियों के आधार पर और बंटवारा नहीं किया जा सकता.’
कोर्ट ने अपने नए फैसले में राज्यों के लिए जरूरी हिदायत भी दी हैं. कोर्ट ने इन हिदायतों में कहा है कि राज्य सरकारें मनमर्जी से फैसला नहीं कर सकतीं. पहली: अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दे सकतीं।
दूसरी: अनुसूचित जाति में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए। फैसला सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ का है। इसमें कहा गया कि अनुसूचित जाति को उसमें शामिल जातियों के आधार पर बांटना संविधान के अनुच्छेद-341 के खिलाफ नहीं है।