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    Home » सुप्रीम कोर्ट के बनाए पैनल से मिलना क्यों नहीं चाहते हैं किसान? जानें वजह
    भारत

    सुप्रीम कोर्ट के बनाए पैनल से मिलना क्यों नहीं चाहते हैं किसान? जानें वजह

    By January 6, 2025No Comments7 Mins Read
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    किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई समिति से प्रदर्शनकारी किसानों ने मिलने से इनकार कर दिया है। पहले तो भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) ने 4 जनवरी को समिति से मिलने से इनकार कर दिया था। और अब संयुक्त किसान मोर्चा (राजनीतिक) ने भी ऐसा ही किया। पंजाब-हरियाणा सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि यह समिति किसी और मक़सद से बनाई गई थी और ऐसे में उनके मुद्दों का समाधान नहीं हो सकता है। तो क्या सच में ऐसा है आख़िर समिति किसलिए बनी थी और किसान किन वजहों से मिलने से इनकार कर रहे हैं

    इन सवालों के जवाब ढूंढने से पहले किसान आंदोलन और उनके मुद्दे को जान लें। मौजूदा किसान आंदोलन दोबारा पिछले साल 2024 के फरवरी माह में दो किसान संगठनों- संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा द्वारा लंबित मांगों को लेकर शुरू किया गया था। राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा से अलग होकर अपने संगठन के समर्थकों के साथ पंजाब से जगजीत सिंह डल्लेवाल और स्वर्ण सिंह पंधेर ने दिल्ली कूच किया था जिनको हरियाणा के अलग-अलग बॉर्डर पर हरियाणा के सुरक्षा बलों द्वारा रोक दिया गया। किसान उसी सीमा पर प्रदर्शन कर रहे हैं। 

    किसान आंदोलन 2020 में तीन कृषि कानून को खत्म करने के साथ-साथ जो मुख्य मांगें थीं उनमें एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्ज से मुक्ति, बिजली आपूर्ति कानूनों में सुधार व दरों में कटौती, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना, किसानों पर किये गए केस वापसी आदि शामिल थीं। तीन कृषि क़ानून तो रद्द कर दिए गए। लेकिन बाक़ी मांगों को सरकार द्वारा लिखित आश्वासन दिए जाने के बावजूद पूरा नहीं किया जाना मौजूदा किसान आंदोलन का आधार बना हुआ है।

    किसानों के प्रदर्शन से जब हाइवे जाम हो रहा था तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुलझाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 2 सितंबर को उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था। पंजाब और हरियाणा के सुझावों के अनुसार, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) नवाब सिंह को पैनल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। पंजाब से आने वाले हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक बीएस संधू, प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा, जीएनडीयू, अमृतसर (पंजाब) में प्रोफेसर ऑफ एमिनेंस प्रोफेसर रंजीत सिंह घुम्मन और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के कृषि अर्थशास्त्री डॉ. सुखपाल सिंह सदस्य हैं।

    किसानों का तर्क

    एसकेएम नेता बलबीर सिंह राजेवाल का कहना है कि उन्होंने इस मुद्दे पर दो दिनों तक चर्चा की और फ़ैसला किया कि पैनल के मैनडेट का किसानों की मांगों से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने दावा किया कि उच्चस्तरीय समिति को खनौरी और शंभू बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों को जगह मुहैया कराने पर काम करना था, लेकिन वह कुछ भी करने में असमर्थ थी। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार राजेवाल ने कहा, ‘इसलिए, हमने 3 जनवरी को उनकी बैठक का हिस्सा नहीं बनने का फैसला किया, क्योंकि हमें लगता है कि इससे आंदोलन के हितों को नुकसान पहुंचेगा।’ 

    बलबीर सिंह राजेवाल ने यह भी कहा कि वे उस समय बैठक में भाग नहीं लेना चाहते थे, जब डल्लेवाल आमरण अनशन पर हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने पैनल को क्या दिया था मैनडेट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति से अनुरोध है कि वह शंभू सीमा पर आंदोलनरत किसानों से संपर्क करे और उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग से अपने ट्रैक्टर/ट्रॉली, टेंट और अन्य सामान तुरंत हटाने के लिए राजी करे ताकि दोनों राज्यों के नागरिक और पुलिस प्रशासन राष्ट्रीय राजमार्ग को खोल सकें। 

    न्यायाधीश सूर्यकांत और उज्जल भुइयां ने कहा था, ‘हमें उम्मीद और भरोसा है कि आंदोलनकारी किसानों की एक प्रमुख मांग तटस्थ उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन के बारे में है जिसे दोनों राज्यों की सहमति से स्वीकार कर लिया गया है, वे उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अनुरोध पर तुरंत जवाब देंगे और बिना किसी देरी के शंभू बॉर्डर या दोनों राज्यों को जोड़ने वाली अन्य सड़कों को खाली कर देंगे। …यह उच्चाधिकार प्राप्त समिति और दोनों राज्यों को किसानों की वास्तविक और न्यायसंगत मांगों पर निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार करने में भी मदद करेगी।’ उनका निर्देश कृषक समुदाय के समक्ष आने वाले बड़े मुद्दों की जांच करने के बारे में भी है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम यह जोड़ना चाहेंगे कि पंजाब और हरियाणा राज्यों में ग़ैर-कृषि समुदायों की एक बड़ी आबादी है- जो बड़े पैमाने पर समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों से संबंधित हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। उनमें से अधिकांश अपने गांवों, क्षेत्रों में कृषि गतिविधियों की ताक़त और रीढ़ हैं। हम कृषि विकास में उनके योगदान को स्वीकार करते हैं और हमारा मानना ​​है कि उनकी वैध आकांक्षाएँ, यदि लागू करने योग्य अधिकार नहीं हैं, तो भी समिति द्वारा सहानुभूति और उचित विचार की हकदार हैं, जबकि पंजाब और हरियाणा राज्यों में कृषक समुदाय के समक्ष आने वाले बड़े मुद्दों की जांच की जा रही है।’

    समिति की पहली रिपोर्ट

    22 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई अपनी पहली रिपोर्ट में पैनल ने पंजाब और हरियाणा में कृषि संकट के पीछे के कारणों को सूचीबद्ध किया, जिसमें स्थिर उपज, बढ़ती लागत, कर्ज और अपर्याप्त मार्केटिंग सिस्टम शामिल है। समिति ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी मान्यता देने और प्रत्यक्ष आय सहायता की पेशकश की संभावना की जांच करने सहित समाधान सुझाए।

     - Satya Hindi

    अपनी 11-पृष्ठ की रिपोर्ट में पैनल ने कहा था, ‘देश में सामान्य रूप से और विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा के कृषक समुदाय दो दशकों से लगातार बढ़ते संकट का सामना कर रहे हैं। 1990 के दशक के मध्य से उपज और उत्पादन वृद्धि में ठहराव ने संकट की शुरुआत का संकेत दिया।’

    इसमें कहा गया है, ‘राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अनुसार 2022-23 में पंजाब में किसानों पर संस्थागत ऋण 73,673 करोड़ रुपये था, जबकि हरियाणा में यह 76,630 करोड़ रुपये था। किसानों पर गैर-संस्थागत ऋण का भी काफी बोझ है, जो राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के अनुसार पंजाब में किसानों पर कुल बकाया ऋण का 21.3 प्रतिशत और हरियाणा में 32 प्रतिशत होने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर में किसान समुदाय आत्महत्या की महामारी से जूझ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में 1995 से अब तक 4 लाख से अधिक किसान और खेत मज़दूर आत्महत्या कर चुके हैं। पंजाब में तीन सार्वजनिक क्षेत्र के विश्वविद्यालयों द्वारा घर-घर जाकर किए गए सर्वेक्षण में 15 वर्षों (2000 से 2015) में किसानों और खेत मजदूरों के बीच 16,606 आत्महत्याएं दर्ज की गईं।’ 

    समिति अब कृषि आय बढ़ाने पर अपनी दूसरी रिपोर्ट तैयार कर रही है, जिसमें एमएसपी भी शामिल है। इसके लिए समिति ने पंजाब और हरियाणा के कृषि और बागवानी विभागों के निदेशकों सहित विभिन्न हितधारकों से मुलाक़ात की है। 7 जनवरी से और बैठकें होने वाली हैं। इसने कृषि नीतियों पर काम करने वाली संस्थाओं को बुलाया है। 

    पैनल पर खर्च का बिल 5 करोड़

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति ने लॉजिस्टिक सहायता के लिए पंजाब और हरियाणा सरकार के समक्ष 2.5-2.5 करोड़ रुपये का बिल रखा है। द इंडियन एक्सप्रेस ने समिति के सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि हरियाणा सरकार ने यह राशि मंजूर कर दी है, जबकि पंजाब सरकार ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। पंजाब सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि कृषि विभाग ने फाइल मुख्यमंत्री भगवंत मान के कार्यालय को भेज दी है। उन्होंने कहा, ‘2.5 करोड़ रुपये की राशि काफी अधिक है। अधिकारी अपने स्तर पर कोई निर्णय नहीं ले सकते… हम इसे मुख्यमंत्री के समक्ष रखेंगे। वह इस पर निर्णय लेंगे। अन्यथा, हम सोच रहे हैं कि समिति इतने पैसे का क्या करेगी” 

    पंजाब सरकार के अधिकारी ने कहा कि 2.5 करोड़ रुपये काफी बड़ी रक़म है। उन्होंने कहा, यदि यह लाखों में होता तो हम अब तक इसे चुका चुके होते। हालांकि, यह बहुत बड़ी रकम है। हमें नहीं पता कि पैनल को इतने पैसे की क्या जरूरत है। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने हमें लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए भुगतान करने के लिए कहा हो, लेकिन हम ऐसी कोई रकम नहीं दे सकते। पैनल को सिर्फ बैठकें करनी हैं। उन्हें सिर्फ जलपान की जरूरत है। एक बैठक में इसकी कीमत 2,000 रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अधिकारी खुद कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगे। इसके लिए मुख्यमंत्री की मंजूरी की जरूरत होगी।’

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