
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादास्पद भाषण पर प्रस्तावित इन-हाउस जांच को रोक दिया है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से यह खबर देते हुए बताया है कि राज्यसभा सचिवालय से मार्च 2025 में एक स्पष्ट पत्र मिला, जिसमें कहा गया कि इस मामले पर एकमात्र अधिकार संसद और राष्ट्रपति के पास है।
यह मामला उस समय सामने आया था जब दिसंबर 2024 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) की एक सभा में जस्टिस यादव ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विवादित टिप्पणियां कीं। उनके बयान “भारत को बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलना चाहिए” और “केवल एक हिंदू ही भारत को विश्वगुरु बना सकता है” ने देश में व्यापक गुस्से को जन्म दिया। उन्होंने तीन तलाक, हलाला जैसी प्रथाओं को मुसलमानों के सामाजिक पिछड़ेपन से जोड़ते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के समर्थन में बातें कहीं। इस भाषण के वायरल वीडियो में उन्हें कथित तौर पर अपमानजनक सांप्रदायिक टिप्पणियां करते हुए भी देखा गया।
इन बयानों के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के नेतृत्व में 55 विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दाखिल किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से रिपोर्ट मांगी और 17 दिसंबर को खुद चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में कोलेजियम ने जस्टिस यादव को बंद कमरे में बुलाकर उनके बयान की समीक्षा की।
कोलेजियम को आश्वासन मिला कि जस्टिस यादव सार्वजनिक माफी देंगे, लेकिन जनवरी 2025 में उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया। जस्टिस शेखर यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। उन्होंने संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप समाज के मुद्दों को उठाया।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “चूंकि इन-हाउस जांच कोई वैधानिक प्रक्रिया नहीं बल्कि आंतरिक तंत्र है, इसलिए संसद के प्रक्रिया में दखल देने से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जांच रोक दी।”
राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी संसद में यह स्पष्ट किया था कि इस तरह के मामलों पर एकमात्र अधिकार संसद और राष्ट्रपति का है, और यह मामला उनके संज्ञान में है।
हालांकि, विपक्षी सांसद अभी भी इस मुद्दे पर स्पष्टता की मांग कर रहे हैं। एक वरिष्ठ सांसद ने कहा, “बजट सत्र में सभापति ने कहा था कि वे हस्ताक्षरों की वैधता की जांच कर रहे हैं। अब मानसून सत्र में हम जानना चाहेंगे कि नोटिस पर अगला कदम क्या है।”
जस्टिस यादव, जो अप्रैल 2026 में रिटायर होने वाले हैं, अपने जवाब में लगातार यह कहते रहे हैं कि उन्होंने कोई गलती नहीं की है और उनके भाषण को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया। उन्होंने गाय-संरक्षण से जुड़े अपने फैसलों का बचाव करते हुए कहा कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और कानूनों का हिस्सा है।
अब निगाहें राज्यसभा सभापति पर हैं, कि वे महाभियोग प्रस्ताव की वैधता तय कर जांच समिति गठित करते हैं या नहीं। लेकिन यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ से टकराव टालने के लिए जांच टाल दी है और अब फैसला संसद के पाले में है।