“आप तस्वीरें लाइए, मैं युद्ध करवाऊँगा!” अमेरिका के नामी मीडिया मुगल और उद्योगपति विलियम रैंडोल्फ हर्स्ट ने यह बात उस दौर में कही जब पीत पत्रकारिता का उदय हो रहा था। यह भी कहा जाता है कि रैंडोल्फ हर्स्ट ने अपने जीवनकाल में अपनी सनसनी भरी पत्रकारिता से कई युद्ध करवाए भी। ठीक वैसे ही जैसे इस समय कुछ मीडिया घराने पिछले दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच लगभग करवा ही चुके थे। एयर स्ट्राइक और निरंतर ब्लैकआउट के बीच एक सूचना युद्ध छिड़ गया था। ऐसा युद्ध जिसमें भारत के पत्रकार सीधा ‘इस्लामाबाद पर कब्ज़ा’ जमाकर बैठे थे, पाकिस्तान के पत्रकारों ने ‘पटना का सीपोर्ट’ ध्वस्त कर दिया था। ताबड़तोड़ ख़बरें! सूचनाओं की बाढ़ पर सही जानकारी? भूसे के ढेर में सुई ढूँढ़ना शायद अधिक आसान काम होगा, सूचनाओं से सही ख़बर ढूँढ़ने के मुकाबले।
कराची पोर्ट तबाह होने से लेकर परमाणु लीक तक
कुछ प्रमुख भारतीय टीवी चैनलों ने दावा किया कि भारतीय सेना ने कराची के बंदरगाह को नष्ट कर दिया। एक तरफ़ भारत में ड्रोन का हमला हो रहा था, दूसरी तरफ टीवी पर तमाम एंकर आवाज की पराकाष्ठा पर पहुँच फेक न्यूज़ की बाढ़ कर रहे थे।
राष्ट्रवाद के तड़के में इस तरह सूचनाओं को धकेला गया कि राष्ट्र खुद भौंचक्क हो जाए। गलत सूचनाएं इतनी ज़्यादा बढ़ गई थीं कि सरकार को फ़ेक न्यूज़ के ख़िलाफ़ अड्वाइज़री जारी करनी पड़ी। इतना होने पर भी इस ‘फेक न्यूज़’ का कारोबार रुका नहीं है।
एक हालिया उदाहरण लेते हैं। एक ख़बर बड़ी आम है कि भारत ने किराना हिल्स पर हमला किया जहां पाकिस्तान के आणविक ठिकाने हैं। अब पाकिस्तान रेडिएशन की दिक्कतों से जूझ रहा है। इस ख़बर को कई दक्षिणपंथी यूट्यूबर और सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर अपने सोशल मीडिया हैंडल पर फैला रहे हैं। हिन्दी के एक प्रमुख दैनिक के यूट्यूब हैंडल पर भी इस बात को ज़ोर से कहा जा रहा है कि पाकिस्तान में परमाणु लीक की ख़बरें चल रही हैं। इन सूचनाओं को पाकिस्तान के कुछ एयर बेस पर भारत के हमले से जोड़ते हुए इस तरह फैलाया जा रहा है कि भारत ने पाकिस्तान की दुम दबा दी। वहाँ रेडिएशन शुरू करवा दिया है।
भारत का आधिकारिक बयान
तथ्यों से जोड़ा जाए तो यह सूचना निरे गप्प के अलावा कुछ और नहीं नज़र आती है। भारत सरकार की ओर से किराना हिल्स या पाकिस्तान के आणविक ठिकानों पर हमले को लेकर पहले ही साफ कर दिया गया है। वायुसेना के एयर मार्शल भारती ने पाकिस्तान में आणविक ठिकानों के बारे में जानकारी के सवाल पर कहा है कि “हमें नहीं मालूम कि पाकिस्तान के आणविक ठिकाने कहाँ-कहाँ हैं। रही बात किराना हिल्स पर हमले की, हमने वहाँ हमला नहीं किया।“
भारत सरकार खुद इस बात को नकार चुकी है कि उसका और पाकिस्तान का किसी भी तरह का आणविक मुकाबला हुआ या फिर वह इसमें किसी भी तरह शामिल थी। यहाँ यह समझ से परे है कि मीडिया चैनल्स किस राष्ट्रवाद के कागजी जहाज पर चढ़कर पाकिस्तान के उस कथित न्यूक्लियर रेडिएशन का तमगा हासिल करना चाहते हैं?
अब थोड़ी बात विज्ञान की। क्या किसी मिसाइल या बम के हमले से आणविक रेडिएशन शुरू हो सकता है? क्या कहता है इस पर विज्ञान?
दुनिया भर के इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर की संस्था IEEE का कहना है कि परमाणु मिसाइल बड़े जटिल तरीके से तैयार की जाती हैं। इनमें कई तरह के फिज़िकल और इलेक्ट्रॉनिक लॉक लगे होते हैं। इन्हें कोड के जरिए ही एक्टिवेट किया जा सकता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि कोई इसका बेजा इस्तेमाल न करे, न ही इसमें खुद अचानक कोई विस्फोट हो।
जब इस पर एक आम बम से हमला किया जाता तो भी वह दबाव और गर्मी पैदा नहीं किया जा सकता है जिससे परमाणु बम के नाभिक पर न्यूट्रॉन बमबारी की जा सके और चेन रिएक्शन ट्रिगर हो।
ये कैसा राष्ट्रवाद!
ये तमाम तथ्य पाकिस्तान में भारत के हमले की वजह से परमाणु लीक शुरू होने की तमाम संभावनाओं को नकारते हैं। फिर कौन लोग हैं वे जिन्हें देशभक्ति के नाम पर इन अफ़वाहों को फैलाना जंच रहा है? क्या पाकिस्तान की बर्बादी की चाह में वे यह भूल गये हैं कि भारत को इस कथित लीक का क्रेडिट देना देश को दुनिया की नज़र में गैर-जिम्मेदार करार दे रहा है? इतना ही नहीं, फेक न्यूज़ को लेकर भारत की मीडिया की दुनिया भर में थू-थू हो रही है।
यह कैसी देशभक्ति है जिसमें कथित शत्रु के बारे में खराब अफवाह फैलाना, देश के मान -सम्मान से अधिक अहम हो जाता है। दिक्कत यह है कि इस सूचना युद्ध में आरोप केवल मीडिया या कथित युद्धग्राही देशभक्त सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर पर ही नहीं लग रहे, आरोपों के कई सिरे सरकार की ओर भी खुलते हैं। सूचना के इस ताबड़तोड़ वाले दौर में क्यों पिछड़ जाती हैं वे जानकारियाँ जिस पर जनता का पहला हक़ है। बानगी के लिए, यह दावा कई बार किया जा चुका है कि ऑपरेशन सिंदूर में सौ से अधिक आतंकियों को मारा गया, अभी तक सारे नाम सामने नहीं आए हैं। सीजफायर की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा किए जाने के सवाल पर भी केंद्र सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है। लोग रफायल के बारे में भी जानना चाहते हैं। गलत सूचनाओं की बौछार में कई सूचना रफायल पर भी थी पर अब तक सरकार ने इसके बारे में कुछ भी खुल कर नहीं कहा है। इसी तरह कई खबरें बस सूत्रों के माध्यम से दी गईं। यह पूरी कवायद जनता के सरकार पर भरोसे को डिगा सकती है।
इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का एक बयान वायरल हो रहा है। उमर अब्दुल्ला सवाल कर रहे हैं, पाकिस्तानी गोली-बारी में सीमा पर मारे गये दसियों लोगों की ज़िंदगी पर चुप्पी क्यों है? क्यों इसके प्रति वैसा ही आक्रोश नहीं है जैसा पहलगाम हमले के बाद हुआ था?
केंद्र सरकार ने अब तक पुंछ में खत्म हुई ज़िंदगियों को लेकर कुछ भी विस्तार से नहीं कहा है, न ही वहाँ के लोगों की क्षतिपूर्ति पर कोई आसरा बँधवाया है।
एक सवाल स्वतः खड़ा हो जाता है, क्या सूचना का यह घालमेल देश के नागरिकों को हासिल ‘सूचना के मूल अधिकार’ का हनन नहीं है? अगर ‘हाँ’ तो कौन इसे बहाल करने/रखने की जिम्मेदारी लेगा?