सोनम वांगचुक फिर से लद्दाख की मांगों को लेकर अग्रसर हैं। उन्होंने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध किया। उन्होंने छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग इसलिए की है कि स्थानीय लोगों को अपनी भूमि और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने के लिए कानून बनाने की शक्ति मिल सके।
पर्यावरणविद् और इंजीनियर वांगचुक सोमवार को एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उन्हें जुलाई में करगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ के लिए द्रास की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री को सौंपे गए मांगों के ज्ञापन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
प्रेस कॉन्फ़्रेंस में मीडिया के एक सवाल के जवाब में वांगचुक ने कहा कि लेह और करगिल के लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों यानी एलएएचडीसी को केवल विकास निधि खर्च करने का अधिकार दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘लद्दाख के लोग कानून बनाने की शक्ति भी चाहते हैं।’ वांगचुक ने माना कि एक मार्च से समस्या का समाधान नहीं होगा।
बता दें कि 1 सितंबर को वांगचुक और लगभग 75 स्वयंसेवकों ने लेह से नई दिल्ली तक पैदल मार्च शुरू किया है और केंद्र से उनकी मांगों के संबंध में लद्दाख के नेतृत्व के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का अनुरोध किया है।
उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि केंद्र लद्दाखी लोगों की मांगों पर चर्चा फिर से शुरू करे। वांगचुक ने कहा कि उनका राजनीति में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है और यह मार्च कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से जुड़ा नहीं है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, ‘वास्तव में हम हरियाणा से बचने पर विचार कर रहे हैं, जहां चुनाव होने वाले हैं।’
वांगचुक ने दावा किया कि सरकार ने लद्दाख को आदिवासी क्षेत्र का दर्जा और पूर्ण राज्य का दर्जा देने के अपने वादे को उद्योगपतियों के दबाव में वापस ले लिया है, जो पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्र के संसाधनों का दोहन करना चाहते हैं।
वांगचुक ने यह भी कहा कि लद्दाख में पांच अतिरिक्त जिलों का निर्माण उनके विरोध से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, हमें अभी भी नहीं पता है कि इन जिलों को निर्णय लेने की शक्ति दी गई है या नहीं।’ उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
बता दें कि वांगचुक ने मार्च में 21 दिनों का उपवास किया था। लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने और हिमालयी पारिस्थितिकी की सुरक्षा के लिए दबाव बनाने के लिए उन्होंने भूख हड़ताल की थी। वांगचुक ने तब कहा था, ‘जलवायु परिवर्तन के 21 दिनों के दौरान 350 लोग -10 डिग्री सेल्सियस में सोए। यहां दिन में 5000 लोग सोए। लेकिन फिर भी सरकार की ओर से एक शब्द भी नहीं बोला गया।’ प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक ने केंद्र सरकार से स्टेट्समैन वाला कौशल दिखाने और लोगों की मांगों को पूरा करने का आग्रह किया है।
वांगचुक ने कहा था, ‘हम अपने प्रधान मंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की चेतना को याद दिलाने और जागृत करने की कोशिश कर रहे हैं कि लद्दाख में हिमालय के पहाड़ों का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और यहां पनपने वाली अद्वितीय स्वदेशी जनजातीय संस्कृतियों को बचाएँ।’ उन्होंने कहा था, ‘हम पीएम मोदी और अमित शाह जी को सिर्फ राजनेता के रूप में नहीं सोचना चाहते, हम उन्हें स्टेट्समैन के रूप में देखना चाहेंगे, लेकिन इसके लिए उन्हें कुछ गुण और दूरदर्शिता दिखानी होगी।’