आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल 20 सितंबर को जगाधरी विधानसभा क्षेत्र में एक रोड शो के साथ हरियाणा में पार्टी के अभियान की शुरुआत करेंगे। आप महासचिव (संगठन) संदीप पाठक ने गुरुवार को यह घोषणा की। पाठक ने यह भी कहा कि आप हरियाणा में सत्ता परिवर्तन और राज्य में केजरीवाल के शासन मॉडल को लाने के लक्ष्य के साथ पूरी ताकत से चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।
पाठक ने कहा कि वह आने वाले दिनों में 11 जिलों में 13 कार्यक्रमों में भी भाग लेंगे, जिसमें डबवाली, रानिया, भिवानी, महम, कलायत, असंध और बल्लभगढ़ निर्वाचन क्षेत्र शामिल होंगे।
उन्होंने कहा कि उनके आगे के चुनाव अभियान कार्यक्रम की घोषणा बाद में की जाएगी। पिछले हफ्ते तिहाड़ जेल से रिहा होने के बाद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उनका हरियाणा में व्यस्त प्रचार कार्यक्रम होगा, जहां 5 अक्टूबर को मतदान होना है।
आप इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। चुनाव से पहले सीट शेयर समझौते पर कांग्रेस और आप की बातचीत चल रही थी। बातचीत टूटने के बाद आप हरियाणा में सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दरअसल, आप हरियाणा में कांग्रेस से सौदेबाजी कर रही थी। पहले उसने 10 सीटें मांगीं। फिर पांच सीटों पर आई। कांग्रेस ने उसे 2 से 3 सीटें देने की पेशकश की। लेकिन आप का मूड पहले से ही अलग चुनाव लड़ने का बना हुआ था, जिसका संबंध केजरीवाल की रिहाई से था। क्या यह संयोग है कि जैसे ही केजरीवाल की पार्टी ने हरियाणा में सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया, अगले दिन सुप्रीम कोर्ट का रिजर्व फैसला आ गया और केजरीवाल को जमानत मिल गई।
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में आप ने हरियाणा की 90 सीटों में से 46 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसके प्रत्याशियों को नोटा के पक्ष में पड़े वोटों से भी कम वोट मिले। केंद्रीय चुनाव आयोग के मुताबिक केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी के अधिकांश उम्मीदवारों को 1,000 से कम वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई।
चुनाव आयोग के अनुसार, हरियाणा में AAP का वोट शेयर 0.48 प्रतिशत रहा, जबकि NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) को 0.53 प्रतिशत मिला। आप ने हरियाणा में जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन करारी हार के बाद उसने गठबंधन तोड़ दिया था। जेजेपी ने 10 सीटें जीती थीं और नतीजे आने के बाद वो भाजपा से मिल गई और राज्य में फिर से भाजपा सरकार आ गई। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव से भाजपा ने जेजेपी को जबरदस्त झटका दिया और गठबंधन से निकाल बाहर किया।
केजरीवाल की तमन्ना है कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी की सरकार बने, क्योंकि उनका जन्म भिवानी जिले में हुआ था। जब वो आयकर विभाग में लगे तो आयकर ट्रिब्यूनलों में भटकने वाले हरियाणा के छोटे-छोटे व्यापारियों की मदद कर या गाइड कर काफी मदद की। फिर वो आरटीआई (जनाने का अधिकार) की ओर मुड़े और इसी के साथ उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ती गई। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने घर यानी हरियाणा से करने के बारे में सोचा। हरियाणा के वैश्य समुदाय ने इसमें उनकी मदद की। केजरीवाल के साथ कई शहरों में उस शहर के वैश्य समुदाय और समान विचारधारा वाले लोगों को बैठकों में बुलाया गया। लेकिन इन बैठकों के टिकट बेचे जाते थे। सबसे महंगी टिकट पांच हजार रुपये की थी, जिसमें आगन्तुक केजरीवाल से हाथ मिला सकता था।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 के विधानसभा चुनाव में आप और केजरीवाल कुछ कर पाएंगे, उसकी संभावना न के बराबर है। क्योंकि किसी भी सीट पर आप प्रत्याशी उल्लेखनीय चेहरों में शामिल नहीं हैं। यहां तक कि हरियाणा की दो क्षेत्रीय पार्टियों इनेलो और जेजेपी (चौटाला खानदान) की भी दाल इस चुनाव में गल नहीं पा रही है। राज्य में कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आप शहरी पार्टी है और भाजपा का असर भी शहरों में ही है। इसलिए आप सीधे भाजपा को नुकसान पहुंचाएगी। लेकिन कुछ राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि आप दरअसल कांग्रेस को शहरी क्षेत्र में रोकने के लिए चुनाव लड़ रही है। क्योंकि शहरों में भाजपा के खिलाफ सरकार विरोधी लहर है। आप की नजर ऐसे मतदाताओं पर है जो उसे मुफ्त बिजली-पानी जैसे मुद्दे पर समर्थन करें।
केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक शुरुआत कांग्रेस के कथित भ्रष्टाचार पर हमला करके की थी। उसी समय दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था। अन्ना हजारे कांग्रेस के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सामने आये, केजरीवाल और सिसोदिया ने अन्ना हजारे का साथ पकड़ लिया। तब तक पार्टी का अस्तित्व नहीं था। अन्ना हजारे के पीछे एक शख्स छाता लेकर दिल्ली में चलता था, वह मनीष सिसोदिया था। इतिहास को लंबा सफर तय नहीं करना पड़ा, वही केजरीवाल अब पार्टी को हरियाणा में खड़ा करना चाहते हैं। हालांकि दिल्ली, पंजाब में कांग्रेस के सफाये के लिए आप ही जिम्मेदार है। लेकिन हरियाणा में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और बाकी कांग्रेस नेताओं ने केजरीवाल की दाल गलने नहीं दी। हुड्डा ने आप के साथ किसी भी तरह के समझौते का विरोध किया था।
हरियाणा में केजरीवाल के भाषणों से संकेत मिल जाएगा कि क्या उनकी पार्टी के सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का संबंध केजरीवाल की रिहाई से है। अगर केजरीवाल अपना रुख भाजपा पर ज्यादा तीखा और कांग्रेस पर नरम रखते हैं तो साफ हो जाएगा कि वो आगे चलकर किस तरह की राजनीति करना चाहते हैं। अगर वो कांग्रेस पर ज्यादा तीखा अटैक रखेंगे तो दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में समझौते की उम्मीदें खत्म हो जाएंगी। क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं।