हरियाणा का चुनाव नतीजा कांग्रेस के अलावा इंडिया गठबंधन के लिए भी एक बड़ा झटका है। दूसरी तरफ कांग्रेस जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में जम्मू क्षेत्र में भी कोई बढ़िया प्रदर्शन नहीं कर पाई। इंडिया गठबंधन ने महाराष्ट्र और झारखंड को लेकर अपने अभियान में जो रफ्तार पकड़ी थी, उस पर सीधा असर पड़ा है। हालांकि महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन भी कम समस्याओं से नहीं जूझ रहा और झारखंड में भाजपा को चुनाव लड़वाने असम के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की तैनाती करना पड़ी है। लेकिन फिलहाल चर्चा में तो हरियाणा के चुनाव नतीजे ही है। नतीजे की शाम को ही शिवसेना यूबीटी की भाषा बदल गई।
शिवसेना यूबीटी सांसद प्रियंका चतुरवेंदी ने पहला हमला बोलते हुए कहा- सत्ता विरोधी लहर के बावजूद भाजपा जीत रही है और कांग्रेस हार रही है। कांग्रेस को अपने अंदर विचार करने की जरूरत है।
उद्धव ठाकरे ने दोहराया कि वह महाराष्ट्र को ‘बचाने’ के लिए सहयोगी कांग्रेस या एनसीपी-शरदचंद्र पवार द्वारा घोषित किसी भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का समर्थन करेंगे। अगस्त के बाद यह दूसरा मौका है जब उन्होंने दूसरी बार यह मांग उठाई है। ठाकरे की पार्टी विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की घटक और इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। उद्धव की यह टिप्पणी तब आई है, जब उनकी सहयोगी कांग्रेस को हरियाणा में झटका लगा है। 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए अगले महीने चुनाव होने की संभावना है।
उद्धव ने कहा, ”मैंने यह तब भी कहा था और अब भी कहता हूं कि कांग्रेस को एक चेहरा घोषित करना चाहिए या एनसीपी-सपा को ऐसा करना चाहिए। कांग्रेस, एनसीपी-सपा को एक स्वर में बोलना चाहिए। मैं उनके द्वारा घोषित किसी भी चेहरे का समर्थन करूंगा क्योंकि मेरा महाराष्ट्र मुझे प्रिय है। मैं महाराष्ट्र के हितों को देखना चाहता हूं। मेरा संकल्प है कि मैं महाराष्ट्र को बचाने के लिए कुछ भी करूंगा।”
अगस्त में भी शिवसेना-यूबीटी अध्यक्ष ने सबसे अधिक सीटें जीतने वाले तर्क के बजाय पहले एमवीए के मुख्यमंत्री पद का चेहरा तय करने पर जोर दिया था, और कहा था कि वह शीर्ष पद के लिए कांग्रेस और एनसीपी-एसपी द्वारा घोषित किसी भी उम्मीदवार का समर्थन करेंगे। कांग्रेस और एनसीपी-सपा ने तब स्पष्ट कर दिया था कि वे विधानसभा चुनाव परिणाम आने तक सीएम चेहरा घोषित नहीं करना चाहते हैं।
तब शिव सेना-यूबीटी सांसद संजय राउत ने कहा था कि ठाकरे ने बड़ा दिल दिखाया है।
ठाकरे ने कहा, “हमारी लड़ाई उन ताकतों के खिलाफ है जो भारत विरोधी और महाराष्ट्र विरोधी हैं।”
उद्धव ठाकरे की पार्टी के मुखपत्र सामना के एक संपादकीय में भी कांग्रेस को निशाना बनाया गया है। आम आदमी पार्टी जैसे सहयोगियों को समायोजित न करने के लिए हरियाणा कांग्रेस के नेताओं की आलोचना की गई है।
सामना के संपादकीय में अपने सहयोगी दल की “जीतती पारी को हार में बदलने” की क्षमता पर भी अफसोस जताया गया।
सामना ने यहां तक कि हरियाणा में कांग्रेस के कद्दावर नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा पर भी हमला बोला और तर्क दिया कि मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार कुमारी शैलजा सहित कई नेताओं के सहयोग न करने ने भी “नाव को डुबो दिया”। सवाल खड़ा हो गया है कि… क्या पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा ने हरियाणा की नैया डुबो दी। हुड्डा की भूमिका ऐसी लग रही है जैसे वही मास्टरमाइंड हों… और वह जिसे चाहेंगे वही उम्मीदवार होगा। कुमारी शैलजा जैसे पार्टी नेताओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया…और कांग्रेस उन्हें रोकने में विफल रही।” हुड्डा और प्रभावशाली दलित नेता शैलजा के बीच ‘मुख्यमंत्री कौन होगा’ विवाद को हरियाणा में कांग्रेस की आश्चर्यजनक गिरावट के लिए सामना ने एक बड़े कारण के रूप में चिह्नित किया है।
संजय राउत का मरहमः कांग्रेस के लिए एक ख़ुशी की बात यह है कि पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के दाहिने हाथ माने जाने वाले सेना सांसद संजय राउत ने सुझाव दिया कि हरियाणा चुनाव परिणाम उनके राज्य में संबंधों को प्रभावित नहीं कर सकते हैं। हालांकि राउत ने इशारों में “हरियाणा के नतीजों से सीखने” की चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “किसी को भी खुद को किसी और का ‘बड़ा भाई’ नहीं समझना चाहिए।” इस टिप्पणी को कांग्रेस के छोटे सहयोगियों की आम शिकायत के रूप में देखा जा सकता है। राउत ने कहा- “महाराष्ट्र के लोग हरियाणा की राह पर नहीं चलेंगे… और महा विकास अघाड़ी (ठाकरे सेना, कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन) जीतेगी।”
उधर, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भी कांग्रेस को निशाना बनाया है। तृणमूल सांसद साकेत गोखले ने सीट-बंटवारे के प्रति कांग्रेस के “रवैये” की आलोचना की। गोखले ने लिखा है- “यह रवैया चुनावी नुकसान की ओर ले जाता है – ‘अगर हमें लगता है कि हम जीत रहे हैं, तो हम क्षेत्रीय पार्टी को समायोजित नहीं करते। लेकिन, जिन राज्यों में हम पिछड़ रहे हैं, वहां तो क्षेत्रीय पार्टियों को हमें समायोजित करना होगा…”
तृणमूल ने इस साल की शुरुआत में पहले आम चुनाव और राज्य चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का हवाला देते हुए राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से न्यूनतम से अधिक सीटें साझा करने से इनकार कर दिया था। उस समय भी इंडिया गठबंधन को झटका लगा था। इस सारे माममले में अभी तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की कोई टिप्पणी नहीं आई।